संयुक्त राष्ट्र में भारत की पहली महिला राजदूत बनकर इतिहास रचने वाली सीनियर डिप्लोमेट रुचिरा कंबोज करीब चार दशक के शानदार करियर के बाद शनिवार को रिटायर हो गईं। 60 वर्षीय रुचिरा ने एक्स पर लिखा कि धन्यवाद भारत, इतने असाधारण वर्षों की सेवा और अविस्मरणीय अनुभवों के लिए।
Thank you, Bharat , for the extraordinary years and unforgettable experiences. pic.twitter.com/VbkKlW6wOg
— Ruchira Kamboj (@ruchirakamboj) June 1, 2024
रुचिरा कंबोज भारतीय विदेश सेवा के 1987 बैच की टॉपर थीं। उन्होंने 2 अगस्त 2022 को संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि का पद ग्रहण किया था। वह यूएन में अपने ओजस्वी भाषणों और भारत की बात को दमदार तरीके से रखने के लिए मशहूर थीं।
रुचिरा कंबोज की राजनयिक यात्रा 1989 में शुरू हुई थी। उस समय उन्हें फ्रांस में भारतीय दूतावास में थर्ड सेक्रेटरी नियुक्त किया गया था। वह इस पद पर 1991 तक रहीं। 1991 से 1996 तक उन्होंने भारतीय विदेश मंत्रालय के यूरोप वेस्ट डिवीजन में अंडर सेक्रेटरी के रूप में काम किया। 1996-99 तक पोर्ट लुइस मॉरीशस में भारतीय उच्चायोग में फर्स्ट सेक्रेटरी (आर्थिक एवं वाणिज्यिक) के रूप में सेवाएं दीं।
भारतीय मिशन की वेबसाइट के अनुसार, रुचिरा ने इसके बाद दिल्ली लौटकर जून 1999 से मार्च 2002 तक विदेश मंत्रालय में विदेश सेवा कार्मिक एवं कैडर विभाग की प्रभारी उप सचिव और बाद में निदेशक के रूप में सेवाएं दीं। वह इस प्रमुख प्रशासनिक पद पर सबसे लंबे समय तक सेवाएं देने वालों में से एक थीं।
कई जगहों पर तैनाती के बाद रुचिरा कंबोज पहली बार 2002 से 2005 तक न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में काउंसलर के रूप में तैनात रहीं। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद सुधार, मध्य पूर्व संकट जैसे कई राजनीतिक मुद्दों से निपटने में सरकार की मदद की।
वह कुछ समय के लिए राष्ट्रमंडल सचिवालय लंदन में महासचिव कार्यालय की उप प्रमुख भी रही थीं। 2011-2014 तक वह भारत की चीफ ऑफ प्रोटोकॉल रहीं। वह भारत सरकार की पहली ऐसी महिला अधिकारी हैं, जिन्होंने यह पद संभाला। रुचिरा कंबोज ने दक्षिण अफ्रीका व लेसोथो में उच्चायुक्त और भूटान के राजदूत के रूप में भी कार्य किया है।
रुचिरा की निजी जिंदगी के बारे में बताएं तो उनकी शादी दिवाकर कंबोज से हुई है। उनकी एक बेटी है। उनके दिवंगत पिता भारतीय सेना में अधिकारी थे। उनकी मां दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत की प्रोफेसर रही हैं।
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