भारत में आम चुनाव की घोषणा हो चुकी है। मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा 19 अप्रैल से सात चरणों में मतदान शुरू करने की घोषणा किए अभी बमुश्किल तीन ही दिन हुए हैं और लाउडस्पीकर के साथ या उनके बिना राजनीतिक शोर शुरू हो चुका है। भारत का राजनीतिक विपक्ष सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (BJP) के खिलाफ चुनावी बॉन्ड को खत्म करने के लिए कड़ी आलोचना कर रहा है। यह बात दीगर है कि इसी चुनावी बॉन्ड से उसकी (BJP) भी पोटली भरी हुई है।
ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि क्या इस चुनाव में चुनावी बॉन्ड कोई मुद्दा बनेगा। इस मामले में आपका अनुमान भी मेरे जितना ही अच्छा है। खासकर तब जब कुछ लोगों ने यह देखने का कष्ट किया कि किसी कंपनी या किसी समूह द्वारा खरीदे गए बॉन्ड्स का एक हिस्सा लेकर कोई पार्टी कैसे 'जीत' जाती है। एक तर्क यह दिया गया है कि या तो कंपनियों ने प्रमुख सरकारी अनुबंध हासिल करने के बाद इन बॉन्ड्स को खरीदा या यह खरीद प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) को दूर रखने के लिए एक प्रकार का 'बीमा' या आश्नासन था। ईमानदारी से कहा जाए तो इस बात पर अंतिम शब्द अभी कहे जाने बाकी हैं और इसमें काफी समय लग सकता है।
जिस तरह के अनेक जनमत सर्वेक्षण चल रहे हैं उससे दिमाग चकरा जाता है। कोई कल्पना कर सकता है कि जून को क्या होगा यानी जब 4 जून को मतगणना शुरू होगी और तमाम एग्जिट पोल हवा में तैर रहे होंगे। नियम ऐसे हैं कि इन एग्ज़िट पोल्स का पिटारा पहले नहीं खोला जा सकता है। वैसे पूर्वाग्रह से ग्रसित मतदाताओं के लिहाज से यह सही भी है। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में पूर्वी तट के समय पर विजेताओं की घोषणा नहीं की जा सकती क्योंकि यह पश्चिमी तट के उन लोगों के लिए अजीब स्थिति होगी जो मतदान केंद्रों पर जाने में भी तीन घंटे पीछे हैं।
कुछ लोगों की आगामी चुनाव में एकमात्र दिलचस्पी यह है कि क्या नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आने की जवाहरलाल नेहरू की हैट्रिक की बराबरी करने जा रहे हैं। लेकिन नेहरू से लेकर मोदी तक का राजनीतिक माहौल बिल्कुल अलग है। 2014 तक दो दशकों से अधिक समय तक यह पहले से ही निष्कर्ष निकला होता था कि भारत केवल गठबंधन सरकारों के साथ चलता है और वह भी विभिन्न विचारधारा वाले राजनीतिक दलों के साथ जो शासन को एक तरह की चुनौती बनाते हैं। एक तरह से 2000 के दशक में शक्तिशाली क्षेत्रीय दलों और सियासी नायकों का उदय हुआ जो राष्ट्रीय परिदृश्य पर अपनी छाप छोड़ने के इच्छुक थे।
2014 से शुरू होकर और 2019 तक यह स्पष्ट हो गया कि एक पार्टी का शासन अतीत की बात नहीं है। अपने आप में और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के तत्वावधान में BJP के शक्तिशाली उदय ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह गठबंधन 2024 में संयुक्त रूप से 543 लोकसभा सीटों में से 400 का आंकड़ा पार कर सकता है। उत्तर में इसके पारंपरिक गढ़, जिन्हें हिंदी-पट्टी के रूप में जाना जाता है, BJP ने अपनी बड़ी जीत का दावा ठोक ही दिया है। यह तब है जब BJP केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी अपनी छाप छोड़ने या यहां तक कि जमीन बनाने की कोशिश कर रही है। 4 जून को देखने लायक दूसरा पहलू कांग्रेस पार्टी की किस्मत है जिस पर कई क्षेत्रीय शक्तियों ने अपना दांव लगाया है।
केवल एक चीज जो मायने रखने वाली है वह है चुनाव के दिन मतदान। यह अमेरिका में प्रचलित धारणा है जहां मतदान केंद्रों के खुलने और बंद होने के समय की अनिश्चितताओं को छोड़कर एक ही दिन में राष्ट्रपति चुनाव होता है। लेकिन भारत में आम चुनाव की मुकम्मल प्रक्रिया जटिल और लंबी है। वहां मतदान के नतीजे 4 जून को सुबह 8 बजे से आने शुरू हो जाएंगे। तब तक के लिए केवल इंतजार!
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