भारत के लिहाज से यह कोई नया खुलासा नहीं है। अलबत्ता बात अगर अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे विकसित और उन्नत देशों के संदर्भ में सामने आती है तो निश्चित ही यह भारतीय मूल के लोगों की फितरत दर्शाने वाली है। और 'खुलासा' यह है कि भारतीय मूल के लोग गैर संचारी रोगों (नॉन कम्यूनिकेबल डिजीज) का शिकार अधिक होते हैं या हो रहे हैं। इसका स्पष्ट और व्यावहारिक कारण यह है कि भारतीय मूल के लोग निवारक स्वास्थ्य देखभाल (प्रीवेंटिव हेल्थ केयर) के प्रति उदासीन रहते हैं। इस तथ्य को दूसरे शब्दों में इस तरह भी कह सकते हैं कि हम भारतीय डॉक्टर के पास तभी जाते हैं जब बीमार पड़ जाते हैं। या कि डॉक्टर के पास जाये बगैर गुजारा नहीं होता। जब तक चलता है, हम चलाते रहते हैं। फिर, भारतीय कहीं चले जाएं अपनी फितरत नहीं छोड़ पाते। लेकिन अगर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे मुल्कों में बसे भारतवंशी भी अपनी सेहत को लेकर यह रवैया रखते हैं तो थोड़ी हैरानी अवश्य होती है।
बहरहाल, भारतीय-अमेरिकी हृदय रोग विशेषज्ञ और व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन की स्वास्थ्य परिषद के उपाध्यक्ष बिंदू कुमार कंसूपाड़ा इससे थोड़ी आगे की बात बताते हैं। बकौल डॉ. कुमार हमने पिछले 50 वर्षों में देखा है कि अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों में दक्षिण पूर्व एशियाई आबादी के बीच हृदय रोग का प्रसार काफी अधिक है। देखा गया है कि यह कम उम्र में होता है। भारतीयों को बहुत कम उम्र में दिल का दौरा पड़ता है। कॉकेशियन (यूरोपीय वंश) लोगों की तुलना में लगभग 10 साल कम उम्र में। मधुमेह का प्रचलन भी बहुत अधिक है। इसका कारण निवारक स्वास्थ्य देखभाल के प्रति लापरवाही है।
यह सही है कि निवारक स्वास्थ्य देखभाल का सीधा संबंध लोगों की आर्थिक हैसियत से जुड़ा है। भारत में तो देसी, विदेशी से लेकर यूनानी और घरेलू नुस्खों व तौर-तरीकों से भी इलाज की व्यवस्था रही है। लेकिन स्वास्थय सेवा-सुविधाओं का एक बहुत बड़ा अंतर गांव-देहात से लेकर शहरों और महानगरों के बीच देखा जा सकता है। स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पूरे भारत में कैसी है यह बात किसी से छिपी नहीं है। लेकिन यहां हमारी बात उस वर्ग के बारे में हो रही है जिसे आर्थिक रूप से मजबूत माना जाता है। तभी वह अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा या न्यूजीलैंड जैसे मुल्क में बसा हुआ है। इन तमाम देशों में स्वास्थ्य सेवाएं उन्नत हैं, उपलब्ध हैं और सुलभ हैं। इन देशों में रहने वाले लोगों के बारे में यह सोचना कि वे निवारक स्वास्थ्य को लेकर उदासीन होंगे कुछ व्यावहारिक नहीं लगता।
लेकिन इस बीच भारत से लेकर दुनिया के तमाम देशों में स्वास्थ्य को लेकर एक नई चेतना योग के माध्यम से पैदा हुई है। भारत में लोग योग की ओर लौट रहे हैं और अमेरिका जैसे देशों में भी लोग योग पद्धति अपनाकर खुद को स्वस्थ और खुशहाल बनाने का जतन कर रहे हैं। योग ने लोगों के जीवन और स्वास्थ्य में एक दृष्टिमान सकारात्मकता पैदा की है। इसके लाभ व्यक्तिगत अनुभवों से विस्तार पा रहे हैं। योग की स्वीकार्यता विकासशील से लेकर विकसित राष्ट्रों में बढ़ी है। 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत की इस प्राचीन विधा-पद्धति पर मुहर लगाई है। व्यापक और व्यावहारिक अर्थों में योग एक तरह से निवारक स्वास्थ्य देखभाल का ही एक कारगर अभ्यास है। और भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योग के 'ब्रांड एंबेसेडर' जैसे हैं।
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