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अल्जाइमर का जल्द पता लाने का तरीका खोजा, नितिन रेड्डी देसानी का ग्लोबल एआई समिट में सम्मान

देसानी का मॉडल अल्जाइमर का पता लगाने के पारंपरिक तरीकों से काफी बेहतर है। इसकी सटीकता दर 97.75 प्रतिशत है।

नितिन रेड्डी देसानी की खोज से अल्जाइमर के लाखों रोगियों को लाभ होगा। / Image - Nithin Reddy

हेल्थकेयर एआई और मशीन लर्निंग के विशेषज्ञ डेटा इंजीनियर नितिन रेड्डी देसानी को 2024 के ग्लोबल एआई समिट में वैश्विक मान्यता मिली। अल्जाइमर बीमारी का शुरुआत में ही पता लगाने में उनकी क्रांतिकारी रिसर्च के लिए यह सम्मान दिया गया है।

ग्लोबल एआई समिट का आयोजन इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (आईईईई) द्वारा किया गया था। नितिन देसानी रिवियर यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र हैं। उन्होंने दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी से बीटेक की डिग्री लेने के बाद रिवियर यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग में एमटेक किया है। 

देसानी की ग्राउंडब्रैकिंग रिसर्च का टाइटल "ऑप्टिमाइज्ड हाइब्रिड डीप न्यूरल नेटवर्क्स फॉर एफिशिएंट अल्जाइमर डिजीज क्लासिफिकेशन" है। इस रिसर्च ने स्वास्थ्य सेवा खासकर अल्जाइमर रोग का शुरुआत में ही पता लगाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 

एआई और टेक्नोलीजी लीडर्स के प्रतिष्ठित कार्यक्रम में पेश इस रिसर्च में एक हाइब्रिड तंत्रिका नेटवर्क मॉडल पेश किया गया है जो पार्टिकल स्वार्म ऑप्टिमाइजेशन (पीएसओ) और रीस्क्वायर ऑप्टिमाइज़ेशन एल्गोरिदम (आरओए) जैसी एडवांस ऑप्टिमाइज़ेशन तकनीकों को एकीकृत करता है। 

देसानी का मॉडल इलाज के पारंपरिक तरीकों से काफी बेहतर है। इसकी मदद से अल्जाइमर रोग का शुरू में ही पता लगाया जा सकता है। इसने 97.75 प्रतिशत की सटीकता दर हासिल की है। यह इनोवेशन अल्जाइमर के मरीजों के इलाज में काफी मददगार साबित हुआ है।

आईईईई के सीनियर मेंबर के रूप में देसानी का काम एआई और हेल्थकेयर में उनके योगदान को रेखांकित करता है। उनका मॉडल टी 1 एमआरआई और फ्लोरबेटापीर पीईटी स्कैन से न्यूरोइमेजिंग डेटा का इस्तेमाल करता है और मस्तिष्क में होने वाले सूक्ष्म परिवर्तनों की पहचान के लिए मल्टी मॉडल अप्रोच प्रदान करता है। 

इस मॉडल को दुनिया भर के क्लिनिकों में लगाया जा सकता है जिससे लाखों रोगियों को लाभ होगा। इस रिसर्च में देसानी के अलावा आनंद गणेश बालकृष्णन, प्रीति पलानीसामी और साईगुरुदत्त पामुलपर्थिवेंकट जैसे विशेषज्ञों का भी सहयोग रहा है। 

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