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पैरा एथलीट्स की किस तरह मदद करता है रोटरी दिल्ली मिडटाउन क्लब, दीपा मलिक ने बताया

डॉ दीपा मलिक ने बताया कि लकवाग्रस्त होने के बाद मैंने 36 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था। जब मैंने शुरुआत की थी तब रोटरी मिडटाउन ने मुझे विश्वस्तरीय भाला प्रदान किया था, जिसकी मदद से मैंने तीन एशियाई रिकॉर्ड बनाए थे।

डॉ. दीपा मलिक लगातार तीन एशियाई पैरा गेम्स में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पैरा एथलीट हैं। / screenshot from video provided

पेरिस में हो रहे पैरालंपिक गेम्स में भारतीय दल से प्रवासी भारतीयों को काफी उम्मीदें हैं। इस बार भारत से 84 एथलीटों का सबसे बड़ा दल गया है, जो 12 खेलों में प्रतिस्पर्धा करेंगे। इस मुकाम तक पहुंचने के लिए पैरा एथलीट्स को विशेष मदद की जरूरत होती है। रोटरी क्लब ऑफ दिल्ली मिडटाउन के एक कार्यक्रम में तीन एशियाई पैरा गेम्स की पदक विजेता डॉ. दीपा मलिक ने इस बारे में चर्चा की।

डॉ. दीपा मलिक पैरालंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला और 2010, 2014 व 2018 में हुए तीन एशियाई पैरा गेम्स में लगातार पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय महिला एथलीट हैं। रोटरी क्लब के सहयोग से दिल्ली में पोलियो पीड़ित बच्चों, लोगों और पैरा-एथलीट्स को व्हीलचेयर व ई-रिक्शा गिफ्ट करने के बाद उन्होंने कहा कि पैरालंपिक गेम्स तक पहुंचने के लिए खिलाड़ियों को बहुत तैयारी और सपोर्ट की जरूरत होती है। 

उन्होंने कहा कि दिव्यांग एथलीट्स को प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेने के लिए सहायक उपकरण, अटेंडेंट्स, ट्रांसपोर्ट आदि की आवश्यकता होती है। बहुत से फंड की भी जरूरत पड़ती है। इस काम में रोटरी क्लब ऑफ दिल्ली मिडटाउन मदद करता है। मलिक ने अपना अनुभव बताते हुए कहा कि 2011 और 2012 में रोटरी क्लब ने मुझे भी सहारा दिया था जिसकी बदौलत मैं देश के लिए पदक ला सकी। 

डॉ मलिक ने आगे बताया कि लकवाग्रस्त होने के बाद मैंने 36 साल की उम्र में खेलना शुरू किया था। जब मैंने शुरुआत की थी तब रोटरी मिडटाउन ने मुझे विश्वस्तरीय भाला प्रदान किया था, जिसकी मदद से मैंने तीन एशियाई रिकॉर्ड बनाए थे। 2000 में कॉमनवेल्थ गेम्स में हिस्सा लेने के लिए मैं दिल्ली आई थी। उस समय पैरालंपिक समिति को जब तक टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) से मदद नहीं मिली थी, तब तक हमें ठहरने, आने-जाने और उपकरणों को लेकर संघर्ष करना पड़ा था। 

व्हीलचेयर और ई-रिक्शा वितरण में रोटेरियन रमन भाटिया ने भी उनका साथ दिया। भाटिया रोटरी गुलाम नक्शबंद इंस्टीट्यूट फॉर द फिजिकली चैलेंज्ड (आरजीएनआईपीसी) के प्रबंध ट्रस्टी हैं। यह ट्रस्ट पोलियो से प्रभावित लोगों और अन्य शारीरिक विकलांग बच्चों के सपोर्ट और पुनर्वास के लिए बनाया गया है। भाटिया ने बताया कि रोटेरियन नक्शबंद ने अपनी सारी दौलत इसी कार्य के लिए लगा दी थी। 

रोटरी क्लब के साथ मिलकर डॉ मलिक कई प्रोजेक्टों पर काम कर रही हैं जिनमें पुनर्वास, पोषण व आहार योजनाओं के अलावा एथलीटों को व्हीलचेयर वितरण भी शामिल है। उन्होंने भविष्य की योजनाओं के बारे में बताते हुए कहा कि संस्था का उद्देश्य दिव्यांगों खासकर लकवे से प्रभावित और चोटों से पीड़ित मरीजों का पुनर्वास करना, समाज से जोड़ना, सदमे से उबरने में मदद देना और उन्हें खेलों में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना है। 

बता दें कि दीपा मलिक दक्षिण एशिया के लिए एशियाई पैरालंपिक समिति की प्रतिनिधि हैं। डॉ. मलिक ने 2016 के समर पैरालिंपिक में रजत पदक और 2018 के दुबई पैरा एथलेटिक ग्रांप्री की गोला फेंक प्रतियोगिता में स्वर्ण जीता था। उन्होंने 2018 के एशियाई पैरा गेम्स में नया एशियाई रिकॉर्ड बनाया था। साल 2012 में उन्हें अर्जुन पुरस्कार और 2017 में प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। 
 

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