अमेरिकी समाजशास्त्री और सिडनी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर सल्वाटोर बाबोन्स (Salvatore Babones) ने CAA को लेकर अपना समर्थन जताया है। उन्होंने भारत को दुनिया का एकमात्र उत्तर-औपनिवेशिक अत्यधिक पारंपरिक राष्ट्र बताया। एक ऐसा राष्ट्र जो एक उदार लोकतंत्र को चलाने की जटिलताओं को सफलतापूर्वक संचालन करता है। उन्होंने सीएनएन-न्यूज 18 के राइजिंग भारत समिट के दौरान ये बातें कहीं।
उनका कहना है कि भारत में एक लोकतंत्र, एक उदार लोकतंत्र, एक मजबूत उदार लोकतंत्र है। हालांकि भारत के आलोचक यह कहते हैं कि भारत एक उदार लोकतंत्र नहीं है। लेकिन भारत की लोकतांत्रिक संस्थाएं उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और ऑस्ट्रेलिया की संस्थाओं की तर्ज पर तैयार की गई हैं। भारत की संस्थाएं विश्व के उन क्षेत्रों में से किसी में भी जगह से बाहर नहीं होंगी। भारत वास्तव में दुनिया का एकमात्र उत्तर-औपनिवेशिक, अत्यधिक पारंपरिक देश है जो उदार लोकतंत्र को चलाने के तरीके को बेहतर तरीके से जानता है।
बाबोन्स ने नागरिकता संशोधन विधेयक (CAA) को लेकर समर्थन जताया है। और इसे 'अच्छी नीति' बताया है। उन्होंने कहा कि यह भारत में ही संभव है, क्योंकि भारत एक समावेशी समाज है। एक समावेशी लोकतंत्र है। उन्होंने कहा कि संशोधित नागरिकता कानून केवल तीन देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के लोगों को ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए हैं। ये उनके लिए भी है जो भारत की स्वतंत्रता की परंपराओं के कारण भारत में शरण लेना चाहते हैं, जो उनके अपने देशों में मौजूद नहीं है।
भारत के बुद्धिजीवी वर्ग पर उनके पहले के बयान के बारे में पूछे जाने पर बाबोन्स ने साफ किया कि पश्चिमी मीडिया में भारत के बारे में कई नकारात्मक रिपोर्टें भारतीय और भारतीय मूल के बुद्धिजीवियों से आती हैं। उन्होंने कहा कि मैंने व्यक्तिगत तौर पर नहीं, एक वर्ग के रूप में उन्हें भारत विरोधी कहा। ऑस्ट्रेलिया का बौद्धिक वर्ग एक वर्ग के रूप में ऑस्ट्रेलिया विरोधी है। अमेरिका का बौद्धिक वर्ग लगातार संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके संस्थानों की आलोचना करता है। इसमें आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं है।
मैंने स्पष्टीकरण के तौर पर ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं चाहता हूं कि भारतीय यह समझें कि भारतीय लोकतंत्र के बारे में सभी नकारात्मक रिपोर्टिंग उन पश्चिमी विशेषज्ञों की तरफ से नहीं आती हैं, जो स्वतंत्र रूप से आपके देश का मूल्यांकन करने के लिए भारत आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह उन भारतीय बुद्धिजीवियों की वजह से है, जो पश्चिमी आउटलेट के लिए लिख रहे हैं। वे भारतीय बुद्धिजीवी जो पश्चिमी अकादमिक सम्मेलनों में बोलने के लिए आ रहे हैं। यह उन भारतीय मूल के बुद्धिजीवियों की वजह से है जो पश्चिमी पत्रिकाओं में लिख रहे हैं।
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