भारतीय अमेरिकियों ने अमेरिका के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है और देश के आर्थिक, तकनीकी एवं शैक्षणिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। बीसीजी-इंडियास्पोरा 2024 समेत कई रिपोर्ट बताती हैं कि फॉर्च्यून 500 कंपनियों में से 10 प्रतिशत से अधिक का भारतीय मूल के सीईओ नेतृत्व करते हैं। इनमें सुंदर पिचाई (गूगल) और सत्या नडेला (माइक्रोसॉफ्ट) जैसे प्रमुख नाम शामिल हैं।
अन्य उद्योगों की बात करें तो अमेरिका के आतिथ्य क्षेत्र का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा भारतीय अमेरिकियों के पास है। ये अर्थव्यवस्था में सालाना अरबों का योगदान देता है। इसके अलावा 2.7 लाख भारतीय छात्र हर साल अमेरिकी विश्वविद्यालयों में दाखिला लेते हैं। ये करीब 10 बिलियन डॉलर खर्च करते हैं जिससे अकादमिक इकोसिस्टम तंत्र को मजबूती मिलती है। अमेरिका के शिक्षा जगत में करीब 22 हजार भारतीय प्रोफेसर हैं जिनमें से लगभग 10 प्रतिशत अमेरिका के शीर्ष विश्वविद्यालयों में है।
भारतीय समुदाय धन और शिक्षा के मामले में भी पीछे नहीं है। भारतीय अमेरिकी परिवारों की औसत आय 1.2 लाख डॉलर है जो राष्ट्रीय औसत से लगभग दोगुनी है। 75% भारतीय अमेरिकियों के पास स्नातक या उससे ऊपर की डिग्री है। भारतीय प्रवासियों की संख्या अमेरिकी आबादी में महज एक प्रतिशत है, लेकिन इसके बावजूद करों में कुल योगदान करीब 5 प्रतिशत है।
भारतीय-अमेरिकियों का राजनीतिक सफर
अमेरिकी राजनीतिक में भारतीय अमेरिकियों की यात्रा धीमी लेकिन लंबी रही है। इसकी शुरुआत नागरिकता एवं मतदान अधिकारों के लिए शुरुआती संघर्षों से हुई है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में 1917 के एशियाटिक वर्जित क्षेत्र अधिनियम जैसे भेदभावपूर्ण कानूनों ने भारतीय मजदूरों की आवाजाही रोक दी थी सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने उन्हें नागरिकता से वंचित कर दिया था। भगत सिंह थिंड को श्वेत न होने के कारण नागरिकता नहीं दी गई थी।
इसके बाद 1946 में लूस-सेलर एक्ट के जरिए भारतीय प्रवासियों को अमेरिकी नागरिक बनने का अधिकार प्रदान किया गया। इसने दलीप सिंह सौंद के 1957 में अमेरिकी कांग्रेस पहुंचने का रास्ता बनाया। वह पहले भारतीय अमेरिकी थे, जो अमेरिकी सांसद बने थे। यह एक ऐसा ऐतिहासिक मील का पत्थर था, जो दशकों तक अटूट बना रहा।
भारतीय अमेरिकियों ने 2000 के दशक में अमेरिकी राजनीति में रफ्तार हासिल करना शुरू किया। लुइसियाना में बॉबी जिंदल पहले भारतीय-अमेरिकी गवर्नर बने। निक्की हेली दक्षिण कैरोलिना की गवर्नर बनीं। बाद में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत के रूप में भी कार्य किया। अमी बेरा 2013 में कांग्रेस के लिए चुने गए। ये एक नए युग की शुरुआत थी।
कुछ समय पहले सामने आए तथाकथित "समोसा कॉकस" में रो खन्ना, प्रमिला जयपाल, राजा कृष्णमूर्ति और श्री थानेदार सहित पांच भारतीय अमेरिकी कांग्रेसी मौजूद हैं, जो राष्ट्रीय स्तर पर भारतवंशियों के बढ़ते प्रभाव का संकेत है। वर्तमान में 300 से अधिक भारतीय अमेरिकी देश भर में विभिन्न स्तरों पर सरकार की सेवा कर रहे हैं। इनमें नीरज अंतानी (ओहियो) और ऐश कालरा (कैलिफोर्निया) जैसे राज्य शामिल हैं। इनमें से कई जैसे कि सुहास सुब्रमण्यम (वर्जीनिया) और डॉ. अमीश शाह (एरिजोना) 2024 में कांग्रेस पहुंचने का प्रयास कर रहे हैं।
भारतवंशी समुदाय उस समय एक ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गया, जब कमला हैरिस 2020 में अमेरिकी उपराष्ट्रपति चुनी जाने वाली पहली महिला और पहली भारतीय मूल की व्यक्ति बनीं। 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में प्राइमरी के लिए तुलसी गबार्ड, विवेक रामास्वामी और निक्की हेली आदि की भागीदारी देश ने देखी। भारतीय और हिंदू अमेरिकी अब अमेरिकी राजनीति का प्रभावशाली हिस्सा बन चुके हैं। यह अप्रवासियों के संघर्षों से लेकर सत्ता तक पहुंचने की अहम यात्रा को दर्शाता हैं।
नीतिगत पैरोकारी
अमेरिका में दशकों के सफर में भले ही भारतवंशी आबादी और उसका योगदान बढ़ा हो, लेकिन उनके पास कैपिटल हिल पर अपने हितों को सुरक्षित रखने वाले नीतिगत मामलों पर पैरोकारों की कमी थी। लेकिन अब यह कमी भी दूर हो रही है। दशकों से रमेश कपूर, डॉ भरत बरई, अजय भूटोरिया, डॉ संपत शिवांगी, डॉ सुवास देसाई, शैली कुमार, शेखर नरसिम्हन, अशोक भट्ट, सुनील पुरी, डॉ केके अग्रवाल, डॉ कृष्णा रेड्डी, योगी चुघ आदि अमेरिकी नीतियों को प्रभावित करने पर काम कर हैं।
मेरे संगठन फाउंडेशन फॉर इंडिया एंड इंडियन डायस्पोरा स्टडीज (FIIDS) नियमित पैरोकारी को अगले स्तर तक ले गया है। इस साल 13 जून को FIIDS ने कैपिटल हिल में भारतीय-अमेरिकी एडवोकेसी समिट का सफल आयोजन किया था। इसमें 22 राज्यों के 135 से अधिक भारतीय-अमेरिकी प्रतिनिधियों ने 35 राज्यों के लगभग 100 निर्वाचित अधिकारियों के साथ नीतिगत मामलों पर गहन चर्चा की थी।
समिट के दौरान भारत के लिए आईसीईटी और तकनीकी निर्यात छूट, भारत को प्रमुख रक्षा साझेदार का दर्जा देने, जीसी बैकलॉग को खत्म करने और अन्य आव्रजन सुधारों के लिए हर देश का 7 प्रतिशत का कोटा समाप्त करने, धार्मिक पूर्वाग्रह व भारतीय अमेरिकियों खासकर हिंदुओं के खिलाफ घृणा अपराधों जैसे विषयों पर विस्तृत विचार मंथन किया गया। इमिग्रेशन वॉयस, हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन और CoHNA जैसे संगठनों ने भी कई एडवोकेसी कैंपने की अगुआई की है।
सर्वेक्षण में सामने आए मुद्दे
FIIDS ने पिछले चुनावों में नियमित रूप से मुद्दा आधारित सर्वेक्षण किए थे, जिनमें आव्रजन सुधार, अमेरिका-भारत संबंध, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा जैसी प्रमुख चिंताओं को उठाया गया था। इन सर्वे से पता चला कि मुख्यधारा की राजनीति में भारतवंशी समुदाय की प्राथमिकताओं को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। FIIDS-2024 के सर्वे में कहा गया है कि अमेरिकी चुनावों में भारतवंशियों से जुड़े कुछ खास मुद्दों को प्राथमिकता दी जा रही है, जिनमें आव्रजन सुधार (खासकर ग्रीन कार्ड बैकलॉग), अमेरिका-भारत संबंध, अर्थव्यवस्था, धार्मिक स्वतंत्रता और अमेरिकी टेक्नोलोजी और एआई प्रतिस्पर्धा प्रमुख हैं। अमेरिका में "वोट और नोट्स" काफी मायने रखते हैं। डोनेशन के जरिए वोटिंग और सपोर्टिंग उम्मीदवारों को प्रभावित करने के उल्लेखनीय टूल हैं। पैरोकारी ग्रुप और पीएसी समुदाय की आवाज को विस्तार देने में सहयोग करते हैं लेकिन आखिर में ये मतदाता को ही तय करना है कि कौन सी नीतियों को प्राथमिकता दी जाए।
पॉलिटिकल एक्शन कमिटी
भारतीय अमेरिकियों ने उम्मीदवारों का विश्लेषण करने, उनका समर्थन करने और नीतियों को प्रभावित करने के लिए कई राजनीतिक कार्रवाई समितियों (पीएसी) की स्थापना की है। कुछ प्रमुख पीएसी में ए4एच (डॉ. रोमेश जापरा के नेतृत्व में अमेरिकी4हिंदू), इंडियन अमेरिकन इम्पैक्ट, यूएसआईआरसी (यूएस-इंडिया रिलेशनशिप काउंसिल) और हिंदू अमेरिकी पीएसी शामिल हैं। भारतीय अमेरिकियों के नेतृत्व वाली करीब एक दर्जन से अधिक पीएसी हैं जो विविध राजनीतिक एवं सांस्कृतिक हितों पर फोकस कर रही हैं। चुनावों में भारतीय अमेरिकी दानदाताओं का भी बड़ा योगदान रहता है। 2020 के चुनाव में करीब 3 मिलियन डॉलर का योगदान समुदाय की तरफ से दिया गया था।
2024 में अनोखा अवसर
भारतवंशी हालांकि अमेरिकी आबादी का एक छोटा सा हिस्सा है लेकिन प्रमुख स्विंग राज्यों में उनका प्रभाव बढ़ रहा है। इसने चुनावों पर असल डालने का एक अनूठा अवसर दिया है। कांग्रेसी रिच मैककॉर्मिक ने FIIDS-2024 एडवोकेसी समिट में कहा था कि यह देखना होगा कि भारतीय अमेरिकी अगला राष्ट्रपति चुनने में निर्णायक भूमिका कैसे निभा सकते हैं। जॉर्जिया, पेंसिलवेनिया, मिशिगन, फ्लोरिडा और वर्जीनिया में भारतीय अमेरिकियों की आबादी एक से दो प्रतिशत के बीच है लेकिन उनके मतदान का उच्च स्तर और राजनीतिक जुड़ाव नतीजों को काफी प्रभावित कर सकते हैं।
2020 के चुनाव में दोनों दलों ने पहली बार भारतीयों के इस प्रभाव को पहचाना था। राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारतीय अमेरिकी मतदाताओं को लुभाने के लिए ह्यूस्टन में विशाल हाउडी मोदी कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। वहीं राष्ट्रपति बाइडन ने भारतीय मूल की कमला हैरिस को अपना रनिंग मेट चुना। यह समुदाय के राजनीतिक दबदबे को रेखांकित करता है। भारतीय अमेरिकियों की संख्या और दृश्यता जैसे-जैसे बढ़ रही है, उनका वोट भविष्य के राष्ट्रपति चुनावों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, इसमें कोई शक नहीं है।
मतदाता जागरूकता अभियान
बढ़ते राजनीतिक प्रभाव के बावजूद, समुदाय के भीतर भारतीय अमेरिकी मतदाताओं की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। देखा जाए तो यह राष्ट्रीय औसत से भी नीचे है। इस कमी को दूर करने के लिए एफआईआईडीएस जैसे संगठनों ने समुदाय में जागरूकता लाने के लिए मिलियन वोटर रजिस्ट्रेशन अभियान जैसी पहल शुरू की है।
इसके अलावा समुदाय में इसे लेकर भी सीमित जागरूकता है कि उनके निर्वाचित प्रतिनिधि उन प्रमुख मुद्दों पर कैसे काम कर रहे हैं जो समुदाय को प्रभावित करते हैं। कई भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं को इस बात का पूरी जानकारी तक नहीं है कि उनके निर्वाचित प्रतिनिधियों ने समुदाय के लिए महत्वपूर्ण मुद्दों पर किस तरह वोट किया था। इस समस्या से निपटने के लिए FIIDS ने IndoAmericanElectionGuide.org लॉन्च की है। 2020 के चुनाव में शुरू हुई इस पहल को अब 2024 के चुनाव के लिए अपडेट किया जा चुका है। यह भारतीय अमेरिकियों से संबंध रखने वाले बिलों और प्रस्तावों पर मतदान को ट्रैक करता है। हिंदूपैक्ट ने भी हिंदू वोटरों के नजरिए से इसी तरह की जानकारी और गाइडेंस देने वाली HinduVote.org शुरू की है। इन पहलों से मतदाताओं को यह फैसला लेने में मदद मिल सकती है कि उनके प्रतिनिधि उनकी प्राथमिकताओं और चिंताओं पर किस तरह काम कर रहे हैं।
भारतीय अमेरिकियों के पास प्रमुख स्विंग स्टेट्स में अपनी बढ़ती आबादी और महत्व को देखते हुए राजनीतिक परिदृश्य को आकार देने का एक अनूठा अवसर है। चुनावी प्रक्रिया से जुड़कर और अपनी आवाज उठाकर भारतीय समुदाय यह सुनिश्चित कर सकता है कि वाशिंगटन और उसके बाहर उनकी प्राथमिकताओं का प्रतिनिधित्व किस तरह किया जाए जिससे उनके वोट अमेरिकी नीतियों और नेतृत्व का भविष्य तय करने में महत्वपूर्ण बन सकें।
(लेखक खांडेराव कांड एक टेक्नोलॉजिस्ट, स्टार्टअप सलाहकार, नीति रणनीतिकार हैं और एफआईआईडीएस में नीति व रणनीति के प्रमुख और ग्लोबल इंडियन टेक्नोलॉजी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं।)
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