वीजा धोखाधड़ी के मामले में एक भारतीय अमेरिकी कंडी श्रीनिवास रेड्डी का नाम भी शामिल किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक स्टाफिंग और आउटसोर्सिंग कंपनियों द्वारा H-1B वीजा लॉटरी में हेराफेरी की गई। रेड्डी ने 2013 में अपनी कंपनी क्लाउड बिग डेटा टेक्नोलॉजीज एलएलसी की स्थापना की थी। रेड्डी 2000 के दशक की शुरुआत में अमेरिका पहुंचे और मास्टर डिग्री हासिल की।
जांच में पाया गया कि रेड्डी ने लॉटरी में अपनी संभावनाओं को बढ़ाने के लिए अलग-अलग कंपनी के नामों का उपयोग करके एक ही व्यक्ति के लिए कई H-1B आवेदन जमा किए। उन्होंने समान श्रमिकों के लिए 3,000 से अधिक प्रविष्टियां प्रस्तुत करने के लिए क्लाउड बिग डेटा टेक्नोलॉजीज एलएलसी और मशीन लर्निंग टेक्नोलॉजीज एलएलसी तथा समान नाम और ओवरलैपिंग पते वाली अन्य संस्थाओं का उपयोग किया।
महज एक साल में रेड्डी की कंपनियों ने 300 से अधिक सफल H-1B आवेदन प्राप्त किए। यह पिछले वर्षों की तुलना में बड़ी वृद्धि थी। रिपोर्ट में आगे खुलासा किया गया है कि वीजा आवेदनों के अनुसार H-1B वीजा प्राप्त करने के बाद रेड्डी की कंपनी ने श्रमिकों को मेटा प्लेटफ़ॉर्म इंक और एचएसबीसी होल्डिंग्स पीएलसी जैसे निगमों को पट्टे पर दिया। कंपनी के विज्ञापनों में विज्ञापित किया गया कि वह श्रमिकों के वेतन का 20 प्रतिशत से 30 प्रतिशत एकत्र करती है, जो प्रति कर्मचारी सालाना 15,000 डॉलर या अधिक हो सकता है।
रेड्डी का प्रतिनिधित्व करने वाले टेक्सास के वकील लुकास गैरिटसन ने बताया कि लॉटरी प्रणाली के कथित दुरुपयोग के लिए रेड्डी की कंपनियों को जारी किए गए कई वीजा का USCIS ने विरोध किया था। हालांकि, उन्होंने कहा कि एजेंसी ने गतिविधि पर प्रतिबंध लगाने के लिए सही प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया था और यह साबित करने के लिए ठोस सबूत नहीं थे कि रेड्डी की कंपनियों ने नियमों का उल्लंघन किया था।
शुरुआत में H-1B वीजा पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर आवंटित किए जाते थे। मगर अत्यधिक मांग के कारण USCIS ने 85,000 वीजा की सीमा वाली लॉटरी प्रणाली अपना ली। हर साल लॉटरी आवेदकों के एक समूह से नामों का चयन करती है, जो हाल के वर्षों में लगभग दोगुना हो गया है। लिहाजा लॉटरी के जरिये वीजा हासिल करने की संभावना कम हो गई है और ऐसे अपराधों की आशंका बढ़ गई है।
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