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भारत-पाकिस्तान प्रतिद्वंद्विता से अलग हुए परिवार छोड़ चुके हैं उम्मीदें...

भारत-पाक दोनों ही इस सप्ताह अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। 1947 में विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच तीन बड़े युद्ध और अनगिनत सीमा संघर्ष हुए हैं।

भारत-पाकिस्तान के राष्ट्रीय ध्वज। / Unsplash

हंडरमैन के हिमालयी दर्रों पर पुराना व्यापार मार्ग किसी समय समुदायों को एक साथ लाता था लेकिन ऊबड़-खाबड़ चोटियों का उपयोग अब परमाणु ताकत से लैस प्रतिद्वंद्वियों यानी भारत और पाकिस्तान द्वारा किलेबंदी के रूप में किया जाता है।

66 वर्षीय भारतीय खुबानी किसान गुलाम अहमद किशोरावस्था में युद्ध की विभीषिका के कारण अपने माता-पिता से अलग हो गए थे। क्योंकि उनके गांव का नियंत्रण पाकिस्तान से भारत के हाथों में चला गया था। अब वह अपनी मां की कब्र देखने का सपना देखते हैं। यदि क्रॉसिंग खुली होती तो पाकिस्तानी क्षेत्र तक 50 किलोमीटर (30 मील) की एक दिन की यात्रा होती। लेकिन अब उस जगह जाने के लिए लगभग 2,500 किलोमीटर (1,550 मील) की घूमकर यात्रा करनी होती है। वीजा मिलना कठिन है और वह खर्च भी वहन नहीं कर सकते।

अहमद कहते हैं- अब हम क्या कर सकते हैं। यहां कई लोग मिलने की चाहत में मर चुके हैं। भारत और पाकिस्तान के पास केवल एक सख्ती से प्रतिबंधित सीमा बिंदु है जहां से लोग सीमा पार कर सकते हैं। सुदूर दक्षिण में पंजाब राज्य में। लेकिन फिर भी बहुत कम लोग ऐसा करते हैं। प्रतिद्वंद्वी, भारत-पाक दोनों ही इस सप्ताह अपना 77वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। 1947 में विभाजन के बाद दोनों देशों के बीच तीन बड़े युद्ध और अनगिनत सीमा संघर्ष हुए हैं।

विभाजित कश्मीर के नियंत्रण को लेकर दोनों देशों में कड़वाहट बनी हुई है। अहमद कहते हैं कि अगर कोई इस सीमा को फिर से खोलता है तो कई लोग वहां चले जाएंगे। और वहां से कई लोग रिश्तेदारों से मिलने यहां आएंगे।

करगिल क्षेत्र में स्थित अहमद का गांव कश्मीर को देशों के बीच विभाजित करने वाली नियंत्रण रेखा पर, सिंधु नदी की उग्र हिमनदी के पिघले पानी की सहायक नदी के किनारे स्थित है। बर्फ से ढकी मोहक चोटियां प्रतिद्वंद्वी सेना चौकियों वाले गांव को छाया देती हैं।

'पुकार'
1999 में नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच आखिरी बड़ी झड़प का स्थल भी करगिल ही था। 49 वर्षीय अली केवल एक नाम का उपयोग करता है। गर्मियों में वह एक टूर गाइड होता है जब उत्सुक पर्यटक घूमने आते हैं। अन्यथा वह सामान ले जाने वाले गधों के पीछे चलता है। इन गधों पर लादकर भारतीय सैन्य पर्वतीय चौकियों पर सामान जाता है। वह सीमा पार अपने चाचा के परिवार से कभी नहीं मिला। अली ने कहा कि मेरी मां के भाई और उनका पूरा परिवार दूसरी तरफ है। उनकी मां जुदाई के गम में रोती रहती हैं।

अली ने 1999 में 10-सप्ताह के भयानक संघर्ष को याद किया जिसमें कम से कम 1,000 लोग मारे गए थे। अली ने कहा कि वह वास्तव में एक कठिन दौर था। वह बताता है कि उस समय गांव के लोग पहाड़ की गुफाओं में कैसे आश्रय लेते थे- लोग केवल रात में ही बाहर आते थे। खेतों को पानी देने और जानवरों की देखभाल करने। 

'दूरियां'
सापेक्ष शांति की एक चौथाई सदी के बाद भी संकरी घाटी अब भी बहुत-कम पृथक है। भारत की सेना ने सड़कों और दूरसंचार लाइनों जैसे रणनीतिक बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है। दशकों की चुप्पी के बाद अब परिवार ऑनलाइन जुड़ सकते हैं। संदेशों का आदान-प्रदान कर सकते हैं- या पहली बार भी। करगिल के दिग्गज मेजर जनरल लखविंदर सिंह कहते हैं कि 1999 में यहां कुछ भी नहीं था। मगर अब छोटी-छोटी बस्तियां वजूद ले रही हैं, नए होटल बन रहे हैं।

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