कैलिफोर्निया के उत्तरी जिले के अमेरिकी अटॉर्नी ऑफिस ने बताया है कि सैन होजे, कैलिफोर्निया में एक स्टाफिंग कंपनी चलाने वाले तीन भारतीय-अमेरिकी लोगों ने विदेशी कामगारों के लिए झूठे नौकरी के प्रस्ताव भेजकर H-1B वीजा धोखाधड़ी करना स्वीकार किया है।
सांता क्लारा के किशोर दत्तापुरम ने इस हफ्ते फेडरल अदालत में वीजा धोखाधड़ी और साजिश का अपराध स्वीकार किया। दत्तापुरम के साथ ऑस्टिन, टेक्सास के कुमार अश्वपति और सैन होजे के संतोष गिरि पर 2019 में फर्जी H-1B वीजा आवेदन भेजने का आरोप लगाया गया था। अश्वपति ने 2020 में दोष स्वीकार किया था और गिरि ने अक्टूबर 2024 में अपना अपराध स्वीकार किया।
तीनों ने मिलकर Nanosemantics, Inc. नाम की एक स्टाफिंग कंपनी बनाई थी जो बे एरिया में टेक्नोलॉजी की नौकरियों में विदेशी कामगारों को रखती थी। इस काम को आसान बनाने के लिए ये फर्म नियमित रूप से H-1B पिटीशन भेजती थी। इससे विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में काम करने की अस्थायी इजाजत मिलती थी। लेकिन कोर्ट के दस्तावेजों के अनुसार, दोषियों ने ये दावा किया था कि विदेशी कर्मचारियों के लिए ग्राहक कंपनियों में खास नौकरियां मौजूद हैं, जबकि हकीकत में ऐसी नौकरियां थी ही नहीं।
दत्तापुरम ने कोर्ट में माना कि उन्होंने कंपनियों को वीजा आवेदनों के लिए ग्राहक कंपनी के तौर पर काम करने के लिए पैसे दिए थे, जबकि उन्हें पता था कि ये कंपनियां असल में उन कर्मचारियों को काम पर नहीं रखेंगी। इस कदम से नैनोजमैंटिक्स को नौकरियां मिलने से पहले ही वीजा हासिल करने में मदद मिली। इससे कंपनी को अपने प्रतिस्पर्धियों के मुकाबले फायदा हुआ। दत्तापुरम ने माना कि उनका मकसद यह था कि जब नौकरी के मौके आएं तो वीजा वाले कर्मचारी तुरंत काम करने के लिए तैयार रहें।
प्रत्येक आरोपी को वीजा धोखाधड़ी के लिए 10 साल तक की जेल की सजा और साजिश के लिए 5 साल तक की जेल की सजा का सामना करना पड़ सकता है। दत्तापुरम और गिरि की सजा 24 फरवरी, 2025 को तय की गई है, जबकि अश्वपति की सजा 25 नवंबर, 2024 को तय की गई है।
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