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लोकसभा चुनावः पंजाब में बिना गठबंधन होगी सियासी जंग, बीजेपी-शिअद में क्यों नहीं बनी बात?

हाल के दशकों में शायद यह पहली बार है, जब पंजाब में आम चुनावों में सभी प्रमुख पार्टियां- कांग्रेस, भाजपा, शिअद, बसपा और आम आदमी पार्टी गठबंधन या सीट समायोजन के बगैर चुनावी मैदान में उतरेंगी। 

हाल के दशकों में शायद यह पहली बार है, जब पंजाब में आम चुनावों में सभी प्रमुख पार्टियां अकेले चुनावी मैदान में उतरेंगी।  / X @Akali_Dal_

भारत के आगामी लोकसभा चुनावों में पंजाब के दो पारंपरिक रूप से सहयोगी राजनीतिक दलों के बीच एक बार फिर से गठबंधन को लेकर छाए अनिश्चिचता के बादल छंट गए हैं। अब ये साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के बीच गठबंधन नहीं होगा। दोनों ही दलों ने 2024 का संसदीय चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है।

इस फैसले की घोषणा पहले पंजाब भाजपा के प्रमुख सुनील जाखड़ ने की। उसके बाद शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के प्रमुख ने पलटवार करते हुए कहा कि हमारी पार्टी सिद्धांतों की पार्टी है जिसने हमेशा ही पंजाब के लोगों और खासकर किसानों के हितों के लिए काम किया है।



हाल के दशकों में शायद यह पहली बार है, जब पंजाब में आम चुनावों में सभी प्रमुख पार्टियां- कांग्रेस, भाजपा, शिअद, बसपा और आम आदमी पार्टी गठबंधन या सीट समायोजन के बगैर चुनावी मैदान में उतरेंगी। 
 
पंजाब की चुनावी पार्टियों में से आप ने ही अभी अपने 13 उम्मीदवारों में से आठ के नाम घोषित किए हैं। अन्य पार्टियों की तरफ से उम्मीदवारों की सूची का इंतजार है। भारतीय जनता पार्टी ने हाल ही में भारतीय विदेश सेवा से सेवानिवृत्त हुए टीएस संधू को अमृतसर से अपना उम्मीदवार बनाने का संकेत दिया है।



निवर्तमान 17वीं लोकसभा में भाजपा और शिरोमणि अकाली दल के दो-दो सदस्य हैं जबकि सत्तारूढ़ दल आप के पास एकमात्र प्रतिनिधि था जो कांग्रेस छोड़कर आप में आया था और जालंधर लोकसभा उपचुनाव जीता था।
 
शिअद का प्रतिनिधित्व सुखबीर सिंह बादल और हरसिमरत कौर बादल की पति-पत्नी की जोड़ी कर रही है, जबकि सोम प्रकाश और सनी देओल सत्ता पक्ष के सदस्यों में हैं। कांग्रेस सांसदों में से एक परणीत कौर हाल ही में भगवा पार्टी में शामिल हो चुकी हैं। भाजपा उन्हें गृह सीट पटियाला से मैदान में उतार सकती है।
 
शिअद और भाजपा ने लंबे समय तक पंजाब विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ा था। उनके गठबंधन में उस समय दरार आ गई थी, जब भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने विवादास्पद कृषि कानून पारित किए थे। उत्तर भारत के किसानों द्वारा करीब एक साल तक आंदोलन और दिल्ली की घेराबंदी के बाद ये कानून वापस लेने पड़े थे।
 
1920 के दशक में किसान आंदोलन से उपजी शिअद 2021 में किसानों के मुद्दे पर एनडीए गठबंधन से बाहर हो गई थी। दोनों के बीच फिर से गठबंधन की अटकलें उस समय से जोर पकड़ने लगी थीं, जब शिअद ने इंडिया गठबंधन में शामिल होने से इनकार कर दिया था। इंडिया गठबंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस को लेकर शिअद का रुख स्पष्ट था। उसका मानना है कि ऑपरेशन ब्लूस्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने पूरे देश में सिखों के साथ जो किया, उसे देखते हुए हम कभी कांग्रेस के साथ साझेदारी नही कर सकते।
 
2019 के लोकसभा चुनावों तक शिअद और भाजपा के बीच सीट समायोजन पर सहमति थी। शिरोमणि अकाली दल 13 में से 10 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती थी और बाकी तीन भाजपा के लिए छोड़ने को तैयार थी। 

इस बार भाजपा कम से कम छह सीटें चाहती थी क्योंकि पिछले विधानसभा और उसके बाद के उपचुनावों में शिअद का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा था। उधर शिअद नेतृत्व ने आंदोलनकारी किसानों के समर्थन और सजा पूरी करने वाले सिख कैदियों की रिहाई जैसी कुछ शर्तें रखीं। संभवतः इसी की वजह से दोनों में बात नहीं बन पाई।
 
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस वैसे तो इंडिया गठबंधन का हिस्सा हैं लेकिन उन्होंने पंजाब में सीटों का बंटवारा करने से इनकार कर दिया है। आप ने 13 में से आठ उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए हैं। इनमें पांच कैबिनेट मंत्री और एक मौजूदा सांसद के अलावा हाल ही में पार्टी में शामिल हुए एक पूर्व कांग्रेस विधायक शामिल हैं।
 
अब ये लगभग साफ हो गया है कि राज्य में चुनाव बिना किसी बड़े गठबंधन के होंगे। सभी दल अलग अलग ताल ठोकते नजर आएंगे। राज्य में 1 जून को मतदान होना है। चुनाव परिणाम 4 जून को आएंगे। हालांकि इससे पहले देखना ये है कि राजनीतिक दल किस-किसको इस चुनावी समर के लिए अपना सिपहसालार बनाती हैं। 

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