कमला हैरिस ने 22 अगस्त को डेमोक्रेटिक नेशनल कन्वेंशन में अमेरिकी राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए डेमोक्रेटिक नामांकन स्वीकार किया। भारतीय मां और जमैकन पिता की बेटी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि ने भारतीय अमेरिकी समुदाय और दुनिया भर में उनके प्रशंसकों का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया।
लाखों भारतीय अमेरिकियों और अन्य प्रवासियों के लिए जिन्होंने अमेरिकी समाज में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष किया है, यह पल किसी जीत से कम नहीं था। हैरिस का उदय केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं है बल्कि सभी भारतीय अमेरिकियों की सामूहिक जीत है। उन सभी लोगों की जीत है जिन्होंने हमारी सांस्कृतिक विरासत को बनाए रखते हुए बेहतर जीवन बनाने का अथक प्रयास किया है।
कमला हैरिस की कहानी उन मूल्यों से जुड़ी है, जो उन्हें अपने भारतीय दादा पीवी गोपालन से विरासत में मिले हैं। उनके दादा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक सिविल सेवक थे। हैरिस की मां श्यामला गोपालन एक निडर कैंसर शोधकर्ता थीं जो 1960 के दशक में अमेरिका आई थीं। सार्वजनिक सेवा के प्रति उनके दादा की प्रतिबद्धता और उनकी मां के अथक प्रयासों ने कमला की वैश्विक दृष्टि को गहराई से आकार दिया है।
2023 में भारत दौरे पर आए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लंच के आयोजन के अवसर पर कमला हैरिस ने भावुक होकर बताया था कि किस तरह उनके दादा उन्हें सुबह की सैर पर ले जाया करते थे, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के संघर्ष की कहानियां साझा करते थे, उन्हें नागरिक कर्तव्यों के बारे में पढ़ाते थे और उन्हें समानता, निष्पक्षता और सार्वजनिक सेवा के नजरिए से दुनिया के बारे में सोचने के लिए प्रोत्साहित करते थे। इन्हीं सबने उन्हें वंचितों की आवाज बनने और उनके हक में खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
कमला हैरिस का जन्म और पालन-पोषण हालांकि अमेरिका में हुआ, लेकिन भारत के साथ उनका गहरा संबंध है। भारतीय प्रवासियों के लिए इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। खासकर ऐसे प्रवासियों को जो भारत में पले-बढ़े हैं, जो अपने जन्मभूमि से गहरे सांस्कृतिक व पारिवारिक संबंध बनाए रखते हैं।
जब मैंने कमला हैरिस को मंच पर देखा, मेरे दिल में उस समय जो भावनाएं आईं, वह गर्व से कहीं अधिक थीं। यह उस सफर की मान्यता थी जो आप्रवासियों ने अमेरिका में तय किया है। भारतीय अमेरिकियों ने कई अन्य आप्रवासी समुदायों की तरह यहां कई तरह के संघर्षों का सामना किया है। शुरु में कानूनी बहिष्कार झेला, भेदभाव का सामना किया, एक बिल्कुल नए समाज में अपनी सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने के लिए मुश्किलें उठाईं।
वर्षों तक हम प्रवासियों ने पर्दे के पीछे रहते हुए चुपचाप अपना काम किया, कारोबार जमाने के लिए लंबी कड़ी मेहनत की, अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाई, वर्षों तक धैर्यपूर्वक इंतजार किया और कई मामलों में दशकों तक ग्रीन कार्ड प्राप्त करने के लिए बाट जोहते रहे, हमने करों का भुगतान किया, कानून का पालन किया, रास्ते में आई बाधाओं से निपटते हुए अपने परिवारों को आगे बढ़ाया। कमला हैरिस का राष्ट्रीय मंच पर उदय उस यात्रा की परिणति है। यह हमारे समुदाय के लचीलापन और ताकत का वसीयतनामा है।
कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक उम्मीदवारी स्वीकार करते हुए अपने भाषण में न सिर्फ राजनीतिक करियर में कड़ी मेहनत से हासिल जीत का जिक्र किया बल्कि उन मूल्यों को भी रेखांकित किया जिनके बीच उनकी परवरिश हुई। वह एक बहुसांस्कृतिक घर में पली-बढ़ी हैं जहां भारतीय मसालों की महक उनकी मां के साथ राजनीति और विज्ञान पर चर्चा के साथ घुलमिली हुई थीं। डोसा के लिए हैरिस का प्यार और मां के मसालों का स्वाद केवल खानपान तक सीमित नहीं है, वह समृद्ध, जीवंत भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। वह जहां भी जाती हैं, इन्हें अपने साथ ले जाती हैं।
अब बात नारियल के पेड़ की प्रसिद्ध कहानी की। कमला हैरिस ने 2023 में अपनी मां के एक मुहावरे का जिक्र करते हुए कहा था- “You think you just fell out of a coconut tree? इसका शाब्दिक अर्थ यह है कि "आपको लगता है कि आप नारियल के पेड़ से गिर गए हैं?" लेकिन इसका असल अर्थ काफी गहरा है। हैरिस वह इस बात को साबित करने का प्रयास कर रही थीं जो दक्षिण भारतीय मांएं अक्सर करती हैं। वह यह कि हर इंसान अनगिनत अनुभवों, प्रयोगों और रिश्तेदारों, दोस्तों व पड़ोसियों के विस्तारित परिवार के समर्थन का मिलाजुला रूप होता है।
परिवार, लचीलेपन और मध्यम वर्गीय मूल्यों की यह धारणा कमला हैरिस की व्यापक राजनीतिक दृष्टि एवं नीतियों में प्रतिध्वनित होती है। इसी दृष्टि ने उन्हें चैंपियन बनाने में मदद की है। बाइडेन-हैरिस प्रशासन ने देश का ध्यान फिर से आम लोगों पर केंद्रित करने के लिए काम किया, ठीक उसी तरह जैसे हैरिस के दादा ने भारत में सिविल सेवकों की भूमिका की वकालत की थी। अमेरिकन रेस्क्यू प्लान और बाई पार्टिसन इंफ्रास्ट्रक्चर एक्ट जैसे कानूनों के जरिए हैरिस और बाइडेन ने दिखाया है कि लोकतंत्र अभी भी हाशिए पर पड़े या भुला दिए गए लोगों के लिए काम कर सकता है।
बाइडेन और हैरिस की नीतियां समुदायों के पुनर्निर्माण के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं। एक ऐसी प्रतिबद्धता जो सेवा एवं न्याय के मूल्यों को प्रतिबिंबित करती है। सरकार के शुरुआती दिनों में उपराष्ट्रपति हैरिस ने 1.9 ट्रिलियन डॉलर के अमेरिकी रेस्क्यू प्लान को पारित करवाने के लिए निर्णायक वोट डाला था। इस पैकेज का उद्देश्य कोविड-19 महामारी के दौरान टीकाकरण के लिए धन प्रदान करना, सबसे ज्यादा प्रभावित परिवारों को राहत देना और संघर्षरत समुदायों को सपोर्ट करना था।
उन्होंने द्विदलीय इन्फ्रास्ट्रक्चर लॉ को पारित कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस फंडिंग ने समुदायों को नया जीवनदान दिया, उपभोक्ताओं को फिर से छोटी-छोटी खरीदारी के लिए सशक्त बनाया और छोटे कारोबारियों को प्रतिस्पर्धा का अवसर प्रदान किया। विदेश नीति के मोर्चे पर भी हैरिस ने जटिल मुद्दों पर लगातार सैद्धांतिक रुख अपनाया है। वह भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सवाल उठाने, यूक्रेन के साथ मजबूती से खड़े रहने और गाजा के लोगों की दुर्दशा पर चिंता जताने से पीछे नहीं हटीं। जैसा कि विदेश नीति के कई विशेषज्ञ मानते हैं, भारतीय-अमेरिकी निश्चिंत हो सकते हैं कि हैरिस चीन के मुकाबले भारत को अमेरिका के करीब लाने के बाइडन प्रशासन के प्रयासों को जारी रखेंगी।
हैरिस ने अपना नामांकन केवल एक उम्मीदवार के रूप में नहीं बल्कि हमारी सामूहिक आशाओं और सपनों के प्रतिनिधि के रूप में स्वीकार किया है। उन्होंने कहा था, "उन सभी की ओर से जिनकी कहानी केवल धरती के सबसे महान राष्ट्र में लिखी जा सकती है, मैं संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए आपका नामांकन स्वीकार करती हूं।" उस पल हैरिस सिर्फ अपने लिए नहीं खड़ी थीं, वह हम सभी के लिए खड़ी थीं, हर उस अप्रवासी के लिए जिसे सफल होने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ी है, हर उस अप्रवासी बच्चे के लिए जिसने दो दुनियाओं के बीच तनाव देखा है। उनका वो पल हमारे लिए एक बड़ा मौका था।
राजनीति से अलग हटकर देखें तो कमला हैरिस की अप्रवासियों की बेटी से अमेरिकी राजनीति के उच्चतम सोपान तक की यात्रा एक ऐसी कहानी है, जिसने युवाओं के लिए उम्मीदों और संभावना के अपार द्वार खोले हैं। उनकी उम्मीदवारी एक उदाहरण है कि जिन संघर्षों का हमने सामना किया है, वे व्यर्थ नहीं गए। हैरिस का अपनी भारतीय जड़ों के लिए प्यार, अपनी मां-दादा से मिले मूल्यों के प्रति गहरी श्रद्धा दर्शाती है कि हमारी संस्कृति, हमारे मूल्य और हमारी पहचान अमेरिकी समाज का केंद्रबिंदु बन चुके हैं।
कमला हैरिस का नामांकन डेमोक्रेटिक पार्टी का एक ऐसा भविष्य है जो समुदाय, समावेशिता, विविधता के महत्व को समझता है। अपने रनिंग मेट टिम वाल्ज़ की मदद से हैरिस ने दिल से देशभक्ति और देश के लिए प्यार को स्वीकार किया है। यह ऐसा दृष्टिकोण है जो भारतीय अमेरिकी समुदाय के अनुभवों के साथ प्रतिध्वनित होता है जिन्होंने मूल विरासत से जुड़े रहकर भी यहां अच्छी जिंदगी बनाने के लिए अथक प्रयास किया है।
भारतीय-अमेरिकी अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय के भी शुक्रगुजार हैं जिन्होंने अमेरिकी में सभी अल्पसंख्यक समूहों की तरक्की का मार्ग प्रशस्त करने में योगदान दिया है। हैरिस की उम्मीदवारी को कांग्रेस के ब्लैक कॉकस का समर्थन जरूरी है। इसका श्रेय राष्ट्रपति जो बाइडेन श्रेय को भी जाता है जिन्होंने न सिर्फ कमला हैरिस को आगे बढ़ाने के लिए अभूतपूर्व राजनीतिक बलिदान दिया है बल्कि अपना उत्तराधिकारी बनाने के लिए मजबूत समर्थन भी दिखाया है।
अगर ये सब चीजें नहीं होतीं तो कौन जानता था कि भारतीय अमेरिकी समुदाय को अपने जैसे दिखने वाले, स्वदेशी मूल्यों को साझा करने वाले किसी नेता को सर्वोच्च पद की रेस में आने के लिए न जाने कितना लंबा इंतजार करना पड़ता।
(लेखक सुरेश यू कुमार एक लेखक, प्रोफेसर और इंडिया अमेरिकन्स फॉर हैरिस के संस्थापक हैं। इंडिया अमेरिकन्स फॉर हैरिस 28,000 सदस्यों वाला ग्रुप है जो हैरिस-वाल्ज़ का समर्थन करता है। कुमार का पहला उपन्यास 'गर्ल इन द स्कारलेट हिजाब' रूपा प्रकाशन के बैनर तले दिसंबर 2024 से उपलब्ध होगा।)
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