भारतीय मूल के अमेरिकी कैंसर विशेषज्ञ भरत बरई का कहना है कि भारत ने कई शानदार काम किए हैं। इन्होंने न सिर्फ खुद देश की मदद की है, बल्कि दुनिया भर में उसे सम्मान भी दिलाया है।
भारत की वैश्विक स्थिति के बारे में चर्चा हुए शिकागो स्थित डॉक्टर ने कहा कि भारत खाद्यान्न निर्यात कर रहा है। यूक्रेन युद्ध के कारण जब संकट आया था, तब भारत इतना सक्षम था कि दुनिया के बाकी हिस्सों में खाद्यान्न की आपूर्ति कर सके। कोरोना काल से ही भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले 8 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त भोजन राशन दिया जा रहा है।
भारत में चल रहे लोकसभा चुनाव के बीच बरई ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तरक्की कर रहे भारत की भूरि भूरि प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि यह भारत पिछले से अलग है। इसने पिछले 10 वर्षों में बहुत प्रगति की है। यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। सैन्य प्रगति भी कर रहा है। इतना होने पर भी वह गुटनिरपेक्ष है। यह अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी का दोस्त है लेकिन रूस के साथ भी दोस्ती निभा रहा है।
बरई ने कहा कि (भारत में) बहुत से लोग नरेंद्र मोदी के लिए भला-बुरा कहते हैं। लेकिन जरा सोचिए कि भारत में लोकतंत्र नहीं होता, तानाशाही होती तो क्या मोदी ऐसा कर पाते? देखिए भारत में किस तरह शांतिपूर्ण ढंग से चुनाव हो रहे हैं।
बरई ने दावा किया कि भारत में चुनावों के बीच भारतीय लोकतंत्र में अराजकता को लेकर जानबूझकर गलत धारणाएं पश्चिम में बनाई जा रही हैं। अमेरिका की तुलना में भारत में लगभग 66 प्रतिशत लोगों ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया है। आप कैसे कह सकते हैं कि भारत में लोकतंत्र काम नहीं करता?
डॉ. बरई ने खालिस्तान समर्थक गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की नाकाम साजिश में भारत का हाथ होने के आरोप की वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि खालिस्तान की समस्या कनाडा में है, थोड़ी सी अमेरिका में भी है। अगर अमेरिकी सरकार उन्हें थोड़ी जमीन देना चाहती है तो उन्हें खुश होने दें। आखिरकार वे विदेशी नागरिक हैं। वे या तो अमेरिकी नागरिक हैं या कनाडा के नागरिक हैं। लेकिन भारत में जो कुछ हो रहा है, उसमें दखल देने का उन्हें क्या अधिकार है?
उन्होंने कहा कि अगर वे उनके लिए अलग जमीन चाहते हैं तो (कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन) ट्रूडो उन्हें दे दें। अगर अमेरिका को लगता है कि यह अच्छा विचार है (तो उन्हें ऐसा करने दें)। हम अब्राहम लिंकन (वॉशिंगटन डीसी में स्मारक) के ठीक सामने खड़े हैं। जब दक्षिण (अमेरिका) अलग होना चाहता था तो उन्होंने क्या किया? हमें गृहयुद्ध झेलना पड़ा था। फिर भी वॉशिंगटन डीसी में उन्हें राष्ट्रपिता माना जाता है।
बरई ने आगे कहा कि यह (खालिस्तान की समस्या) भारत की समस्या नहीं है। भारतीय सिखों का इससे कोई लेना-देना नहीं है। यह मसला विदेशियों ने पैदा किया है और विदेशी ही इसे जिंदा रखे हुए हैं। इन लोगों में सिखों की संख्या बहुत कम है।
बरई ने अन्य देशों से संबंधित मामलों पर अपनी बात ऊंची रखने के पश्चिम के रुख की भी कड़े शब्दों में आलोचना की। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि पश्चिम में कुछ लोग अभी भी औपनिवेशिक मानसिकता रखते हैं। वे अभी भी सोचते हैं कि वे दुनिया के सबसे बड़े जज हैं और वही तय करेंगे कि दुनिया के अन्य देश में क्या होगा। ये ठीक नहीं है।
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