अमेरिका में मतदान शुरू हो गया है। लेकिन क्या आपको पता है कि अगला राष्ट्रपति चुनने की असल प्रक्रिया क्या है। यहां राष्ट्रपति राष्ट्रीय स्तर पर पॉपुलर वोट से नहीं बल्कि इलेक्टोरल कॉलेज में बहुमत हासिल करने से बनता है। इस सिस्टम में अमेरिका के 50 राज्यों और कोलंबिया जिले को उनकी आबादी के आधार पर इलेक्टोरल वोट आवंटित किए जाते हैं। इनमें से जिसे ज्यादा वोट मिलेंगे, वही राष्ट्रपति बनेगा। आइए बताते हैं, राष्ट्रपति चुनाव से संबंधित कुछ सवालों के आसान जवाब-
इलेक्टोरल कॉलेज यानी निर्वाचक मंडल क्या है?
मतदाता जब राष्ट्रपति चुनने के लिए मतदान करने जाते हैं तो उन्हें आमतौर पर केवल राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के नाम दिखते हैं। हालांकि वो असल में मतदाताओं के एक ग्रुप या 'स्लेट' के लिए मतदान करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर कुल 538 इलेक्टोरल वोट या इलेक्टर्स होते हैं। किसी उम्मीदवार को जीतने के लिए इनमें से 270 वोट हासिल करने होते हैं।
इलेक्टर्स आमतौर पर पार्टी के वफादार होते हैं जो अपने उम्मीदवार का समर्थन करने का वादा करते हैं जिसे अपने राज्य में सबसे अधिक वोट मिलते हैं। हर इलेक्टर का इलेक्टोरल कॉलेज में एक वोट होता है। 2020 के चुनाव में राष्ट्रपति जो बाइडेन को 306 इलेक्टोरल वोट मिले थे, जबकि ट्रम्प के खाते में 232 इलेक्टोरल वोट आए थे।
क्या हर राज्य में इलेक्टर्स की संख्या बराबर होती है?
इस सवाल का जवाब है- नहीं। प्रत्येक राज्य में उतने ही इलेक्टर होते हैं जितने उस राज्य से कांग्रेस में प्रतिनिधि और सीनेटर होते हैं। प्रत्येक राज्य से दो सीनेटर होते हैं, लेकिन प्रतिनिधि सभा में सीटों का आवंटन आबादी के आधार पर अलग अलग होता है।
सबसे अधिक आबादी वाले राज्य कैलिफोर्निया में 54 इलेक्टर्स हैं। छह सबसे कम आबादी वाले राज्यों और कोलंबिया जिले में केवल तीन इलेक्टोरल वोट होते हैं। इसका मतलब ये है कि सबसे कम आबादी वाले राज्य व्योमिंग में एक इलेक्टोरल वोट करीब 192,000 लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। लेकिन टेक्सास में एक इलेक्टोरल वोट लगभग 730,000 वोटरों का प्रतिनिधित्व करता है। दो राज्यों को छोडकर सभी राज्य विन-टेक-ऑल अप्रोच पर चलते हैं। मतलब उस राज्य में सबसे अधिक वोट जीतने वाले उम्मीदवार के खाते में अपने सभी इलेक्टोरल वोट आते हैं।
बड़े अंतर से किसी राज्य को जीतना उसे एक वोट से जीतने के समान ही होता है, इसीलिए प्रत्याशी उन राज्यों पर फोकस करते हैं जहां छोटा सा शिफ्ट भी सभी इलेक्टोरल वोट्स को उनके खाते में डाल सकता है। इस चुनाव में एरिज़ोना, जॉर्जिया, मिशिगन, उत्तरी कैरोलिना, नेवादा, पेंसिल्वेनिया और विस्कॉन्सिन बैटलग्राउंड स्टेट्स में शामिल हैं।
क्या कोई उम्मीदवार पॉपुलर वोट पाने में नाकाम होने के बावजूद चुनाव जीत सकता है?
हां बिल्कुल। साल 2000 में रिपब्लिकन नेता जॉर्ज डब्ल्यू बुश और 2016 में डोनाल्ड ट्रम्प दोनों लोकप्रिय वोटिंग में हारने के बावजूद राष्ट्रपति बने थे। वैसे, इसे आलोचकों द्वारा अक्सर सिस्टम का प्रमुख दोष बताया जाता है। इलेक्टोरल कॉलेज सिस्टम के समर्थकों का कहना है कि यह उम्मीदवारों को बड़े शहरी क्षेत्रों में समर्थन जुटाने के बजाय कई राज्यों में वोट मांगने के लिए मजबूर करता है।
इलेक्टर्स की वोटिंग कब होती है?
इलेक्टर्स आधिकारिक तौर पर अपना वोट 17 दिसंबर को डालेंगे। उसके बाद उसके नतीजे कांग्रेस को भेजे जाएंगे। जिस उम्मीदवार को 270 या उससे अधिक इलेक्टोरल वोट मिलेंगे, वही राष्ट्रपति बनेगा। इन वोटों का मिलान 6 जनवरी को कांग्रेस द्वारा किया जाता है और उसके बाद नए राष्ट्रपति को 20 जनवरी को शपथ दिलाई जाती है।
अगर वोटों की संख्या बराबर रहती है तो क्या होगा?
इस सिस्टम की खामियों में से एक यह भी है कि सैद्धांतिक रूप से इसमें 269-269 पर टाई हो सकता है। यदि ऐसा होता है तो नवनिर्वाचित प्रतिनिधि सभा 6 जनवरी को नए राष्ट्रपति का फैसला करती है जिसमें हर राज्य एक इकाई के रूप में मतदान करता है। इस वक्त रिपब्लिकन पार्टी 26 राज्यों में डेलिगेशन का प्रतिनिधित्व करती हैं जबकि डेमोक्रेट 22 को नियंत्रित करते हैं। मिनेसोटा और उत्तरी कैरोलिना डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन के बीच टाई हैं।
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