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तमाम चुनौतियों के बावजूद मजबूती से एक साथ खड़े हैं भारत और अमेरिका

भारत-अमेरिकी संबंधों में इस वर्ष का मुख्य आकर्षण जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की राजकीय यात्रा थी। इसमें एक औपचारिक स्वागत और संयुक्त बयान था, जिसमें अंतरिक्ष से लेकर समुद्र की गहराई तक मानव विकास के लगभग हर क्षेत्र में सहयोग का पूरा विवरण था।

भारत और अमेरिका के बीच आपसी संबंधों का आधार विश्वास और आपसी साझेदारी है। /

सीमा सिरोही

2005 के असैन्य परमाणु समझौते के उल्लेखनीय अपवाद को छोड़ दें तो जब भारत-अमेरिका संबंधों में वास्तविकता से ज्यादा बयानबाजी थी। आज बयानबाजी की तुलना में संबंध अधिक यथार्थ और वास्तविक धरातल पर मजबूती के साथ जुड़े हैं। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यूक्रेन युद्ध जैसे नीतिगत असहमति को सार्वजनिक कटुता के बिना शांति से मैनेज कर लिया जाता है।

संबंधों में इस वर्ष का मुख्य आकर्षण जून में पीएम मोदी की अमेरिका की राजकीय यात्रा थी।

संबंधों में इस वर्ष का मुख्य आकर्षण जून में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संयुक्त राज्य अमेरिका की राजकीय यात्रा थी। इसमें एक औपचारिक स्वागत और संयुक्त बयान था, जिसमें अंतरिक्ष से लेकर समुद्र की गहराई तक मानव विकास के लगभग हर क्षेत्र में सहयोग का पूरा विवरण था।

बेहद सफल यात्रा ने साझेदारी के प्रति अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन की प्रतिबद्धता को दिखाया । दोनों नेताओं ने उन तीनों दिनों में मुलाकात की जब मोदी कई नई परियोजनाओं को लॉन्च करने के लिए वाशिंगटन में थे। दोनों देशों में प्रौद्योगिकी के दिग्गजों को एक साथ लाने के लिए तकनीकी हाथ मिलाने से लेकर स्वास्थ्य और शिक्षा प्रणालियों के बीच संबंध बनाने के प्रयासों तक दोनों देश आपसी संबंधों को मजबूती देने में जुटे दिखे।

बाइडन ने सितंबर में जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए वापसी की और भारत संयुक्त बयान पर तमाम देशों को राजी करने में सफल रहा। अमेरिका और यूरोप दोनों ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की निंदा में नरमी दिखाई।

निस्संदेह, भारत-अमेरिका संबंधों के प्रगाढ़ होने का एक बड़ा कारण चीन है, जिसे दोनों देश एक बड़े सुरक्षा खतरे के रूप में देखते हैं। चीन के लिए अमेरिकी जागृति पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के तहत आई, जिन्होंने अमेरिकी नीति को बदल दिया। अमेरिकी सहयोगियों के खिलाफ पिछले कुछ वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के कई आक्रमणों ने वाशिंगटन के सभी संदेह को दूर कर दिया कि चीन, अमेरिका से नंबर 1 स्थान छीनना चाहता है। चीन का मुकाबला करने में भारत और अमेरिका दोनों के साझा हित हैं।

इसके अलावा साल की शुरुआत दो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों जेक सुलिवन और अजीत डोभाल ने महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों (ICET) पर एक दूरगामी पहल शुरू करने के साथ हुई। यह एक विचार है जो भारत और अमेरिका को सभी प्रमुख मोर्चों - राजनीतिक, रणनीतिक, प्रौद्योगिकी और रक्षा पर जोड़ता है। इसके साथ ही कुछ ही महीनों में विश्वास बढ़ने के साथ कई महत्वपूर्ण प्रगति हुई।

पेंटागन आत्मनिर्भरता के लिए भारत की योजना में एक उत्सुक भागीदार है। भारत में जीई जेट इंजनों के सह-उत्पादन के लिए एक प्रमुख सौदे को अंतिम रूप दिया गया। 31 प्रीडेटर ड्रोन खरीदने के लिए एक और सौदा किया जाएगा, जिसके कुछ हिस्सों को भारत में तैयार किया जाएगा। यह सौदा लगभग पूरा हो गया है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में मित्र नौसेनाओं और वायु सेनाओं के रखरखाव और मरम्मत के लिए भारत को एक रसद केंद्र बनाने के लिए समझौते किए गए हैं। भारतीय रक्षा कंपनियों को अमेरिकी सप्लाई शृंखला में जोड़ने के लिए समर्थन बढ़ा है और प्रतिबंधात्मक अमेरिकी निर्यात नियंत्रणों से निपटा जा रहा है।

भारत और अमेरिका ने अंतरिक्ष के क्षेत्र में लंबी छलांग लगाई और भारत ने अमेरिका के नेतृत्व वाले आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके अलावा, नासा ने 2024 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन को लेकर एक संयुक्त मिशन के लिए इसरो के अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करने पर सहमति जताई है।

व्यापार के मोर्चे पर एक आश्चर्यजनक कदम में दोनों देशों ने आपसी समझौतों के साथ विश्व व्यापार संगठन में सभी सात बकाया व्यापार विवादों को सुलझा लिया है। इस बीच अमेरिका 2022 में 191 अरब के दो-तरफा व्यापार के साथ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार बन गया। 2023 के लिए डेटा उपलब्ध होने पर यह आंकड़ा आगे जाने की उम्मीद है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रणनीतिक साझेदारी उस स्तर तक परिपक्व हो गई है जहां गंभीर चुनौतियों को शांति और विचार के साथ निपटाया जाता है।

अगर 2023 ने कई मोर्चों पर अभूतपूर्व प्रगति दर्ज की, तो इसने रास्ते में रोड़े भी अटकाए हैं। अमेरिकी न्याय विभाग ने एक भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता के खिलाफ अभियोग का खुलासा किया, जिसने कथित तौर पर न्यूयॉर्क स्थित खालिस्तानी की हत्या की साजिश रचने के लिए भारत सरकार के एक अधिकारी के साथ काम किया था। साजिश को नाकाम कर दिया गया था, लेकिन इस आरोप ने वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच विश्वास को नुकसान पहुंचाया।

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने 18 जून को खालिस्तानी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के कुछ महीने बाद भारत सरकार पर आरोप लगाए थे। लेकिन ट्रूडो के सार्वजनिक बयानबाजी के विपरीत, अमेरिकी अधिकारियों ने शीर्ष भारतीय अधिकारियों के साथ बंद दरवाजों के पीछे जानकारी साझा की और जवाबदेही पर जोर दिया।

बाइडन ने खुद पीएम मोदी के समक्ष यह मुद्दा उठाया और सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक एवरिल हेन्स समेत कई उच्च स्तरीय अधिकारियों को नई दिल्ली भेजा। भारत ने पूरे मामले की जांच के लिए एक जांच समिति नियुक्त की है। यह स्पष्ट है कि कोई भी पक्ष नहीं चाहता कि समस्या से संबंध पटरी से उतरे।

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