नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी (Northeastern University) के एक शोधकर्ता के नेतृत्व में एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में, खासकर कमजोर संस्थागत ढांचे वाले राज्यों में, अपराधी राजनेताओं की बढ़ती संख्या और अपराध में वृद्धि के बीच एक सीधा संबंध है। इस अध्ययन के मुताबिक, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य ज्यादा प्रभावित हैं। इन राज्यों में चुने हुए राजनेताओं की अपराधिक पृष्ठभूमि के साथ अपराध दर में तेजी आ रही है।
नॉर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी में सार्वजनिक नीति और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर निशित प्रकाश ने इस अध्ययन का नेतृत्व किया है। यह जर्नल ऑफ लॉ, इकोनॉमिक्स, एंड ऑर्गेनाइजेशन में प्रकाशित हुआ था। प्रकाश और उनके साथ काम करने वाले रिसर्चरों ने पाया कि जिन राज्यों में गंभीर आपराधिक मामलों, जैसे हत्या या अपहरण का सामना करने वाले राजनेताओं का अनुपात अधिक है, उनमें अपराध में प्रति वर्ष उल्लेखनीय 5.8 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। निशित प्रकाश ने कहा, 'अपराध से अपराध पैदा होता है। कमजोर संस्थानों वाले राज्यों में इन राजनेताओं ने वास्तव में अपराध दर में वृद्धि की है, खासकर गंभीर आरोपों वाले मामलों में।'
अध्ययन के मुताबिक, बिहार जैसे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गंभीर है। इस राज्य में पप्पू यादव जैसे नेता लंबे समय से आपराधिक मामलों में उलझे हुए हैं। यादव लगभग 25 वर्षों से संसद के सदस्य हैं। उनके खिलाफ 41 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें 2008 में हत्या का दोष भी शामिल है। हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था। इसी तरह, बिहार विधानसभा के सदस्य अनंत सिंह पर कई हत्या, अपहरण और अन्य हिंसक वारदात के आरोप हैं।
अध्ययन इस मुद्दे के ऐतिहासिक संदर्भ की भी पड़ताल करता है। बिहार में लालू प्रसाद यादव जैसे हस्तियों का उल्लेख करता है। लालू बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री थे। जिनका 1980 और 1990 के दशक में शासन 'जंगल राज' के रूप में जाना जाता है, क्योंकि उस वक्त फिरौती के लिए अपहरण का प्रचलन आम था। उस दौर में कानून और व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति ने व्यापक भय पैदा किया। जिसके कारण डॉक्टरों सहित कई पेशेवर राज्य से भागने को मजबूर हो गए।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के 2003 के एक महत्वपूर्ण फैसले के बाद से राजनेताओं को अपने खिलाफ दायर किए गए किसी भी आपराधिक मामले की जानकारी देना जरूरी है। हालांकि, शोध यह दिखाता है कि आपराधिक आरोपों का सामना करने वाले राजनेताओं में बढ़ोतरी कम नहीं हुई है। कुछ राज्यों में लगभग 40 प्रतिशत चुने हुए प्रतिनिधियों पर गंभीर आरोप हैं।
प्रकाश के शोध में अपराधी राजनेताओं और महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों के बीच एक चिंताजनक संबंध भी पाया गया है। इसके मुताबिक जिन राज्यों में ज्यादा आरोपी प्रतिनिधि हैं वहां महिलाओं के खिलाफ अपराध में 12.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसने महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी में 10-11 प्रतिशत की कमी को भी योगदान दिया है।
प्रकाश ने कहा, 'उच्च अपराध दर वाले क्षेत्रों में, खासकर महिलाओं के खिलाफ, हम महिला श्रम शक्ति में भागीदारी पर सीधा प्रभाव देखते हैं। महिलाएं सुरक्षित महसूस नहीं करती हैं। इससे उनके घर से बाहर काम करने की संभावना कम होती है। इसका अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा अध्ययन में पाया गया कि जिन क्षेत्रों में अपराधी राजनेताओं का अनुपात अधिक है, वहां आर्थिक विकास में सालाना तौर पर 6.5 प्रतिशत तक की कमी आई है।
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