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भूमि पेडनेकर : समाज से निकली एक अलग धारा

जब नायक कोई ऐसी फिल्म करता है तो उसकी संस्कृति और परवरिश पर कोई सवाल नहीं उठाता। उनकी फिल्मों को उन्मुक्तता का तमगा देकर सेलिब्रेट किया जाता है। मगर क्या किया जाए... यही वह समाज है जिसमें हम रहते हैं।

फिल्म भक्षक के एक सीन में भूमि और संजय मिश्रा। / Image : X@bhumipednekar

फिल्म 'दम लगा के हइशा' को 10 साल हो गए हैं और तभी से भूमि पेडनेकर का कारवां बढ़ रहा है। उनकी अपरंपरागत पसंद उन्हें चर्चा का विषय बनाती रही है। तो चलिए भूमि से उनकी हालिया फिल्म 'भक्षक' के बारे में बात करते हैं जो खूब धूम मचा रही है।

इन 10 सालों में आपके लिए स्टारडम के मायने कितने बदल गये हैं?
यह तो मैं नहीं जानती और न इसके बारे में कभी सोचा। मैं अपना काम कर रही हूं और मुझे लगता है कि मैं काफी भाग्यशाली हूं कि मैं लगातार शूटिंग कर रही हूं। यह सब काफी तेजी से हुआ है अब तक मैंने जो काम किया है उसकी बदौलत मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है मैं उसका आनंद ले रही हूं। यह मेरे लिए बहुत बड़ी बात है कि वाईआरएफ (यशराज) परिवार मेरा साथ दे रहा है।

आपने अपनी चुनी हुई भूमिकाओं के लिहाज से विविधता दिखाई है, लेकिन क्या आपको लगता है कि आपकी कुछ सीमाएं हैं जिन्हें आप अभी तक पार नहीं कर पाई हैं?
एक अभिनेत्री के तौर पर अभी तो मुझे नहीं पता कि मेरी सीमाएं क्या हैं। मैं प्रयोग कर रही हूं। अगर भूमिका और किरदार मुझसे जुड़ते हैं तो मैं चुनौती स्वीकार कर लेती हूं। लेकिन तब जब मैं आश्वस्त होती हूं कि मैं अपने दर्शकों को भी आश्वस्त कर पाऊंगी। आप दर्शकों को धोखा नहीं दे सकते! सच कहूं तो मेरे पास कोई योजना या लाइन-अप नहीं है कि मैं अगली फिल्म क्या और कैसे करूंगी। मुझे यह भी नहीं पता कि मैं आगे क्या करने वाली हूं। मैं अभी भी खुद को और अपनी क्षमता को खोजने की प्रक्रिया में हूं।

'भक्षक' एक पत्रकार के बारे में है। क्या आपको लगता है कि मीडिया समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है?
मीडिया हमारे लोकतंत्र का स्तंभ है। अगर समाज अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहता है तो इसमें मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है। मैं हमेशा समाज में चल रही गलत चीजों के बारे में जानती थी और उनके खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश करती थी। जहां तक फिल्म की बात है तो निर्देशक पुलकित और ज्योत्सना ने इस फिल्म की अच्छी स्क्रिप्ट लिखी थी। उनके लिए यह एक महत्वपूर्ण फिल्म थी। हमने बहुत सारे शोध किये। कार्यशालाएं कीं। और इसके लिए मैं अच्छी तरह से तैयार थी। वह (किरदार) एक सशक्त पत्रकार है। समाज ने उनके जुनून और साहस को सशक्त बनाया है।

क्या भक्षक उन पत्रकारों और समाज के लिए कुछ चीजों को बदल पाएगी?
मुझे लगता है और उम्मीद है कि यह फिल्म हर किसी को प्रेरित करेगी। चाहे वह किसी भी पेशे से हो। जब आपको लगे कि कुछ गलत हुआ है तो उसकी तह तक जाने और उसे रोकने का साहस रखें।

क्या आपको लगता है कि महिला केंद्रित सिनेमा के लिए समय बदल रहा है?
मुझे लगता है कि हमारे दर्शक बदल गए हैं। महिला केंद्रित सिनेमा को लेकर कोई विभाजन नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि फिल्मों को उतना प्रचारित नहीं किया जाता। कहीं न कहीं मीडिया को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। लेकिन उसके लिए शुक्र है कि ओटीटी जैसे मंच हैं जहां समान विचारधारा वाले लोगों को फिल्म और फिल्म को दर्शक मिल जाते हैं। 

आपकी फिल्मों में हम आपके व्यक्तित्व का कितना हिस्सा देख पाते हैं। क्या इसीलिए निर्देशक ऐसी भूमिकाओं के लिए आपसे संपर्क करते हैं?
मैं इन भूमिकाओं से आकर्षित हुई हूं और इन्हें करने में मजा आता है। शायद इसीलिए निर्देशक मुझसे संपर्क करते हैं। ये फिल्में मुझे जीवित रखेंगी और मैं चाहती हूं कि लोगों को पता चले कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया और मैं चाहती हूं कि इसका सकारात्मक प्रभाव पड़े।

लेकिन साथ ही 'लस्ट स्टोरीज' और 'थैंक यू फॉर कमिंग' जैसी फिल्मों को ढेर सारी नकारात्मक टिप्पणियां मिली हैं। आप क्या कहेंगी?
जी हां लेकिन डॉली किट्टी और वो चमकते सितारे भी थी। सच कहूं तो जब नायक कोई ऐसी फिल्म करता है तो उसकी संस्कृति और परवरिश पर कोई सवाल नहीं उठाता। उनकी फिल्मों को उन्मुक्तता का तमगा देकर सेलिब्रेट किया जाता है। मगर क्या किया जाए... यही वह समाज है जिसमें हम रहते हैं।

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