भारत में संसदीय चुनावों के बीच कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस (सीआरएस) की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के कुछ प्रमुख प्रावधान भारतीय संविधान के कुछ प्रावधानों का उल्लंघन कर सकते हैं।
सीआरएस की तीन पेज की 'इन फोकस' रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए के प्रमुख प्रावधान जैसे कि मुसलमानों को छोड़कर तीन देशों के छह धर्मों के अप्रवासियों को नागरिकता का रास्ता प्रदान करना भारतीय संविधान के कुछ अनुच्छेदों का उल्लंघन कर सकते हैं। सीआरएस अमेरिकी कांग्रेस की एक स्वतंत्र अनुसंधान शाखा है।
कांग्रेस के सदस्यों को तर्कसंगत निर्णय लेने के लिए तैयार की जाने वाली सीआरएस रिपोर्ट को कांग्रेस की आधिकारिक रिपोर्ट नहीं माना जाता। सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय संविधान के दो प्रावधानों का उल्लेख किया है जिनका उल्लंघन किया जा रहा है।
भारतीय संविधान के चयनित अनुच्छेद
भारत के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने पश्चिम बंगाल में एक चुनावी रैली में सीएए का यह कहकर बचाव किया है कि इसका उद्देश्य किसी की नागरिकता छीनना नहीं है। बल्कि सीएए धार्मिक आधार पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से विस्थापित हुए लोगों को भारतीय नागरिकता देने का कानून है।
नागरिकता क़ानून पर भ्रम फैलाया जा रहा है… pic.twitter.com/h8AEd2UxQa
— Rajnath Singh (मोदी का परिवार) (@rajnathsingh) April 21, 2024
रक्षा मंत्री सिंह ने कहा कि केंद्र ने पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए बिना दस्तावेज वाले गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए तेजी से नागरिकता प्रदान करने के लिए संसद द्वारा कानून पारित किए जाने के चार साल बाद नियमों को अधिसूचित करते हुए मार्च में सीएए लागू किया था। सीआरएस ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भारत सरकार और सीएए के अन्य समर्थकों का दावा है कि इसके उद्देश्य पूरी तरह से मानवीय हैं।
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दूसरी ओर अधिनियम के विरोधियों ने चेतावनी दी है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हिंदू बहुसंख्यकवादी, मुस्लिम विरोधी एजेंडे को आगे बढ़ा रही हैं जो आधिकारिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में भारत की स्थिति को खतरे में डालता है और अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानदंडों और दायित्वों का उल्लंघन करता है।
तीन पेज की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि संघीय सरकार द्वारा नियोजित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के साथ मिलकर सीएए भारत के लगभग 20 करोड़ के बड़े मुस्लिम अल्पसंख्यक के अधिकारों को खतरे में डाल सकता है।
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