कॉग्निजेंट (Cognizant) के सीईओ रवि कुमार ने इंडियन अमेरिकन बिजनेस इंपैक्ट ग्रुप के साथ अपनी हालिया बैठक के दौरान आईटी सेक्टर के बदलते स्वरूप को लेकर अपने विचार पेश किए। उनकी यह चर्चा लगातार विकसित होते आईटी परिदृश्य पर केंद्रित थी, जिसमें उभरते हुए रुझानों और महत्वपूर्ण चुनौतियों का भी जिक्र किया गया था।
भारतीय अमेरिकी रवि कुमार ने कोरोना काल के बाद के दौर में उद्योगों और समाज के बदलते रूप और इन पर जनरल एआई तकनीक के संभावित प्रभावों को लेकर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह बदलाव बीते वक्त से कहीं ज्यादा हमारे भविष्य को प्रभावित करता है। पिछले 50 वर्षों से ज्यादा समय से तकनीक आती रही हैं और जाती रही हैं। अधिकतर तकनीकों के जरिए इंसान यह जानने की कोशिश करता रहा है कि कंप्यूटर क्या क्या कर सकते हैं। लेकिन यह पहली बार है, जब कंप्यूटर बताने लगा है कि इंसान क्या क्या कर सकते हैं।
रवि कुमार ने अमेरिका में सामाजिक मोबिलिटी का भी जिक्र किया। इसमें बहुत से लोग अपनी नौकरियां इसलिए छोड़ रहे हैं क्योंकि उन्हें ऊपर पहुंचने के पर्याप्त अवसर नहीं मिल पा रहे हैं। वह इस बात पर चर्चा करते हैं कि एआई की वजह से उनके बिजनेस पर क्या असर हो सकता है। इसकी वजह से अपने स्वतंत्र रूप से कामकाम करने के लिए कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। इस तरह वे ज्ञान के आधार पर अनुभव जुटा रहे हैं।
रवि कुमार ने कहा कि हर महीने 40 लाख लोग नौकरियां छोड़ रहे हैं और हम सिर्फ तीन लाख नौकरियां ही पैदा कर पा रहे हैं। हर साल 4.8 करोड़ लोग अपनी नौकरियों से अलग हो रहे हैं। ये अमेरिका में काम करने वाली कुल आबादी का एक तिहाई है। ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा क्योंकि इन कर्मचारियों को ऊपर उठने का मौका नहीं दिख रहा है।
रवि कुमार ने कहा कि इस मामले में एआई एक टूल की तरह मदद कर सकता है। इसके जरिए एक्सपर्ट्स अपने विचारों को आम लोगों तक पहुंचा सकते हैं। देखा जाए तो यह एक लोकतंत्रीकरण टूल जैसा हो गया है। इसके जरिए किसी क्षेत्र विशेष में महारत रखने वाले लोग अन्य लोगों में अपना ज्ञान बांटने में सक्षम हो पा रहे हैं। इस तरह यह एक बराबरी का आधार तैयार करने में मदद कर रहा है।
रवि कुमार ने जोर देकर कहा कि एआई का भारतीय जॉब मार्केट में भी काफी असर हो सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि एआई की वजह से जितनी नौकरियां प्रभावित हुई हैं, वो फिर से वापस आएंगी। रवि कुमार एआई को चुनौती नहीं बल्कि एक अवसर की तरह देखने का सुझाव देते हैं। वे कहते हैं कि कंपनियां इसकी मदद से अपनी वर्कफोर्स को ट्रेनिंग दे सकती हैं और उन्हें नई क्षमताओं से लैस करके टेक्नोलोजिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार कर सकती हैं।
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