गुयाना में तत्कालीन ब्रिटिश उपनिवेश में गिरमिटिया मजदूरों के रूप में भारतीयों के पहली बार आगमन की 186वीं वर्षगांठ का समारोह धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान स्वर्गीय डॉ. येसु प्रसाद और अशोक रामसरन को विशेष सम्मान दिया गया।
डॉ. प्रसाद और रामसरन दोनों ही भारत सरकार की तरफ से प्रतिष्ठित प्रवासी सम्मान पुरस्कार विजेता हैं। भारतीय स्मारक ट्रस्ट (आईसीटी) 1988 से हर साल भारतीय आगमन दिवस कार्यक्रम का आयोजन करता रहा है। आईसीटी की स्थापना डॉ. प्रसाद ने ही की थी। इस अवसर पर उन्हें विशेष श्रद्धांजलि देते हुए याद किया गया।
वक्ताओं ने गुयाना में भारतीय संस्कृति एवं इतिहास के संरक्षण के प्रयासों के लिए प्रसिद्ध उद्योगपति और परोपकारी डॉ प्रसाद की भूरि भूरि प्रशंसा की। समारोह में उनके परिवारीजन भी उपस्थित थे। उन्होंने ही प्रशस्ति पत्र और सम्मान प्राप्त किया।
भारतीय प्रवासी परिषद (आईडीसी) के अध्यक्ष अशोक रामसरन का जन्म गुयाना में हुआ, हालांकि फिलहाल वह अमेरिका में रहते हैं। रामसरन के प्रयासों के बाद भारत सरकार ने 11 जनवरी 2011 को कोलकाता में कोलकाता मेमोरियल स्थापित किया था। यह मेमोरियल गिरमिटिया मजदूरों के भारत छोड़कर गुयाना जाने की याद में बनाया गया है। इस मेमोरियल का शिलालेख भी रामसरन ने ही लिखा था।
गुयाना में भारतीयों के आगमन की 175वीं वर्षगांठ पर 2013 में रामसरन ने भारत सरकार और आईसीटी के डॉ प्रसाद के साथ मिलकर हाईबरी में कोलकाता मेमोरियल की प्रतिकृति तैयार करवाई थी। इसी जगह पर भारतीयों का पहला जहाज उतरा था। इसके अलावा जॉर्ज टाउन के मॉनूमेंट गार्डेन में भी मेमोरियल बनाया गया था।
आईसीटी के अध्यक्ष हेमराज किसून ने रामसरन को पट्टिका भेंट की जिस पर हाईबरी और कोलकाता में अशोक रामसरन द्वारा लिखे गए शिलालेख का जिक्र करते हुए धन्यवाद दिया गया था।
समारोह में गुयाना के संस्कृति मंत्री चार्ल्स रामसन और भारतीय उच्चायुक्त डॉ. अमित तेलंग भी शामिल हुए। दोनों ने भारतीय संस्कृति और गुयाना के विकास पर इसके सकारात्मक प्रभाव की सराहना की। उपस्थित अतिथियों में अमेरिकी मिशन के उप प्रमुख एड्रिएन गैलानेक और कई अन्य अधिकारी व सामुदायिक नेता भी शामिल थे।
बता दें कि एसएस व्हिटबी जहाज 13 जनवरी 1838 को भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को लेकर कलकत्ता से रवाना हुआ था। इस जहाज पर 249 गिरमिटिया मजदूत थे, जिनमें 233 पुरुष, 5 महिलाएं और 6 बच्चे थे। 112 दिनों की यात्रा करके ये लोग 5 मई 1838 को गुयाना पहुंचे थे। इसके बाद एसएस हेस्परस जहाज 29 जनवरी 1838 को कलकत्ता से चला और 5 मई 1838 की रात को गुयाना पहुंचा। इसमें 165 यात्री सवार थे, जिनमें से 13 की गुयाना पहुंचने से पहले ही मौत हो गई थी।
इसके बाद अगले अगले 80 वर्षों तक लगभग 2,39,000 भारतीय गिरमिटिया मजदूर गुयाना पहुंचे। बड़ी संख्या में भारतीयों को त्रिनिदाद, सूरीनाम, जमैका और अन्य ब्रिटिश उपनिवेशों में भी ले जाया गया। इनमें से अधिकांश श्रमिक कभी भारत वापस नहीं लौटे और वहीं पर बस गए।
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