समय-समय पर मुट्ठी भर भारतीय-अमेरिकी विधायक ग्रीन कार्ड या स्थायी निवास के लिए देश के कोटे से छुटकारा पाने की जद्दोजहद करते दिखते हैं। वे अपनी जगह सही हो सकते हैं मगर अंदर से वे यह जानते हैं कि समितियों के माध्यम से यह संभव नहीं है, सदन और सीनेट के पूर्ण कक्षों की तो बात ही छोड़ दें। विधायकों को यह भी दुख है कि वॉशिंगटन डीसी में विषाक्त राजनीतिक माहौल को देखते हुए कुछ भी होता नहीं दिखता। अलबत्ता यह उनके मतदाताओं के लिए एक छोटा सा संदेश होता है कि हम आपकी चिंताओं को नहीं भूले हैं।
लोगों के लिए यह कहना आसान है कि अगर 1986 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन दिवंगत महान उदारवादी एडवर्ड कैनेडी जैसे डेमोक्रेट के साथ समझौता कर सकते थे तो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट के लिए एक साथ बैठना और इस समस्या का समाधान निकालना इतना मुश्किल क्यों है। लेकिन लोग हालात में बदलाव को भूल जाते हैं। 1986 में संयुक्त राज्य अमेरिका में अवैध अप्रवासन 32 लाख के आसपास था और आज यह आंकड़ा 1 करोड़ 20 लाख या उससे अधिक है।
और यह तो केवल शुरुआत है। पिछले कुछ वर्षों में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स के बीच इस बात पर व्यापक मतभेद रहे हैं कि समस्या को कैसे ठीक किया जाए। कई समाधान सामने रखे भी गए मगर उनमें से कुछ एकदम अजीब या दिमाग चकरा देने वाले हैं। और जब भी कुछ समझदारी वाली बात नजर आती है तो हमेशा राष्ट्रपति चुनाव का राजनीतिक एजेंडा सामने खड़ा रहा है। उदाहरण के लिए सदन में कट्टरपंथियों ने यूक्रेन और इजराइल के लिए आपातकालीन सहायता प्रावधान को सीमा सुरक्षा का हवाला देकर पारित करने से इनकार कर दिया।
अभी 5 नवंबर, 2024 लगभग सात महीने दूर है। वास्तव में मामला इस हद तक पहुंच गया है कि जनमत सर्वेक्षण अब अमेरिकियों के लिए पारंपरिक अर्थव्यवस्था, नौकरियों और पंपों पर गैस की कीमत से परे अप्रवासन को सबसे बड़ी चिंता के रूप में दिखा रहे हैं। और इन हालात ने पहले से ही खतरे की घंटी बजा दी है कि अगर मौजूदा सत्ताधारी जो बाइडन को वोट नहीं दिया गया तो क्या होगा।
अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भले ही एडॉल्फ हिटलर की माइन कैम्फ को 'कभी न पढ़ा' हो लेकिन उन्होंने यह कहकर फासीवादी और नाजियों की बयानबाजी का इस्तेमाल किया है कि दक्षिणी सीमाओं को पार करने वाले अवैध लोग अमेरिका के "खून में जहर घोल रहे हैं"। इस भड़काऊ टिप्पणी के बाद भी बात कहां रुकी। ग्रैंड ओल्ड पार्टी के कट्टरपंथी अब यह कह रहे हैं कि गाजा में चल रहे संकट के मद्देनजर सभी अरब अमेरिकियों को बाहर निकाल दिया जाएगा और अमेरिका में प्रवेश करने की इच्छा रखने वाले किसी भी फिलिस्तीनी को वीजा देने से इनकार कर दिया जाएगा। .
बहरहाल, वॉशिंगटन में अप्रवासन के मामले पर किसी भी तरह का निष्कर्ष निकलने में काफी समय लग सकता है। तब तक सीमा पर होने वाली मौतें, आत्महत्याएं और हिरासत केंद्रों में आत्महत्या के प्रयास की भयावह कहानियां, जिनमें भारत की गरीब आत्माएं भी शामिल हैं, सुर्खियां बनती रहेंगी।
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