गाजा में इस संघर्ष को छह महीने हो गये हैं। 7 अक्टूबर को हमास के आतंकवादी हमले से शुरू हुई जमीन की उस छोटी सी पट्टी में चल रही घटनाओं को दर्दनाक रूप से याद करने के अलावा कोई भी समझदार व्यक्ति इस मसले में अब तक कुछ सकारात्मक नहीं देख पा रहा। अब तक युद्ध का एकमात्र 'हासिल' क्रूरता के एक स्तर से दूसरे स्तर की ओर बढ़ना रहा है। वर्ल्ड सेंट्रल किचन (WCK) के काफिले पर हुए हमले में सात श्रमिकों की हत्या को कोई और कैसे देख सकता है जबकि संगठन का एकमात्र उद्देश्य केवल आवश्यक वस्तुओं के बिना रहने वाले 20 लाख से अधिक गाजावासियों की भूख और दुखों को कम करने में सहायता करना था।
किसी आतंकवादी हमले की प्रतिक्रिया के नाम पर गाजा में क्या हो रहा है यह जानने के लिए किसी नोबेल पुरस्कार विजेता की आवश्यकता नहीं है। इसी तरह सुधि जनों को यह जानने के लिए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की आवश्यकता नहीं है कि मानवता के विरुद्ध अपराध क्या हैं। यदि आतंकवाद उस सूची में से एक है तो भूमि की एक छोटी सी पट्टी (जिसमें सैकड़ों हजारों लोग रहते हैं) को बर्बाद करना और वहां के बाशिंदों को भोजन, पानी, बिजली और चिकित्सा सुविधाओं से वंचित करना निश्चित रूप से उसी श्रेणी में वर्गीकृत किए जाने वाले व्यवहार का एक और रूप है। और इससे भी बुरी बात यह है कि WCK के वरिष्ठ अधिकारी यह आरोप लगा रहे हैं कि उनके काफिले को 'कार दर कार' निशाना बनाया गया। यह 'निशाना' उस किसी भी कमजोर प्रस्ताव को खारिज कर देता है कि इजरायली जेट गलत जानकारी के बाद गए थे।
बाइडन प्रशासन निश्चित रूप से इस मामले में रुई धुन रहा है। वॉशिंगटन ने युद्धविराम पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के नवीनतम प्रस्ताव को 'अनुमति' दी है, जो इसे किसी भी प्रशंसा के योग्य नहीं बनाता। अब अमेरिका का गेमप्लान सबके सामने है। एक तरफ गाजावासियों की दुर्दशा पर शोर मचाना और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को 'चेतावनी' देना। और दूसरी तरफ यह सुनिश्चित करना कि युद्ध सामग्री और लड़ाकू विमान उसके सहयोगी तक समय पर पहुंच जाएं।
यही नहीं, तथाकथित चरमपंथी रिपब्लिकंस के कारण तेल अवीव तक सहायता न पहुंचने को लेकर प्रतिनिधि सभा में की गई सारी बयानबाजी भी विफल रही है। व्हाइट हाउस, पेंटागन और अमेरिकी खुफिया एजेंसियां कानूनी तौर पर कांग्रेस की मंजूरी को रोकने में माहिर हैं! और यह पहली बार नहीं है जब वे इस तरह की कवायद में शामिल होंगे। कहने का तात्पर्य यह है कि जरूरत के समय किसी सहयोगी की मदद करने में असमर्थता को लेकर हाथ मलने और घड़ियाली आंसू बहाने से हानि तय है। खासकर तब जब सामने चुनाव हो।
जो बाइडन दशकों से अमेरिका की सियासत देख रहे हैं। लिहाजा उन्हे तो यह मालूम होना चाहिए कि पहले छोटे से बच्चे को चुटकी लेकर रुलाना और फिर पालना हिलाकर और झुनझुना बजाकर उसे चुप कराने का खेल हर समय कारगर नहीं होता। गाजा में व्हाइट हाउस की विदेश नीति इतनी दयनीय है कि यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि डेमोक्रेटिक वामपंथी, केंद्र, प्रगतिवादी और निर्दलीय लोग गंभीरता से अपने वोट पर पुनर्विचार कर रहे हैं। इसमें डेमोक्रेट्स का वह वर्ग भी जोड़ लें जो 2024 में बाइडन को नहीं देखना चाहता। यानी और भी मुसीबत। ऐसे में अब्राहम लिंकन की एक बात को याद किया जाए- आप कुछ समय के लिए सभी लोगों को मूर्ख बना सकते हैं, आप कुछ लोगों को हर बार मूर्ख बना सकते हैं...लेकिन आप सभी लोगों को हर समय मूर्ख नहीं बना सकते।
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