2035 तक भारत के पास अपना खुद का अंतरिक्ष स्टेशन होगा, जिसे "भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन" के नाम से जाना जाएगा। यह खुलासा भारत के केंद्रीय एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राज्य मंत्री हुए डॉ. जितेंद्र सिंह ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और बायो टेक्नोलोजी विभाग (डीबीटी) के बीच ऐतिहासिक एमओयू पर दस्तखत के बाद किया।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अनुसार, अंतरिक्ष विभाग के राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने बायो टेक्नोलोजी की परिवर्तनकारी यात्रा पर प्रकाश डाला, जो परंपरागत रूप से प्रयोगशालाओं तक सीमित थी और अब अंतरिक्ष के विशाल विस्तार तक पहुंच रही है। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह समझौता सैद्धांतिक अनुसंधान से आगे बढ़कर जैव प्रौद्योगिकी के व्यावहारिक अनुप्रयोगों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
पीआईबी के मुताबिक, कार्यक्रम में डॉ. जितेंद्र सिंह ने सार्वजनिक-निजी भागीदारी पर जोर दिया जो भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के तेजी से विकास में सहायक रही है। उन्होंने अंतरिक्ष क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दिया जिससे इनोवेशन और उद्यमिता में बढ़ोतरी हुई है। मंत्री ने बताया कि अब लगभग 300 स्टार्टअप स्पेस इकोनमी में योगदान दे रहे हैं।
इस समझौते में भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना और बायोई3 (अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोजगार के लिए जैव प्रौद्योगिकी) नीति जैसी कई पहल शामिल हैं। इस नीति का लक्ष्य 2030 तक 300 बिलियन डॉलर की बायो इकोनमी बनाने के लक्ष्य के साथ देश में उच्च प्रदर्शन जैव विनिर्माण को बढ़ावा देना है। इसके तहत माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान, अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष जैव विनिर्माण, बायो एस्ट्रोनॉटिक्स और अंतरिक्ष जीव विज्ञान जैसे क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
इस साझेदारी से राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष कार्यक्रम को लाभ होगा और कुशल अपशिष्ट प्रबंधन व पुनर्चक्रण के लिए मानव स्वास्थ्य अनुसंधान, नवीन फार्मास्यूटिकल्स, रीजेनेरेटिव मेडिसिन और जैव आधारित टेक्नोलोजी में इनोवेशन को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है। इससे व्यावसायिक रूप से आकर्षक तकनीकी समाधान के विकास के लिए अंतरिक्ष एवं जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में स्टार्टअप के अवसर भी खुलेंगे।
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