अगर राष्ट्रपति जो बाइडन अपने सहयोगियों पर निजी तौर पर एफ-बम गिरा रहे हैं इसे बहुत हद तक समझा जा सकता है। इस चिड़चिड़ाहट को उनकी उम्र से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए जो कि अब 81 है। एक विशेष चार अक्षर के शब्द का अचानक से निकलना राष्ट्रपति के दिमाग में उमड़-घुमड़ कर रही बहुत सी चीजों की ओर इशारा करता है।
पहली बात तो यही है और एक बड़ी चिंता का पहलू भी हो सकता है कि अधिकांश अमेरिकी, जिनमें डेमोक्रेट्स का एक ठोस धड़ा भी शामिल है, मानते हैं कि इस बार की सियासी जंग में उनका कोई काम नहीं है। इसलिए कि अगर नवंबर के राष्ट्रपति चुनाव में वह फिर से चुने जाते हैं तो कार्यकाल समाप्त होने पर (2029) 86 साल के हो जाएंगे। आम जनता से लेकर उनकी अपनी पार्टी के गलियारों में भी सबके दिमाग में उम्र का यही गणित चल रहा है।
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। राष्ट्रपति द्वारा वर्गीकृत दस्तावेजों को ले जाने की जांच कर रहे विशेष वकील को आपराधिक गलत काम का कोई सबूत तो नहीं मिला अलबत्ता उसने राजनीतिक जुगाली के लिए एक सुर्रा छोड़ दिया- बाइडन एक अच्छे बूढ़े हैं... लेकिन एक भयानक स्मृति के साथ। यह टिप्पणी राष्ट्रपति और उनके बारे में सोचने वालों को कुपित करने के लिए पर्याप्त है।
लेकिन यह टिप्पणी रिपब्लिकंस के लिए राष्ट्रपति की अक्षमताओं पर 25वें संशोधन को लागू करने और उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को नौसेना वेधशाला से वेस्ट विंग तक ले आने के लिए काफी थी। हालांकि अभी ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला और चूंकि राष्ट्रपति बाइडन 50 वर्षों से अधिक समय से वॉशिंगटन में रह रहे हैं इसलिए वह भी यह अच्छी तरह से जानते हैं। दूसरे उस एफ-शब्द से उनकी समस्या इसलिए भी नहीं बढ़ने वाली क्योंकि उनके पूर्ववर्ती डोनाल्ड ट्रम्प के हर वाक्य में कम से कम एक बार तो वह शब्द होता ही थी।
वैसे, बाइडन का वह शब्द कहना एक अन्य डेमोक्रेटिक राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन के सामने बौना पड़ जाता है। इस पद का इतिहास जानने वाला कोई भी शख्स कह सकता है कि जब अश्लीलता, असभ्यता और फूहड़ता की बात आती है तो राष्ट्रपति जॉनसन के सामने कोई नहीं ठहरता। लेकिन बाइडन और उनके अभियान के कर्मचारी जानते हैं कि आगामी नवंबर का चुनाव इस बारे में नहीं है कि किसे गाली (एफ) दी गई, किस देश को गाली दी गई और किस विश्व नेता को गरियाया गया। इस बार विदेश नीति अमेरिकी चुनाव पर प्रभाव डाल सकती है और इसमें गाजा और यूक्रेन में चल रही घटनाएं सबसे ऊपर हैं।
गाजा का घटनाक्रम बाइडन के लिए असली सिर दर्द बन गया है क्योंकि पार्टी में प्रगतिशील और निर्दलीय लोग प्रशासन के अप्रभावी प्रबंधन से नाखुश हैं जिसे प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की हठधर्मिता के रूप में देखा जा रहा है। अरब अमेरिकी डेमोक्रेट्स ने तो स्पष्ट कर दिया है कि वे राष्ट्रपति बाइडन के साथ नहीं हैं। इससे युद्धरत देशों में राजनीतिक स्थिति बेहद कठिन हो गई है।
वहीं ट्रम्प यह कह चुके हैं कि वह यूक्रेन युद्ध को एक दिन में खत्म कर सकते हैं। उन्होंने तो यह तक कह दिया है कि अगर वह व्हाइट हाउस में होते तो टकराव पैदा ही नहीं होता। अब यह तो किसी को पता नहीं है कि ट्रम्प के पास जंग तो रोकने की क्या योजना है अलबत्ता युद्ध तीसरे साल में प्रवेश कर चुका है। 1968 में रिचर्ड निक्सन को वियतनाम युद्ध समाप्त करने की उनकी 'गुप्त योजना' के नाम पर राष्ट्रपति चुना गया था लेकिन 1975 में साइगॉन के पतन के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका को कंबोडिया में एक शर्मनाक वापसी का सामना करना पड़ा।
अलाबामा के सीनेटर टॉमी ट्यूबरविले जैसे कट्टरपंथी रिपब्लिकन का कहना है कि बाइडन प्रशासन यूक्रेन संघर्ष का अंत चाहता ही नहीं है। तभी तो राजनयिक मार्ग अपनाया ही नहीं गया। सीनेटर ने कहा है कि हमने एक महीने में इजराइल और हमास के साथ अधिक बात की है जबकि इसकी तुलना में दो साल में यूक्रेन और रूस के साथ कितनी कम बात हुई। उधर, प्रतिनिधि सभा ने सीनेट द्वारा पारित एक विधेयक पर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया है जिसमें लगभग 96 बिलियन अमेरिकी डॉलर की विदेशी सहायता निधि में से यूक्रेन के लिए 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर अलग रखे गए हैं। पिछले दो वर्षों में वॉशिंगटन ने कीव को लगभग 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता प्रदान की है।
कानूनविद अतिरिक्त फंडिंग को लेकर अनिच्छुक हैं। आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि कई लोगों का मानना है कि इस संघर्ष से कुछ वापस मिलने वाला नहीं है और यह विचार इस साधारण सी धारणा पर बना है यूक्रेन रूस से पार नहीं पा सकता। यूक्रेन संघर्ष की दूसरी बरसी पर लेकिन आर्कटिक जेल में असंतुष्ट एलेक्सी नवलनी की मौत का बदला लेने के एक तरीके के रूप में बाइडन ने रूस के खिलाफ 500 से अधिक प्रतिबंध लगाए हैं। किंतु पिछले दंडात्मक उपाय वॉशिंगटन को दो बातें याद दिलाने में विफल रहे हैं। न तो पुतिन की नींद उड़ी है और न ही रूस ने घुटने टेके हैं।
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