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भारत फिर कैसे बन सकता है सोने की चिड़िया, इस मशहूर सोशल एक्टिविस्ट ने बताया

IAICC के इवेंट में मयंक गांधी ने कहा कि 1700 ईस्वी तक हम (भारत) सोने की चिड़िया थे... वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान 33 प्रतिशत था, 30 प्रतिशत वैश्विक व्यापार हमारे यहां होता था। लेकिन अब हम 3.27 प्रतिशत पर हैं। हम अप्रासंगिक हो चुके हैं।

IAICC के इवेंट में जीवीटी के संस्थापक मयंक गांधी और इमिग्रेशन अटॉर्नी शीला मूर्ति। / X @GlobalParli

भारतीय एनजीओ ग्लोबल विकास ट्रस्ट (जीवीटी) के संस्थापक व सामाजिक कार्यकर्ता मयंक गांधी का कहना है कि भारत को 1700 ईस्वी तक सोने की चिड़िया कहा जाता था, लेकिन अब यह टाइटल अप्रासंगिक हो गया है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि अगर लक्षित और समुचित प्रयास किए जाएं तो भारत फिर से सोने की चिड़िया बन सकता है।

इंडियन अमेरिकन इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स (IAICC) के वर्जीनिया में आयोजित एक कार्यक्रम में मयंक गांधी ने कहा कि 1700 ईस्वी तक हम (भारत) सोने की चिड़िया थे... वैश्विक अर्थव्यवस्था में हमारा योगदान 33 प्रतिशत था, 30 प्रतिशत वैश्विक व्यापार हमारे यहां होता था। लेकिन अब हम 3.27 प्रतिशत पर हैं। हम अप्रासंगिक हो चुके हैं। अगर कल भारत डूब जाता है तो कुछ लोग कंधे उचकाकर कहेंगे कि ओह भारत एक महान देश था। हम इस तरह के अप्रासंगिक बन चुके हैं।

'इंट्रोड्यूसिंग ग्लोबल डेवलपमेंट ट्रस्ट (जीवीटी)' विषयक IAICC के कार्यक्रम में मयंक गांधी के अलावा मूर्ति लॉ फर्म की संस्थापक भारतीय-अमेरिकी शीला मूर्ति और एलएनजी भीलवाड़ा समूह के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक रवि झुनझुनवाला ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

आईएआईसीसी ने ग्लोबल विकास ट्रस्ट के बारे में बताते हुए कहा कि मयंक गांधी के नेतृत्व में जीवीटी ने महाराष्ट्र में उल्लेखनीय प्रगति हासिल की है। पिछले पांच वर्षों में जीवीटी ने किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की है और इस तरह हर साल होने वाले किसानों की 1,100 आत्महत्याओं को शून्य तक पहुंचाया है। 

मयंक गांधी ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था तेजी से आगे बढ़ रही है। यह प्रगति मुख्य रूप से ऊपर से नीचे की तरफ होती है। लेकिन आपको नीचे रहने वाले लोगों को भी ऊपर उठाने की ज़रूरत है। यदि आप देश के सबसे खराब इलाकों में काम करें और वहां के लोगों की आय में 10 गुना वृद्धि कर दें तो इस तरह अगले कुछ वर्षों में भारत फिर से सोने की चिड़िया बन सकता हैं।

गांवों में आय बढ़ाने में जीवीटी के योगदान का जिक्र करते हुए मयंक गांधी ने बताया कि उनका संगठन 4,200 गांवों में काम कर रहा है, 5 करोड़ पेड़ लगा रहा है, चार अरब लीटर से अधिक पानी का संचयन कर रहा है। हम किसानों की आय औसतन लगभग 25,000 रुपये से बढ़ाकर सालाना एक लाख रुपये प्रति एकड़ तक करने पर काम कर रहे हैं। 

'सलाहकार से लाइफसेवर तक' 
मूर्ति लॉ फर्म की संस्थापक भारतीय-अमेरिकी शीला मूर्ति ने भारत में मयंक गांधी के महत्वपूर्ण योगदान और एक सलाहकार से जीवनरक्षक बनने तक की उनकी उल्लेखनीय यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि 10 वर्ष पहले तक भारत के क्षेत्र विशेष में लगभग 1,100 किसान घोर गरीबी के कारण हर साल आत्महत्या करते थे। 

इमिग्रेशन अटॉर्नी और परोपकारी शीला ने आगे बताया कि मयंक गांधी ने उनकी भलाई के लिए खुद को पूरी तरह समर्पित कर दिया, उनकी समस्या का बड़े पैमाने पर अध्ययन किया। उन्होंने चेक डैम बनवाया। नदी से 45 मील दूर तक सिंचाई प्रणाली में सुधार कराया, ताकि किसानों का जीवन बदल सके। शीला ने कहा कि गांधी के प्रयासों से किसानों की आत्महत्या की संख्या सालाना 1,100 से घटकर शून्य हो गई है। 
 

किसान की जिंदगी 250 डॉलर की होती है: रवि झुनझुनवाला
एलएनजी भीलवाड़ा समूह के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक रवि झुनझुनवाला ने भी भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर से 'सोने की चिड़िया' वाला युग लाने के लिए महत्वपूर्ण कृषि सुधारों पर जोर दिया। झुनझुनवाला ने बताया कि वह जीवीटी का सपोर्ट क्यों करते हैं। उन्होंने एक साल अशोका यूनिवर्सिटी के इवेंट में मेलिंडा और बिल गेट्स फाउंडेशन के सीईओ से अपनी मुलाकात के बारे में भी बताया। 

उन्होंने कहा कि  भारत में एक किसान की जिंदगी का मूल्य लगभग 250 डॉलर है। उस 250 डॉलर के लिए वह आत्महत्या भी कर सकता है। ऐसा होने पर उसका पूरा परिवार तबाह हो सकता है। जीवीटी प्रोजेक्ट के साथ वे जिस पैमाने पर काम कर रहे हैं, किसान के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाने के लिए केवल 250 डॉलर की आवश्यकता होती है।

'किसानों की जिंदगी संवार रहा जीवीटी'
डीसी साउथ एशियन आर्ट्स काउंसिल के निदेशक मनोज सिंह ने भी कार्यक्रम में अपनी बात रखी। परिषद पूरे वर्ष दक्षिण एशियाई साहित्य, नृत्य, संगीत और फिल्में आदि से जुड़े कार्यक्रम कराती रहती है। हर सितंबर में एक फिल्म समारोह भी होता है।

मनोज सिंह ने एक व्यक्तिगत किस्सा साझा करते हुए बताया कि वह भारत के पापरिया इलाके में एक खेत के मालिक हैं और वह निजी तौर पर जानते हैं कि किसानों के सामने किस तरह की चुनौतियां आती हैं और ग्लोबल विकास ट्रस्ट किस तरह उनका समाधान करने में जुटा है।

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