दुनिया के देश अपनी सेनाओं पर दिल खोलकर खर्च कर रहे हैं। साल 2023 में वैश्विक सैन्य खर्च अभूतपूर्व रूप से बढ़कर 2443 बिलियन डॉलर हो गया। 2009 के बाद से यह हर साल होने वाले बढ़ोतरी में सबसे ज्यादा है। इसमें भारत का भी बड़ा योगदान है।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने सभी पांच भौगोलिक क्षेत्रों का अध्ययन करके ये निष्कर्ष निकाला है। इसमें यूरोप, एशिया, ओशिनिया और मध्य पूर्व के सैन्य खर्चों में खासतौर से सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
2023 में भारत ने दुनिया के चौथे सबसे बड़े सैन्य खर्च करने वाले देश के रूप में अपनी स्थिति को मजबूत किया। भारत सरकार ने रक्षा खर्च के लिए 83.6 बिलियन डॉलर की रकम आवंटित की, जो इससे पिछले वर्ष की तुलना में 4.2% अधिक है।
भारत ने मई 2020 में लद्दाख सीमा पर टकराव के बाद चीन के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपनी रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के प्रयास तेज किए हैं। भारत सरकार लड़ाकू जेट से लेकर मानव रहित ड्रोन जैसी क्षमताओं को आधुनिक बनाने पर रणनीतिक जोर दे रही है।
2024-25 के लिए भारत का रक्षा बजट पिछले वर्ष के संशोधित अनुमानों की तुलना में थोड़ा कम है, इसके बावजूद यह 2023-24 के बजट अनुमानों से उल्लेखनीय रूप से अधिक है। यह दिखाता है कि सुरक्षा संबंधी क्षेत्रीय चुनौतियों से निपटने को लेकर वह कितना सक्रिय है।
नाटो के 31 सदस्य देशों का 2023 में सैन्य खर्च कुल मिलाकर 1341 बिलियन डॉलर रहा, जो कि दुनिया के कुल सैन्य खर्च का 55% है। इसमें अमेरिका 916 बिलियन डॉलर के सैन्य खर्च के साथ सबसे ऊपर है। उसका सैन्य खर्च नाटो के कुल खर्च का 68% रहा है।
SIPRI के लोरेंजो स्काराज़ाटो बताते हैं कि नाटो के यूरोपीय सदस्य देशों में सुरक्षा को लेकर नजरिए में मौलिक बदलाव आया है। वे अब सेना पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का ज्यादा हिस्सा खर्च कर रहे हैं। 2023 में 11 नाटो सदस्यों ने अपनी GDP का 2% से अधिक खर्च इस लक्ष्य को पूरा करने पर इस्तेमाल किया। नाटो के 28 सदस्य देशों ने अपने सैन्य खर्च का कम से कम 20% हिस्सा उपकरणों पर लगाया।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट स्टॉकहोम स्थित एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है। 1966 में स्थापित ये संगठन सशस्त्र संघर्ष, सैन्य खर्च, हथियार व्यापार और हथियार नियंत्रण संबंधी डेटा, विश्लेषण और सुझाव प्रदान करता है।
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