भारतीय मूल के डायमंड परिवार ने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी को 1 करोड़ 5 लाख डॉलर (लगभग 87 करोड़ रुपये) की मदद की है। ये पैसे कॉर्नेल के पीटर और स्टेफनी नोलन स्कूल ऑफ होटल एडमिनिस्ट्रेशन में छात्रों की स्कॉलरशिप के लिए दिए जाएंगे। ये दान यूनिवर्सिटी के 'टू डू द ग्रेटेस्ट गुड' कैंपेन का हिस्सा है, जिसका मकसद है काबिल बच्चों को अच्छी पढ़ाई का मौका देना। इस बड़े दान के एवज में नोलन स्कूल के डीन का पद अब 'डायमंड फैमिली डीन ऑफ द नोलन होटल स्कूल' कहलाएगा।
इस दान से कॉर्नेल का अंडरग्रेजुएट अफोर्डेबिलिटी इनिशिएटिव भी मजबूत होगा। यूनिवर्सिटी के 'अफोर्डेबिलिटी चैलेंज मैच प्रोग्राम' की वजह से इस 1 करोड़ 5 लाख डॉलर के दान के साथ और 25 लाख डॉलर (लगभग 18 करोड़ रुपये) भी जुड़ गए हैं।
कॉर्नेल के SC जॉनसन कॉलेज ऑफ बिजनेस में नोलन स्कूल की पहली डायमंड फैमिली डीन, केट वाल्श कहती हैं, 'हमारे इंडस्ट्री के भविष्य में इतना बड़ा निवेश करने के लिए मैं डायमंड परिवार की बहुत शुक्रगुजार हूं। नवीन, रीता, ऐश्ले और सोनजा ने दरियादिली, सोच समझ के काम करने और दूसरों की फिक्र करने की असली मिसाल कायम की है। दूसरों को शिक्षा और मौके देने का ये दान इस परिवार की दुनिया को बेहतर बनाने की विरासत को आगे बढ़ाता है।'
ये स्कॉलरशिप नोलन स्कूल के उन टॉप अंडरग्रेजुएट स्टूडेंट्स को दी जाएंगी, जिन्हें आर्थिक मदद की जरूरत है। पहली पीढ़ी के स्टूडेंट्स को पहले मौका मिलेगा। इन छात्रों को 'हॉस्पिटैलिटी स्कॉलर्स' कहा जाएगा।
नोलन स्कूल की पूर्व छात्राएं ऐश्ले डायमंड (2014 बैच) और सोनजा डायमंड (2019 बैच) और उनके माता-पिता रीता और नवीन डायमंड ने शिक्षा के जरिए मौके बढ़ाने की अपनी गहरी प्रतिबद्धता जाहिर की है।
लंदन में भारतीय माता-पिता के घर पैदा हुए नवीन डायमंड पहली पीढ़ी के कॉलेज ग्रेजुएट हैं। नवीन ने बताया कि शिक्षा ने उनकी जिंदगी में बड़ा बदलाव लाया है। नवीन नोलन डीन के एडवाइजरी बोर्ड के सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा, 'मैं आज जहां हूं, वो कैसे हुआ? मेरा मानना है कि सही माहौल और शिक्षा तक पहुंच ही इसके पीछे है। और अब हमारा परिवार लगातार ये एहसान चुकाने की कोशिश कर रहा है।'
ब्रिटेन से ताल्लुक रखने वाले नवीन और रीता कोलोराडो शिफ्ट हो गए। यहां उन्होंने स्टोनब्रिज कंपनीज और कॉपफोर्ड कैपिटल मैनेजमेंट की स्थापना की। उनका परोपकारी काम इस सोच से प्रेरित है कि समाज को कुछ वापस देना चाहिए। ये परंपरा उन्होंने अपनी बेटियों में बचपन से ही डाल दी।
रीता कहती हैं, 'नवीन और मैं बहुत ही साधारण, परिवार-परस्त, सादे घरों में पले-बढ़े हैं। जब हमने कंपनी शुरू की थी तो हमने कभी नहीं सोचा था कि हम आज इस मुकाम पर होंगे। हम बहुत भाग्यशाली हैं और कुछ वापस देना हमारा फर्ज है। पहली पीढ़ी पर ध्यान देना हमारे लिए इसलिए मायने रखता है क्योंकि इसका असर सिर्फ उस शख्स की जिंदगी पर ही नहीं, बल्कि उसके पूरे परिवार पर पड़ता है।'
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