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नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी ने कहा- वैश्विक समाज ने हमारे बच्चों को नाकाम किया है...

अबू धाबी में इंडियास्पोरा समिट फोरम फॉर गुड (IFG) के मौके पर न्यू इंडिया अब्रॉड से बात करते हुए सत्यार्थी ने आर्थिक और कानूनी प्रगति के बावजूद बाल श्रम, शोषण और पीड़ा के लगातार संकट को रेखांकित किया।

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी। / NIA

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और बाल अधिकार अधिवक्ता कैलाश सत्यार्थी का कहना है कि बच्चों के अधिकारों की रक्षा के अंतरराष्ट्रीय प्रयास हाल के वर्षों में उनकी स्थिति पर पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं, यह अलग बात है कि ये प्रयास कई कानूनों और अध्ययनों का विषय रहे हैं। 

अबू धाबी में इंडियास्पोरा समिट फोरम फॉर गुड (IFG) के मौके पर न्यू इंडिया अब्रॉड से बात करते हुए सत्यार्थी ने आर्थिक प्रगति और कानूनी प्रगति के बावजूद बाल श्रम, शोषण और पीड़ा के लगातार संकट को रेखांकित किया। सत्यार्थी ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रूप में और वैश्विक समाज के रूप में हम अपने बच्चों को विफल कर रहे हैं क्योंकि हम उनके प्रति ईमानदार नहीं हैं।

आईना दिखाते हैं आंकड़े
चौंकाने वाले आंकड़ों का हवाला देते हुए सत्यार्थी ने कहा कि 160 मिलियन बच्चे अभी भी बाल श्रम में फंसे हुए हैं, 250 मिलियन स्कूल से बाहर हैं और 476 मिलियन बच्चे युद्ध क्षेत्रों या संघर्ष क्षेत्रों में रहने को मजबूर हैं। सत्यार्थी ने वर्तमान समय में धन संचय और बाल कल्याण के बीच बढ़ती असमानता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि पिछले लगभग 10 वर्षों में दुनिया 11 ट्रिलियन डॉलर से अधिक अमीर हो गई है लेकिन हमारे पास 160 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जो अभी भी बाल श्रम, गुलामी और शोषण में फंस रहे हैं।

नोबेल पुरस्कार विजेता विशेष रूप से वैश्विक शासन, कॉर्पोरेट क्षेत्रों और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों के आलोचक थे। उन्होंने नैतिक जवाबदेही में 'भारी कमी' को उजागर किया। उन्होंने कहा कि जब नैतिक जवाबदेही की बात आती है तो हम इसमें भारी कमी देखते हैं और यह बढ़ रही है। सत्यार्थी ने अफसोस जताया कि हालांकि संस्थाएं और नीति निर्माता वैश्विक समस्याओं का बड़े पैमाने पर विश्लेषण करते हैं लेकिन उनके समाधान अक्सर बुनियादी मुद्दों को हल करने के बजाय नए संकट पैदा करते हैं।

युद्ध से प्रभावित बच्चों की दुर्दशा को रेखांकित करते हुए सत्यार्थी ने कहा कि बच्चे कभी भी युद्ध, विद्रोह, जलवायु संकट, गरीबी या किसी भी अपराध के लिए जिम्मेदार नहीं रहे हैं। ये तमाम संकट हम यानी बुद्धिमान लोगों, शक्तिशाली जमात ने पैदा किये हैं और बच्चों को दिये हैं। बच्चे ही इन स्थितियों के सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि संघर्ष क्षेत्रों में बच्चों को होने वाले आघात और पीड़ा के खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। उनके चरमपंथी समूहों में शामिल होने की भी आशंका है।

सत्यार्थी ने बाल श्रम और बाल दासता के उन्मूलन के लिए लंबे समय से अभियान चलाया है। चुनौतीपूर्ण हालात के बाद भी वे बाल श्रम मुक्त दुनिया हासिल करने को लेकर आशान्वित हैं। इस पर वे कहते हैं कि बेशक, ऐसा होगा। यह एक बड़ा सपना है। इस दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने और वैश्विक करुणा के लिए सत्यार्थी ने एक और आंदोलन शुरू किया है जिसका उद्देश्य इन संकटों से निपटने के लिए जिम्मेदारी और तात्कालिकता की गहरी भावना को बढ़ावा देना है।

वैश्विक करुणा के लिए आंदोलन
सत्यार्थी ने आंदोलन की तीन प्रमुख पहलों को रेखांकित किया है। सहानुभूति-संचालित कार्रवाई को मापने के लिए 'करुणा भागफल' (CQ) विकसित करना, दयालु नेतृत्व को बढ़ावा देना और दुनिया का पहला वैश्विक अनुकंपा नेतृत्व केंद्र स्थापित करना। हालांकि केंद्र के लिए स्थान अभी तय नहीं हुआ है लेकिन सत्यार्थी ने इसके आधार के रूप में भारत को प्राथमिकता दी है।

प्रवासियों से आग्रह
सत्यार्थी ने प्रवासी भारतीयों से अपने मिशन में शामिल होने का आह्वान किया और उनसे उदाहरण पेश करके नेतृत्व करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि मैं पैसे नहीं मांग रहा हूं,बल्कि मैं उनसे एक दयालु नेता बनने के लिए कह रहा हूं। आंदोलन में शामिल होने का आग्रह कर रहा हूं। 

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