टाइमएक्स बैंक के सीईओ अरुण सुब्रमणि ने भारतीय अर्थव्यवस्था की तारीफ करते हुए कहा है कि भारत को अमेरिका के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और चीन के साथ व्यापार घाटे पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने 2047 तक भारत के विकसित देश बनने को लेकर भी सकारात्मक रुख जताया, लेकिन कुछ सावधानी बरतने की भी हिदायत दी।
निवेश बैंकिंग एग्जिक्यूटिव अरुण ने एनआईए से विशेष साक्षात्कार में कहा कि हम अमेरिका और भारत के बीच व्यापार घाटा नहीं चाहते। हम चाहते हैं कि अमेरिका का चीन के बीच व्यापार कम हो। भारत का कुल वार्षिक व्यापार घाटा देखें तो अभी यह 500 बिलियन डॉलर से अधिक है।
उन्होंने कहा कि व्यापार घाटे को काबू करने के लिए टैरिफ लगाना एक खराब रणनीति साबित होती है। हमने लंबी अवधि में इसके दुष्परिणाम देखे हैं। आखिरकार अमेरिका एक पूंजीवादी बाजार है। वे टैरिफ के बावजूद प्रतिस्पर्धी बने रहने के तरीकों और साधनों का पता जरूर लगाएंगे।
सुब्रमणि ने कहा कि समग्रता में देखें तो भारत के माइक्रो इकनोमिक इंडीकेटर अभी भी सकारात्मक बने हुए हैं। मुझे लगता है कि वृहद आर्थिक इंडिकेटर काफी सकारात्मक हैं। आप कृषि उत्पादन देखिए, उपभोक्ता वस्तुओं की मांग देखिए, सरकारी इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च देखिए और निर्यात देखिए। ये चार बड़ी चीजें हैं जिन्हें आप देखना चाहते हैं और ये सभी आर्थिक संकेतक सही दिशा में हैं।
सुब्रमणि ने आगे कहा कि भारत को दुनिया की लेबर कैपिटल बनने के लिए प्रयास करना चाहिए। इस वक्त हर कोई श्रम संसाधनों के लिए संघर्ष कर रहा है। यह पूछे जाने पर कि क्या भारत साल 2047 तक विकसित देश बन सकता है? इस पर अरुण का कहना था कि वह बहुत आशावादी हैं लेकिन देश को दैनिक जरूरतों के लिए संघर्ष करने वालों और पिरामिड के शीर्ष पर रहने वालों के बीच खाई को पाटने की जरूरत होगी।
अरुण सुब्रमणि ने ओवरऑल ट्रेड सरप्लस में भारत की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए क्वाड जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ संबंध विकसित करने पर ध्यान देने की सलाह दी।
उन्होंने कहा कि अगर आप अमेरिका को भारत का निर्यात देखें तो पिछले दशक में इसमें काफी उछाल आई है। लेकिन इस रफ्तार को जारी रखने के लिए हमें क्वाड जैसे संगठनों को जरूरत है, जो हमें ओवरऑल ट्रेड सरप्लस में हमें प्रासंगिक बनाए रखने में मदद करेंगे। पश्चिमी देशों और पश्चिमी यूरोप के साथ तालमेल के लिए ये जरूरी है।
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