अमेरिका में नवंबर में होने वाले चुनाव में जीतकर कमला हैरिस के पास पहली दक्षिण एशियाई राष्ट्रपति बनने का अच्छा मौका है। भारतीय प्रवासियों की उपलब्धियों और योगदानों से अमेरिका ही नहीं, पूरी दुनिया हैरान है। भारत ने खुद बेहद कम खर्च में अंतरिक्ष मिशन शुरू करके और कोरोना महामारी के दौरान कई देशों को कोविड टीकों की आपूर्ति करके सभी को चौंका दिया था।
हालांकि हम हैरान नहीं हैं। भारतीय लोकतंत्र भले ही सिर्फ 77 वर्ष पुराना हो लेकिन इसका निर्माण वेदों, उपनिषदों, प्राचीन ग्रंथों और बौद्ध व जैन धर्मों की दार्शनिक परंपराओं में निहित कई सहस्राब्दियों के सभ्यतागत ज्ञान पर हुआ है। भारत के 78वें स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर न्यूयॉर्क स्थित ALotusInTheMud.com की अपील पर भारत और अमेरिका के प्रतिष्ठित लोगों ने अपनी टिप्पणियों में भी इसे दोहराया है।
इन लोगों की टिप्पणियों में गौर करने वाली एक बात ये भी है कि भारत के लोकाचार में अहिंसा और वसुधैव कुटुम्बकम जैसी अवधारणाएं समाहित हैं, जो करुणा, सहिष्णुता और विविधता में एकता के महत्व को रेखांकित करती हैं। ये अवधारणाएं वैश्विक चुनौतियों के समाधान, विभिन्न धर्मों के आपसी सद्भाव, विश्व शांति को बढ़ावा देने और स्थायी व समावेशी भविष्य की तरफ बढ़ने का रास्ता दिखाती हैं।
लोटस ने कुछ प्रमुख लोगों की टिप्पणियों का संकलन किया है, देखें-
भारत की समृद्ध सभ्यतागत अनूठी विरासत सांस्कृतिक, दार्शनिक, धार्मिक और वैज्ञानिक योगदानों का एक विविध मिश्रण है। इनका न सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप पर बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन परंपराओं एवं ज्ञान प्रणालियों में निहित यह विरासत समय के साथ लगातार विकसित हो रही है, माहौल के अनुकूल खुद को ढाल रही है और वर्तमान चुनौतियों के समाधान में योगदान दे रही है।
मूल रूप से यह आध्यात्मिक परंपराओं पर आधारित है जिसमें परिष्कृत, गहन एवं विभिन्न माइंड ट्रेनिंग तकनीकें शामिल हैं। ये तकनीकें हमारे ज्ञान और विविध तरीकों के मेल से असल वास्तविकता की गहन समझ प्रदान करने और उसे प्राप्त करने में हमारी सहायता करती हैं। यह हमें दुखों के अनुभव से मुक्त करती है और जीवन के असंतोष को दूर करती हैं।
अलग-अलग मानसिक झुकाव वाले लोगों के लिए अलग-अलग दृष्टिकोण वाली तकनीकें अपनाई जाती हैं। इसमें कर्म और भक्ति से लेकर ज्ञान तक शामिल रहते हैं। ये गूढ़ और रहस्यमय प्रथाओं के जरिए शरीर और मन दोनों को प्रभावित करती हैं। विविधता का यह उत्सव सभी धर्मों और परंपराओं का सम्मान करता है।
सबसे धर्मनिरपेक्ष, समावेशी एवं सुलभ दृष्टिकोणों में से एक है, ध्यान या मेडिटेशन के विभिन्न रूपों का अभ्यास। विज्ञान ने अपने अनुभवों से इनमें से कई प्रथाओं को मान्यता प्रदान की है। इन्हें विशिष्ट आस्था या विश्वास से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से अपनाया जा सकता है।
मेडिटेशन सबसे पहले हमारे दिमाग को ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रशिक्षित करता है, जो कि जीवन का मूल्यवान हुनर है। इसके बाद यह सभी प्राणियों के लिए करुणा जागृत करने में मार्गदर्शन करता है। यह धरती माता सहित दूसरों के साथ हमारी आपसी निर्भरता की पहचान कराता है। ये परिवर्तन या नश्वरता ही एकमात्र स्थायी चीज होती है। यह मैं, मेरा, मुझे, मेरा जैसी 'स्वयं' की हमारी अतिरंजित भावना को घटाता है। और इस तरह इंसान के अंदर अहिंसा और सभी मानव जाति के एक समुदाय होने की भावना पैदा करता है।
हमारे पास समय होता है, लेकिन उसका इस्तेमाल हम अक्सर अपने प्रोफेशन या फिर दूसरों के लिए शारीरिक रूप से आकर्षक दिखने में कर देते हैं। इस चक्कर में हम अपने मस्तिष्क को प्रशिक्षित करके दूसरों के साथ शांति से रहना भूल जाता हैं। हजारों वर्षों में विकसित और परिष्कृत हुई भारत की सभ्यतागत विरासत हमें इसी को प्राप्त करने का तरीका बताती है। हमारी साझा मानवीय विरासत में इससे बड़ा कोई योगदान नहीं हो सकता है।
(राजीव मेहरोत्रा नई दिल्ली में तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के फाउंडेशन फॉर यूनिवर्सल रिस्पॉन्सिबिलिटी के सचिव और ट्रस्टी हैं।)
शून्य की अवधारणा के बिना जरा दुनिया की कल्पना करके देखें। आपको अस्तित्व की एकता एक बाहरी विचार प्रतीत होगी। यह ऐसी दुनिया है जो भारतीय सभ्यता के गहन योगदान से रहित है। ऐसी सभ्यता जिसने अपने ज्ञान को वैश्विक ज्ञान एवं संस्कृति के ताने-बाने में बुना है।
भारत का योगदान सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है बल्कि वर्तमान आधुनिक जीवन के जीवित तत्वों से परिपूर्ण है। शून्य जो कि भारतीय आविष्कार है, वही वर्तमान डिजिटल युग की आधारशिला है। यही जटिल गणनाओं से लेकर हमारे दैनिक जीवन को चलाने वाली तकनीक तक हर चीज को सक्षम बनाता है। अगर ये न हो तो हम जिस आधुनिक दुनिया को देखते हैं, वह वैसी नहीं होगी।
दर्शनशास्त्र की नजर से देखें तो भारत एक ऐसी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जो समय और भौगोलिक सीमाओं से परे है। वेदों, उपनिषदों और भगवद गीता की शिक्षाएं वास्तविकता, स्वयं और ब्रह्मांड की प्रकृति से रूबरू कराती हैं और पूरी दुनिया में सत्य के साधकों को प्रेरित करती हैं। ये प्राचीन ग्रंथ एक ऐसी विश्वदृष्टि प्रदान करते हैं, जिसमें सब कुछ एकदूसरे से संबंधित है। ये हमारे विखंडित विश्व को एकता और उद्देश्य की राह दिखाते हैं।
योग और आयुर्वेद भारत की समग्र स्वास्थ्य प्रणालियां हैं। इन्होंने जनकल्याण में क्रांति ला दी है। योग को दुनिया भर में लाखों लोग अपना रहे हैं। यह शारीरिक व्यायाम से कहीं आगे की चीज है। यह मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक विकास का मार्ग है। आयुर्वेद का मूल संतुलन और प्राकृतिक उपचार पर होता है। यह हमें बदलावों से स्थायी स्वास्थ्य लाभ की ओर ले जाता है।
भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत इसके नृत्य, संगीत, कला एवं पर्वों में दिखती है। यह वैश्विक रंगमंच में जीवंत रंग जोड़ती है। भरतनाट्यम की लय और भारतीय शास्त्रीय संगीत की धुनों ने रचनात्मकता और आनंद के उत्सव में लोगों को एकजुट करते हुए कई सीमाओं को पार किया है।
आज की दुनिया में तेज तकनीकी प्रगति के लिए अक्सर आध्यात्मिक और पारिस्थितिक संतुलन की कीमत चुकानी पड़ती है, ऐसे में भारत का प्राचीन ज्ञान मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है। ये अहिंसा, प्रकृति के प्रति सम्मान, आंतरिक शांति व ज्ञान की खोज, जलवायु परिवर्तन, सामाजिक असमानता और मानसिक स्वास्थ्य संकट जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान के लिए महत्वपूर्ण हैं।
भारत का सभ्यतागत ज्ञान केवल अतीत का अवशेष नहीं है बल्कि भविष्य का प्रकाश स्तंभ भी है, जो अधिक संतुलित, करुणामय और समावेशी विश्व का मार्ग प्रशस्त करता है।
(स्वाति अरुण वाशिंगटन डीसी स्थित हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन में सोशल मीडिया डायरेक्टर हैं।)
मैं भारतीय सभ्यता की महिमा के बारे में बढ़-चढ़कर दावे नहीं करती क्योंकि मुझे अन्य सभ्यताओं खासकर अफ्रीका, मूल अमेरिका या दक्षिण अमेरिका के स्वदेशी ज्ञान के बारे में बहुत कम जानकारी है।
लेकिन मैं दावे के साथ कह सकती हूं कि उनकी बुद्धिमत्ता कितनी भी उदात्त क्यों न हो, वो भारतीय विचार की व्यापकता और गहनता के बराबर तो हो सकते हैं लेकिन उससे अधिक कभी नहीं हो सकते। इसका कारण ये कि इस देश ने पूरे साहस के साथ बताया है कि एकात्म यानी वननेस ही अस्तित्व का सत्य है, सृष्टिकर्ता व सृष्टि एक ही थे। क्या इससे अधिक समावेशी कुछ और हो सकता है? वननेस हर चीज को और हर किसी को स्वीकार करती है। किसी को भी नहीं छोड़ती। इतना ही नहीं न केवल हम एक हैं बल्कि मानव से लेकर सूक्ष्म जीव तक पूरी सृष्टि पवित्र और एकमय है।
ऐसी परस्पर और दिव्य दुनिया के निहितार्थ चकाचौंध कर देने वाले हैं। यदि हम सभी इस समझ को आत्मसात कर लें और इसके अनुसार जीवन जीएं तो इसका अर्थ होगा सभी के स्वार्थ, संघर्ष और शोषण का अंत। क्योंकि वननेस की दुनिया में हम अगर किसी के साथ गलत करेंगे तो उसका परिणाम अंततः हमें ही भुगतना होगा। हम इस सच्चाई को पर्यावरण संकट में स्पष्ट रूप से देख सकते हैं जो धीरे-धीरे हमें जकड़ता जा रहा है। प्राकृतिक संसाधनों के सदियों से चले आ रहे शोषण से आज मौसम की ऐसी चरम स्थिति आ चुकी है कि हम ये भी नहीं जानते कि क्या हम इस ग्रह पर जीवित रह भी पाएंगे या नहीं।
ऐसे समय में जब दुनिया बिखर रही है और आंखें मूंदकर जवाब तलाश रही है, भारतीय सभ्यता इससे बाहर निकलने का रास्ता दिखा सकती है। आयुर्वेद न सिद्धि प्रणालियां, वास्तु मॉडल, गुरुकुल शिक्षा प्रणाली, हमारी कला व नृत्य परंपराएं, ज्योतिष, मानव जीवन के चार लक्ष्य–धर्म अर्थ काम मोक्ष, मानव जीवन के चार चरण- बचपन से मृत्यु तक, इन सभी से दुनिया सीख सकती है कि किस तरह जीएं, रोगमुक्त रहें, एकदूसरे से जुड़ें, भोजन करें, प्यार करें और दूसरों की देखभाल करें।
सबसे अच्छा बात ये है कि ये प्रणालियां हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाती हैं। इन्हें अपनाकर हम न केवल सुखमय, सेहतमंद और सद्भाव से परिपूर्ण जीवन जी सकते हैं बल्कि व्यवस्थित रूप से अपना विकास भी कर हैं।
यही है एक आदर्श दुनिया बनाने का आदर्श नुस्खा।
(सुमा वर्गीस लाइफ पॉजिटिव और सोसाइटी मैगजीन की संपादक रही हैं।)
भारत (INdia) एक ऐसी भूमि है, जिसका नाम ही स्व की (INward) यात्रा के लिए आमंत्रित करता है। यह भूमि भौगोलिक वैभव से कहीं अधिक प्रदान करती है, आंतरिक स्व की गहनता से खोज का आमंत्रण देती है। देवियों, देवताओं और बुद्ध की इस जन्मभूमि ने प्राचीन सभ्यता के रूप में लगातार ऐसे समाधान प्रदान किए हैं जो समय से परे हैं और मानवीय आत्मा के साथ गहराई से प्रतिध्वनित
करते हुए विज्ञान, आध्यात्मिकता एवं मनोविज्ञान का मिश्रण प्रदान करते हैं।
भारत के असली नवाचार, सतही समझ से परे आंतरिक ज्ञान की उपज हैं। यह केवल बाहरी उपलब्धियों की भूमि नहीं है बल्कि दिल की गहराई में निहित आस्था और विश्वास से संचालित है। एक सभ्यता के रूप में भारत आंतरिक अन्वेषण और बाहरी अभिव्यक्ति के बीच तालमेल से पनपा है। यह व्यावहारिकता के साथ आध्यात्मिकता को एकीकृत करने का प्रमाण है। यह दुनिया के लिए प्रेरणास्रोत है। आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि और आधुनिक नवाचार का अनूठा मिश्रण है।
भारत के सभ्यतागत ज्ञान को लेकर मेरे दृष्टिकोण को दिल्ली से मुंबई तक की मेरी यात्रा से आकार मिला है, जिसकी जड़ें राजस्थान में हैं और अब न्यूयॉर्क में फलफूल रहा है। एक फिल्म निर्माता और एक कहानीकार के रूप में मैंने दुनिया पर भारतीय ज्ञान के गहरे प्रभाव को देखा है। भारत जहां महिलाओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, कई अन्य संस्कृतियों के उलट है। स्त्री को देवी मानने की परंपरा ने एक ऐसे समाज को आकार दिया है, जहां महिलाओं की बुद्धि और शक्ति को पोषित और सम्मानित किया जाता है।
प्रौद्योगिकी, चिकित्सा एवं वास्तुकला में भारत की प्रगति महज उपलब्धियां नहीं हैं बल्कि अपने समय से कई प्रकाश वर्ष आगे की सभ्यता का प्रतिबिंब है। हमारे वास्तुशिल्पी चमत्कार जैसे कि जटिल नक्काशी वाले मंदिर और भव्य किले, एक ऐसी संस्कृति के गवाह हैं जिसने विज्ञान एवं आध्यात्मिकता दोनों में महारत हासिल की है।
भारत कई ऋषियों, मुनियों और गुरुओं का जन्मस्थान है। भारत एक विश्व गुरु है। यह लाखों लोगों को ज्ञान की तरफ ले जाता है। आयुर्वेद, योग और ध्यान जिन्हें पश्चिम ने अभी-अभी अपनाना शुरू किया है, भारत के विशाल ज्ञान का महज एक हिस्सा हैं।
भारत एक देश से कहीं ज्यादा है। यह एक एहसास है, एक खुशबू है जो मेरे दिल में बसी है। मैं जहां भी जाती हूं, अपने काम के जरिए इस भूमि द्वारा प्रदत्त उपहारों को दुनिया के साथ साझा करने का प्रयास करती हूं। जीवन के एक ऐसे तरीके की झलक पेश करती हूं जिसमें वैश्विक चेतना के विस्तार की अपार क्षमता है।
(नेहा लोहिया हॉलीवुड, बॉलीवुड और विज्ञापन की दुनिया में काम कर चुकी हैं। उन्होंने 'Yashodhara: The Buddha’s Wife'फिल्म भी बनाई है।)
भारत ने दुनिया को एक सभ्यता, एक विश्वदृष्टि, सद्भाव और बहुलवाद के लोकाचार का उपहार दिया है जो सभी संवेदनशील एवं गैर-संवेदनशील जीवों के स्थायी कल्याण को प्राथमिकता देता है। यही धर्म का आधार है जो ब्रह्मांड का संतुलन और व्यवस्था बनाए रखता है। हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्मों की दार्शनिकता और आध्यात्मिका से महान ऋषियों और विद्वानों ने भारतीयों को पोषित पल्लवित किया है और उनके माध्यम से दुनिया के सुदूर कोनों तक उत्थान का संदेश दिया है कि हम मूल रूप से दिव्य हैं। हम स्वाभाविक रूप से एक हैं। हम इस धरती पर अपनी सच्ची प्रेरणा, आत्म साक्षात्कार और आत्म ज्ञान की खोज के उद्देश्य से आए हैं।
आज हम लोग खासकर हमारे युवा विचारों के एक वैश्विक बाजार में रहते हैं, जहां हम सूचनाओं (इसमें अधिकांश भ्रामक या झूठ होती हैं) और विभिन्न प्रकार की प्रोपेगंडा वाली विचारधाराओं के बोझ तले दबे हैं। हमें मौन, ध्यान, प्रतिबिंब और स्व के अध्ययन से, पूजा व प्रकृति के प्रति श्रद्धा के साथ, योग व जप के जरिए, प्रबुद्ध लोगों की संगत से, हमारे महाकाव्यों के सहारे अपने अंदर के स्व को संतुलित करने की आवश्यकता है।
ये वो मार्ग हैं जो हमारे ऋषियों और पूर्वजों ने हमारे लिए बनाए हैं। ये भारतीय विरासत और सभ्यता का खजाना है। यहां तरह तरह के पथ हैं, जिन्हें व्यक्तियों की प्रकृति के आधार पर डिज़ाइन किया गया है, समय, स्थान व परिस्थिति द्वारा संदर्भित किया गया है। ये ऐसे तरीके हैं जो हठधर्मिता या रहस्योद्घाटन द्वारा नहीं बल्कि आत्म-अन्वेषण और स्व की खोज से प्रेरित हैं। हमारा यह कर्तव्य है कि हम अपनी और सभी जीवित प्राणियों के लाभ के लिए इस राह पर चलें।
(अदिति बनर्जी एक फॉर्च्यून 500 फाइनेंशियल सर्विस कंपनी में अटॉर्नी हैं। वह हिंदू धर्म और हिंदू-अमेरिकी अनुभवों की मुखर वक्ता हैं।)
भारतीय पूरी दुनिया में उन्नति कर रहे हैं। इसकी वजह शिक्षा, पारिवारिक मूल्यों और हालात के मुताबिक ढल जाने के मजबूत मूल्य हैं। पारिवार का मजबूत समर्थन उन्हें स्थिरता प्रदान करता है और जोखिम लेने व कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित करता है। भारत का बहुसांस्कृतिक समाज अनुकूलनशीलता को बढ़ावा देता है जिससे भारतीयों को विभिन्न वातावरणों में फलने-फूलने और सकारात्मक योगदान देने में मदद मिलती है।
भारतीय नवाचार और विकास के जरिए तकनीकी क्षेत्र में ऐतिहासिक योगदान दे रहे हैं। सुंदर पिचाई और सत्या नडेला जैसे कॉर्पोरेट लीडर अपने दूरदर्शी नेतृत्व एवं क्षमताओं के माध्यम से टेक्नोलोजी सेक्टर को बदल रहे हैं। हजारों अन्य भारतीय टेक्नोलॉजिस्ट और आंत्रप्रेन्योर्स कृत्रिम बुद्धिमत्ता, आईटी, शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा में अग्रणी पायदान पर हैं। भारतीयों ने चिकित्सा, शिक्षा, कला एवं ह्यूमैनिटीज में विश्व स्तर पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
खेलों की बात करें तो क्रिकेट में भारत का सिक्का चलता है। बैडमिंटन, हॉकी, कुश्ती और शतरंज जैसे खेलों में भी भारतीय तगड़ी चुनौती पेश करते हैं। कला के क्षेत्र में भारतीयों ने चाहे देश हो या विदेश, फिल्मों, संगीत और साहित्य के जरिए बड़ा योगदान दिया है। बॉलीवुड ने अपनी जीवंत फिल्मों के जरिए भारतीय संस्कृति एवं मनोरंजन को बढ़ावा देते हुए दुनिया भर के दर्शकों का दिल जीता है।
भारतीय जीवनशैली कल्याण एवं आध्यात्मिकता के जरिए लगातार सकारात्मकता फैला रही है। योग और ध्यान को दुनिया भर में मान्यता मिल चुकी है। मानसिक एवं शारीरिक कल्याण में इसके लाभ को अब हर कोई जान रहा है। दिवाली और होली जैसे भारतीय त्योहार कई देशों में मनाए जाने लगे हैं।
(साकेत भाटिया ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी करने के बाद दो कंपनियों की स्थापना की है। बे एरिया में रहते हुए उन्होंने ज्योतिष और अंक ज्योतिष में पीएचडी भी उपाधि भी प्राप्त की है।)
विचारशील अमेरिकी गुरुओं के ज्ञान और आध्यात्मिक गुरु शिव बाबा की जीवन बदलने वाली सलाह पर अमल करते हुए मैंने 2002 में भारत की तीर्थयात्रा शुरू की थी। 53 साल की उम्र में भी मेरे अंदर एक अटूट विश्वास था कि मुझे दुनिया में जुड़वा बच्चों को लाने के लिए नियत किया गया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए मैंने भारत के प्राचीन प्रजनन मंदिरों में रहने वाली दिव्य ऊर्जा की खोज की, जहां पर अनगिनत महिलाएं गर्भ धारण करने के उद्देश्य से यात्रा करती हैं।
मास्टर हीलर के रूप में मुझे समझ आया कि जिस आध्यात्मिक शक्ति की मुझे तलाश है, वह केवल इन पवित्र मंदिरों के अंदर ही हासिल की सकती है। हर मंदिर अपने पवित्र संस्कारों की वजह से भय, संदेह एवं अयोग्यता की गहरी अवचेतन बाधाओं को खत्म करने की शक्ति रखता है। इन कालातीत मंदिरों में जुपीटर, जल एवं प्रकाश की यात्रा करते हुए मुझे महसूस हुआ कि मैं भी आत्मा के इंडियाना जोन्स की तरह अत्यधिक आध्यात्मिक ऊर्जा से भरे खजाने की तलाश कर रही हूं।
इन पवित्र स्थलों की मेरी यात्रा शिव बाबा के एक पत्र की कृपा से शुरू हुई थी। इस दौरान मैंने अपने मन, आत्मा और शरीर में चमत्कारी परिवर्तन का अनुभव किया और इसकी वजह से 2004 में मेरे जीवन की सबसे खुशनसीब घटना हुई। मैं प्यारे जुड़वां बच्चे जियान और फ्रांसेस्का की मां बन पाई। उस समय मेरी उम्र 57 साल थी। और यह से देवी लक्ष्मी के जन्मदिवस पर संभव हुआ था, जो कि संपन्नता और परिपूर्णता की देवी हैं।
अब 77 वर्ष की आयु में भी मैं बेहद जीवंत और उद्देश्यपूर्ण जीवन व्यतीत कर रही हूं। मुझे अपने अंदर दिव्य आध्यात्मिक ऊर्जा प्रतीत होती है, जो लगातार मुझे सक्रिय रखती है।
एक एनर्जी हीलर और लाइफ कोच के रूप में अब मैं अन्य लोगों को उनकी नकारात्मकता को दूर करके अनंत संभावनाओं के आकाश में तरक्की करने का प्रयास कर रही हूं।
(एलेटा सेंट जेम्स एक एनर्जी हीलर, प्रतिभाशाली अंतर्ज्ञानी और सहज लाइफ कोच हैं।
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