सड़कों पर माइक, लाउडस्पीकर से प्रचार अभियान और चुनावी शोरगुल बंद हो गया है। मतदाता 19 अप्रैल से शुरू होने वाले पहले चरण के लिए मतदान के तैयार हैं। भारत में सात चरणों में होने वाला लोकसभा चुनाव एक जून को समाप्त होगा और मतगणना चार जून को होगी। इसमें 543 सदस्यीय 18वीं लोकसभा के विजेताओं का फैसला होगा।
आदर्श चुनाव संहिता (MCC) उन राज्यों में लागू है जो आंशिक रूप से या पूरी तरह से चुनाव के लिए तैयार हैं। इसके तहत ऐक्शन भी लिया जा रहा है, जैसा कि तमिलनाडु के मामले में हुआ है। पहले चरण के लिए कम से कम 102 निर्वाचन क्षेत्र में उम्मीदवार मैदान में हैं। राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों के उम्मीदवारों ने वोट हासिल करने के उम्मीद से अपने संदेश को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।
मतदान की आखिरी तारीख 1 जून को एग्जिट पोल के माध्यम से रहस्य का पर्दा हटाने की कोशिश की जाएगी। इधर, आम नागरिकों को देश के 'मूड' का सर्वेक्षण करने वाले जनमत सर्वेक्षणों से जूझना पड़ रहा है। और जैसा कि कई जनमत सर्वेक्षणों में होता है, कुछ ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के लिए भारी जीत की भविष्यवाणी की है। वहीं, कई ने सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को 400 से कम सीट दिखाते हुए संयमित परिणाम की भविष्यवाणी की है।
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष की तमाम बयानबाजी के बीच चुनावी विश्लेषकों का मानना है कि दोनों समूहों (NDA और I.N.D.I. अलायंस) के पास अपने-अपने वोट शेयर को बढ़ाने का मौका है। यह विशेष रूप से बीजेपी के लिए है क्योंकि पार्टी दक्षिण में, विशेष रूप से तमिलनाडु और केरल में अपनी स्थिति में सुधार करने की पूरी कोशिश कर रही है।
आगामी लोकसभा चुनाव में सभी का ध्यान इस बात पर है कि क्या बीजेपी केरल में अपना खाता खोलेगी। क्या उसे तमिलनाडु में एक या दो सीटें मिलेंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कम से कम सात बार तमिलनाडु का दौरा किया है। पुडुचेरी के पूर्व राज्यपाल डॉ तमिलिसाई सौंदर्यराजन को साउथ चेन्नई और कोयंबटूर से तमिलनाडुी के पार्टी प्रमुख अन्नामलाई को मैदान में उतारा है। माना जा रहा है कि अगर राज्य में बीजेपी का वोट परसेंटेज भी बढ़ता है तो ये पार्टी के लिए अच्छी खबर होगी।
राष्ट्रीय स्तर मोदी और बीजेपी, कांग्रेस और उसके सहयोगियों के भ्रष्टाचार और वंशवाद को उखाड़ फेंकने का मतदाताओं से अपील कर रहे हैं। विपक्षी I.N.D.I.A (इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस) बीजेपी के शासन को देश की धर्मनिरपेक्ष साख के लिए खतरे और अधिक सत्तावाद की ओर एक और झुकाव के रूप में चित्रित कर रहा है।
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