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हैरिस या ट्रम्प? अमेरिकी-हिंदुओं के नजरिए से कौन ज्यादा फायदेमंद

कमला हैरिस की जड़ें भले ही भारत से जुड़ी रही हों, लेकिन आज तक उन्होंने हिंदुओं से जुडे़ विशिष्ट मुद्दों के प्रति गहरी समझ या पैरोकारी नहीं दिखाई है।

राष्ट्रपति चुनाव में कमला हैरिस और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच मुकाबला होना है। / File photo / Reuters

अमेरिका के सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान और अपनी विविधता व उन्नति के लिए चर्चित अमेरिकी-हिंदू समुदाय आगामी राष्ट्रपति चुनाव में अनोखी चुनौतियों का सामना कर रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प और कमला हैरिस की संभावित सियासी जंग इस समुदाय के लिए कई चिंताएं पैदा कर रही हैं, जो उनके सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक माहौल को प्रभावित कर रही है।

हालांकि न तो डोनाल्ड ट्रम्प और न ही कमला हैरिस ने अमेरिकी हिंदुओं के लिए खुद को एक आदर्श राष्ट्रपति के रूप में पेश किया है, लेकिन इन दोनों से जुड़े कुछ खास मुद्दों की पड़ताल से यह तय करने में मदद मिल सकती है कि कौन सा प्रत्याशी दूसरे के मुकाबले कम बुरा है।

ट्रम्प की प्रेसीडेंसी: अलगाव और भेदभाव

डोनाल्ड ट्रम्प का राष्ट्रपति के रूप में कार्यकाल ने अमेरिकी हिंदुओं को खासा प्रभावित किया था। शुरू में कई लोगों ने इस्लामी आतंकवाद के खिलाफ और भारत के प्रति समर्थन वाले ट्रम्प के रुख का सपोर्ट किया था। हालांकि कई लोगों को उनका कार्यकाल चुनौतियों से भरा महसूस हुआ, जिसने उनके सामाजिक राजनीतिक और सांस्कृतिक परिदृश्य पर बुरा असर डाला। ट्रम्प का ध्रुवीकरण दृष्टिकोण और जातीय-फासीवादी श्वेत राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना अमेरिकी-हिंदुओं के बहुसांस्कृतिक मूल्यों के खिलाफ था।

अल्पसंख्यकों को हाशिए पर डाले जाने से ऐसा माहौल बना कि कई लोगों को लगा कि उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान खतरे में आ गई है। कंसास में 2017 में श्रीनिवास कुचिभोटला की हत्या और साउथ कैरोलिना में हर्निश पटेल के साथ वारदात जैसी घटनाओं को ट्रम्प की विभाजनकारी बयानबाजी से बने खतरनाक माहौल का नतीजा माना गया। प्रशासन की तरफ से भी ऐसी घटनाओं पर अपर्याप्त और देरी से प्रतिक्रिया ने भी हिंदू समुदाय के कई सदस्यों को असुरक्षित महसूस कराया।

ट्रम्प की एच-1बी वीजा में कटौती जैसी अदूरदर्शी आव्रजन नीतियों से कई भारतीय पेशेवर और उनके परिवार सीधे प्रभावित हुए। उनके कार्यकाल में एच-1बी वीजा कार्यक्रम में महत्वपूर्ण कटौतियां और नियमों में सख्ती की गई थी। इसने टेक इंडस्ट्री में काम करने वाले हजारों हिंदुओं के परिवारों में चिंता और अनिश्चितता पैदा कर दी थी। 

ट्रम्प की आर्थिक नीतियों ने बड़े पैमाने पर मध्यवर्गीय हिंदू परिवारों को अलगथलग कर दिया था। कई छोटे कारोबारी तो बहिष्कृत महसूस करने लगे थे। अफॉर्डेबल केयर एक्ट को निरस्त करने के प्रयासों ने सस्ती स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच को लेकर चिंता पैदा कर दी थी जो समुदाय में कई लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।

ट्रम्प प्रशासन की अंतरराष्ट्रीय नीतियों जिसमें भारत के प्रति उनका असंगत रुख भी शामिल है, ने अनिश्चितता को और बढ़ाने का काम दिया। एक तरफ वह भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ घनिष्ठ संबंध का लुत्फ उठाते थे, दूसरी तरफ उनकी अनिश्चित विदेश नीति द्विपक्षीय संबंधों की स्थिरता को लेकर अमेरिकी हिंदुओं को अक्सर परेशान करती रहती थी।

हैरिस प्रेसीडेंसी: गलतफहमी और राजनीतिक रुख

भारतीय और जमैका मूल की कमला हैरिस विविधता और नए प्रतिमान स्थापित करने के लिहाज से प्रगति की प्रतीक रही हैं, लेकिन उनका राष्ट्रपति पद पर चयन अमेरिकी हिंदुओं के लिए अलग तरह की चुनौतियां पेश करता है।

कमला हैरिस की जड़ें भले ही भारत से जुड़ी रही हों, लेकिन आज तक उन्होंने हिंदुओं से जुडे़ विशिष्ट मुद्दों के प्रति गहरी समझ या पैरोकारी नहीं दिखाई है। हिंदू त्योहारों, अनुष्ठानों को लेकर उनमें स्पष्ट समर्थन या स्वीकृति की कमी अमेरिकी हिंदुओं में बैचेनी बढ़ा सकती है। भारत सरकार की नीतियों खासकर कश्मीर और नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की मुखर आलोचना को भारत से मजबूत संबंध रखने वाले कई अमेरिकी हिंदू भारत के संप्रभु मामलों में पक्षपातपूर्ण हस्तक्षेप की तरह देखते रहे हैं। 

हैरिस का यह रुख उनके प्रशासन के प्रति अलगाव और अविश्वास की भावना पैदा कर सकता है। उनके कुछ ऐसे प्रगतिशील समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं, जिनके द्वारा भारत की वर्तमान सरकार की आलोचना कभी-कभी भारत में जटिल सामाजिक राजनीतिक गतिशीलता की जानबूझकर गलत बयानी की तरह लगती है। यह अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को महत्व देने वाले अमेरिकी हिंदुओं में बेचैनी पैदा करता है।

इतना ही नहीं, राष्ट्रपति के रूप में कमला हैरिस के व्यापक राजनीतिक माहौल से मौजूदा नस्लीय तनाव के और बढ़ने की आशंका पैदा हो सकती है। अपनी हिंदू जातीयता के प्रति उपेक्षित या उदासीन लगने वाली राष्ट्रपति के कार्यकाल में अगर हिंदू विरोधी भावनाओं और हिंदूफोबिया की घटनाओं में बढ़ोतरी होती है तो यह निश्चित रूप से हिंदू समुदाय के लिए चिंता की बात होगी। 


एफर्मेटिव एक्शन और व्यापक इमिग्रेशन सुधारों पर हैरीस का रुख वैसे तो आमतौर पर प्रगतिशील रहा है, लेकिन यह हिंदू समुदाय की विशिष्ट जरूरतों से पूरी तरह मेल नहीं खाता है, खासकर भारतीय अमेरिकियों के लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों के मामले में। एफर्मेटिव एक्शन संबंधी नीतियों का भारतीय अमेरिकी छात्रों के लिए नुकसानदेह साबित हो सकती हैं जो अक्सर शानदार अकादमिक प्रदर्शन करने के बावजूद ऐसे उपायों से लाभान्वित नहीं होते हैं।

कौन ज्यादा फायदेमंद : एक मुश्किल चयन

अमेरिकी हिंदुओं के नजरिए से देखें तो ट्रम्प और हैरिस दोनों के कई फायदे और कई नुकसान हैं। इनमें से कम नुकसान वाले नेता का चयन करना चुनौतीपूर्ण होगा। ट्रम्प प्रशासन में डर और विभाजन को बढ़ावा मिला था जिससे समुदाय की असुरक्षा की भावना बढ़ी थी। हैरिस भले ही विविधता को बढ़ावा देने की बात करती हैं, लेकिन हिंदुओं की समुदाय विशेष चिंताओं को समझने की उत्सुकता नहीं दिखाती हैं।

हैरिस का समावेशी नजरिया और संवाद कायम करने की क्षमता देखें तो उन्हें अमेरिकी हिंदुओं के लिहाज से कम नकारात्मक नेता माना जा सकता है। ट्रम्प के विभाजनकारी नजरिए के उलट, कमला हैरिस का प्रगतिशील आधार और प्रभावी प्रशासन लोगों से संपर्क बढ़ाने और दूरियां घटाने में सफल हो सकता है।

(लेखक रिटायर्ड रेडियोलॉजिस्ट हैं और हिंदू स्प्रीचुअल केयर प्रोवाइडर हैं।)

(इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और राय लेखक के अपने हैं। जरूरी नहीं कि ये न्यू इंडिया की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित करते हों।)

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