भारत भले ही दुनिया का सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन गया हो, लेकिन पिछले एक दशक में वहां महिलाओं की प्रजनन दर में खासी गिरावट आई है। 1950 में जहां प्रजनन दर 6.18 थी, वहीं 2021 में यह घटकर 1.91 ही रह गई। प्रख्यात पत्रिका लांसेट में प्रकाशित एक स्टडी में यह दावा किया गया है।
इस स्टडी में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले समय में प्रजनन दर में गिरावट का यह दौर जारी रहेगा। 2050 तक इसके और भी ज्यादा घटकर 1.3 तक पहुंचने के आसार हैं। अनुमानों पर यकीन करें तो साल 2100 में यह महज 1.04 रह जाएगी। यह अनुमान दिखाते हैं कि अब प्रति महिला बच्चों का औसत 2.1 हो गया है।
Dramatic declines in global fertility rates set to transform global population patterns by 2100, new GBD Capstone study suggests.
— The Lancet (@TheLancet) March 20, 2024
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कुल प्रजनन दर एक महिला से पैदा हुए कुल बच्चों की औसत संख्या बताता है। जनसंख्या स्थिरता के लिहाज से यह महत्वपूर्ण निहितार्थ रखता है। प्रजनन दर में मौजूदा गिरावट को भविष्य में संभावित जनसंख्या में गिरावट के मद्देनजर चिंताजनक माना जा रहा है।
ये नतीजे दुनिया भर में प्रजनन दर में व्यापक गिरावट के अनुरूप ही हैं। वर्ष 1950 में वैश्विक प्रजनन दर 4.84 थी जो वर्ष 2021 में घटकर 2.23 हो गई। पूर्वानुमानों पर यकीन करें तो वर्ष 2100 में इसके गिरकर 1.59 होने के आसार हैं।
यह अध्ययन वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) की अगुआई में किया गया है। इसके लिए ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (GBD), इंजरीज एंड रिस्क फैक्टर्स स्टडी 2021 के आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।
जीबीडी रिपोर्ट भविष्य के लिए एक निराशाजनक तस्वीर पेश करती है, जिसमें सुझाव दिया गया है कि 2050 तक सभी देशों में से तीन-चौथाई में प्रजनन दर जनसंख्या वृद्धि को बनाए रखने के लिए आवश्यक सीमा से नीचे आ सकती है। शोधकर्ताओं का मानना है कि इसकी वजह से 21वीं सदी में भौगौलिक विभाजन की स्थिति पैदा हो सकती है। कम आय वाले देशों में उच्च जन्म दर संभव है। पश्चिमी और पूर्वी उप सहारा अफ्रीकी देशों पर इसका ज्यादा असर हो सकता है।
अध्ययन में प्रजनन दर में गिरावट के प्रमुख कारकों के रूप में महिलाओं की आधुनिक गर्भ निरोधकों तक बढ़ती पहुंच और शैक्षिक स्तर में वृद्धि को माना गया है। उच्च प्रजनन वाले देशों में इस प्रवृत्ति में तेजी आने की उम्मीद है जो जनसंख्या वृद्धि में कमी के रूप में सामने आ सकता है।
शोध में कहा गया है कि विकसित या उच्च आय वाले देशों में प्रजनन दर में गिरावट से बुजुर्ग आबादी में वृद्धि हो सकती है। स्वास्थ्य व्यवस्था और श्रम बाजारों पर दबाव बढ़ सकता है। इसके विपरीत कम आय वाले देशों में उच्च जन्म दर से संसाधनों की कमी, राजनीतिक अस्थिरता और सुरक्षा संबंधी समस्याएं बढ सकती हैं।
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