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रियासी से ढाका तक : एक अंतरराष्ट्रीय वैचारिक युद्ध

यदि पश्चिमी विश्लेषक और नीति निर्माता अंतर्निहित वैचारिक प्रेरणाओं को देखे-समझे बिना इन घटनाओं के केवल राजनीतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो उपमहाद्वीप में अराजकता, हिंसा और आतंक न केवल जारी रहेगा बल्कि तेजी से बढ़ेगा।

हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) के हिंदू समुदाय ने फ्रेमोंट, कैलिफ़ोर्निया में एक रियासी स्मरण रैली का आयोजन किया। / X.com/@HinduAmerican

भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के रियासी में एक भीषण आतंकवादी हमले में नौ हिंदू तीर्थयात्रियों के मारे जाने के लगभग दो महीने बाद हिंदू एक बार फिर ढाका और बांग्लादेश के अन्य हिस्सों में हिंसक इस्लामी विचारकों के निशाने पर हैं। 

रियासी के मामले में यह कुख्यात लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की शाखा, द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) थी, जिसने हमले की जिम्मेदारी ली थी। बेशक, लश्कर और उसके नए अवतार TRF का जम्मू-कश्मीर और भारत के अन्य हिस्सों में हिंदू नागरिकों को निशाना बनाने का घृणित इतिहास रहा है। 

लगभग 1600 मील दूर ढाका में जो लोग इस्लामी राज्य बनाने की लश्कर/टीआरएफ की वैचारिक और धार्मिक-राजनीतिक दृष्टि को साझा करते हैं वे इसी तरह हिंदू विरोधी हिंसा में संलिप्त हैं। 

हालांकि बांग्लादेश में वर्तमान अराजकता और हिंसा स्पष्ट रूप से सरकारी कोटा नीति के खिलाफ छात्रों के विरोध प्रदर्शन और शेख हसीना की अवामी लीग सरकार के साथ बड़े मुद्दों के कारण हुई है लेकिन इसमें देश के सबसे बड़े और सबसे शक्तिशाली इस्लामी समूह जमात-ए-इस्लामी (JeI) की भूमिका को कमतर करके नहीं आंका जा सकता। बड़े पैमाने पर दंगे, अनियंत्रित हिंसा और लूटपाट तथा हिंदू घरों, मंदिरों और व्यवसायों पर लक्षित हमलों के दृश्यों ने अंतरराष्ट्रीय ध्यान खींचा है। अन्यथा दावा करने और यहां तक ​​कि सार्वजनिक रूप से हिंसा की निंदा करने के बावजूद जमीनी स्तर पर कई मानवाधिकार समूहों ने इस बात की पुष्टि की है कि JeI, इसकी छात्र शाखा इस्लामी छात्र शिबिर (ICS) और BNP कार्यकर्ता हिंदू विरोधी हिंसा के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं।

लेकिन हिंसा की इस वर्तमान लड़ाई में जमात की भागीदारी कोई नई घटना नहीं है। यह देश की स्थापना से ही चली आ रही है जब जमात ने देश के 1971 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान देश की हिंदू आबादी के खिलाफ नरसंहार करने के लिए पश्चिमी पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर काम किया था।

जमात-ए-इस्लामी के हिंसा के इतिहास को मिटाना
जमात-ए-इस्लामी (JeI) बांग्लादेश जमात संगठन की एक शाखा है जिसकी स्थापना 1941 में मौलाना अबुल अला मौद्दुदी ने अविभाजित भारत में की थी। जमात ने अपनी प्रेरणा इस्लाम के देवबंदी स्कूल से ली जो क्षेत्र के कई देशों में धार्मिक चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए जाना जाता है और उसने खुद को मुस्लिम भाईचारे के अनुरूप बनाया। 

JeI और ICS का कट्टरवाद और हिंसा का एक लंबा इतिहास है। दोनों बांग्लादेश में तालिबान शैली का शासन बनाने का प्रयास करते हैं। JeI ने कई आतंकवादी समूहों के लिए वैचारिक केंद्र और भर्ती आधार के रूप में कार्य किया है। इनमें हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी बांग्लादेश (HuJI-B), विदेश विभाग द्वारा नामित विदेशी आतंकवादी संगठन (FTO) और जमातुल मुजाहिदीन बांग्लादेश (JMB) शामिल हैं। 

राजनीतिक शिकायतों की आड़ में उन्होंने अपने धार्मिक-राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगातार हिंसक रणनीति का इस्तेमाल किया है। इसमें बमबारी, राजनीतिक हत्याएं और लक्षित हत्याएं, सुरक्षा कर्मियों पर हमले तथा अल्पसंख्यकों और नास्तिकों के खिलाफ बड़े पैमाने पर हिंसा शामिल है।

2001 में जब उन्होंने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) के साथ गठबंधन सरकार बनाई तो बड़े पैमाने पर हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई। इसके बाद JeI-ICS कार्यकर्ताओं ने एक बार फिर अल्पसंख्यकों पर हमले तेज कर दिए। उदाहरण के लिए बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई एकता परिषद के अनुसार, नवंबर 2013 से 495 हिंदू घरों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया, 585 दुकानों पर हमला किया गया या लूट लिया गया और 169 मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। वर्ष 2013 से 2021 के बीच कुल मिलाकर हिंदू विरोधी हिंसा की कम से कम 3,600 घटनाएं हुईं। ऐसा ऐन ओ सलीश केंद्र (ASK) बांग्लादेशी मानवाधिकार समूह का अनुमान है। 2021 में हिंदू त्योहार दुर्गा पूजा के बाद हिंदू घरों, मंदिरों और व्यवसायों पर एक बार फिर हमला किया गया जब ईशनिंदा के झूठे आरोप सोशल मीडिया पर फैल गए। और जिस तरह बांग्लादेश में अतीत की हिंदू विरोधी हिंसा को जटिल राजनीतिक गतिशीलता के हिस्से के रूप में कम कर दिया गया है या समझा दिया गया। यानी चूंकि हिंदू धर्मनिरपेक्ष अवामी लीग के समर्थक हैं इसलिए उन पर हमला किया जाता है। उसी तरह आज कुछ टिप्पणीकारों द्वारा हिंसा को उचित ठहराया जा रहा है।

जमात-ए-इस्लामी और ढाका-रियासी का कनेक्शन
यह संयोग नहीं है कि जमात-ए-इस्लामी का भी जम्मू-कश्मीर में एक बेहद सक्रिय अध्याय है और वह वहां सक्रिय आतंकवादी समूहों को साजो-सामान और वैचारिक समर्थन प्रदान करता है। लश्कर का बांग्लादेश में अन्य कट्टरपंथी समूहों के साथ व्यापक नेटवर्क है।

हालांकि रियासी आतंकी हमले और बांग्लादेश में लक्षित हिंदू विरोधी हिंसा के बीच कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है लेकिन जो चीज उन्हें एक साथ दर्शाती है वह इसमें शामिल गैर-राज्य के लोगों की साझा वैचारिक जड़ें और उनके सामान्य धार्मिक-राजनीतिक लक्ष्य हैं।

यदि पश्चिमी विश्लेषक और नीति निर्माता अंतर्निहित वैचारिक प्रेरणाओं को देखे-समझे बिना केवल इन घटनाओं के राजनीतिक पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं तो उपमहाद्वीप में अराजकता, हिंसा और आतंक न केवल जारी रहेगा बल्कि तेजी से बढ़ेगा। यह विशेष रूप से बांग्लादेश के अनिश्चित हालात को देखते हुए बड़ी चिंता का सबब है। सवाल यह भी है कि क्या इस्लामी उग्रपंथी सत्ता पर कब्जा करने का प्रयास करेंगे और/या क्या बांग्लादेश एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय इस्लामी आतंकवादी समूहों के लिए स्वर्ग बन जाएगा। जैसा कि भारतीय सुरक्षा विश्लेषक सुशान सरीन कहते हैं।

आगे क्या होना है यह तो केवल समय ही बताएगा लेकिन एक बात स्पष्ट है कि पश्चिमी नीति निर्माता अब इस अस्तित्व संबंधी खतरे को लेकर अपनी आंखें नहीं मूंद सकते। 

(लेखक हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन में नीति एवं कार्यक्रम के प्रबंध निदेशक और सह-कानूनी सलाहकार हैं। इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखक के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों)

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