दक्षिण भारतीय शहर बेंगलुरु की अनन्या प्रसाद ने 52 दिनों में अटलांटिक महासागर को अकेले पार कर इतिहास रच दिया है। वह यह उपलब्धि हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं और प्रतिष्ठित वर्ल्ड्स टफेस्ट रो में द्वितीय स्थान प्राप्त किया है। अनन्या ने ला गोमेरा, टेनेरिफ़ से एंटीगुआ तक 3,000 मील की चुनौतीपूर्ण यात्रा पूरी की। इस दौरान उन्हें भीषण तूफानों, उपकरणों की विफलता और विशाल महासागर की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। यह रेस दुनिया की सबसे कठिन सहनशक्ति परीक्षाओं में से एक मानी जाती है।
साहस और संघर्ष की अद्वितीय कहानी
वर्ल्ड्स टफेस्ट रो, जिसे पहले टालिस्कर व्हिस्की अटलांटिक चैलेंज के नाम से जाना जाता था, अपनी कठोरता के लिए प्रसिद्ध है। अनन्या इस चुनौती को पूरा करने वाली दुनिया की गिनी-चुनी महिलाओं में से एक हैं। अब तक, केवल 25 से भी कम महिलाओं ने यह उपलब्धि हासिल की है।
अनन्या हमेशा रोमांच और नए अनुभवों की शौकीन रही हैं। उन्होंने स्काईडाइविंग, कयाकिंग, ट्रेकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग और पर्वतारोहण जैसे कई एडवेंचर स्पोर्ट्स किए हैं। लेकिन उन्होंने इस क्षेत्र में विविधता की कमी को हमेशा महसूस किया।
अनन्या का कहना है, "एडवेंचर स्पोर्ट्स में महिलाओं और रंगभेद से प्रभावित समुदायों की भागीदारी बहुत कम है। इसके कई कारण हो सकते हैं, लेकिन मैं चाहती हूं कि मेरी यात्रा दूसरों को प्रेरित करे। मैं चाहती हूं कि महिलाओं और रंगभेद प्रभावित समुदायों को भी इस क्षेत्र में अपनी जगह मिले।"
आत्मनिर्भरता और संकल्प का प्रतीक
अनन्या की यात्रा केवल शारीरिक चुनौती नहीं थी, बल्कि यह मानसिक दृढ़ता की भी परीक्षा थी। 30 फीट ऊंची लहरों, नींद की कमी और अकेलेपन का सामना करते हुए, उन्होंने अपने विशेष रूप से तैयार 25 फीट लंबे 'ओडिसियस' नाव के सहारे यह सफर पूरा किया। यह नाव पूरी तरह आत्मनिर्भर थी, जिसमें सौर ऊर्जा से चलने वाले उपकरण और जल को पीने योग्य बनाने के लिए डीसैलीनेटर मौजूद था।
हालांकि, यात्रा के दौरान उन्हें सेफ्टी यॉट्स और सैटेलाइट कम्युनिकेशन से जुड़ाव मिला, लेकिन वास्तविक रूप से वह अकेली थीं और उन्होंने खुद ही अटलांटिक महासागर को पार करने का साहस दिखाया।
अनन्या की यात्रा
अनन्या की यह यात्रा केवल महासागर पार करने तक सीमित नहीं थी, बल्कि यह महिलाओं और अल्पसंख्यक समुदायों के लिए सशक्तिकरण और प्रेरणा का भी प्रतीक थी। उनका कहना है, "मैं चाहती हूं कि महिलाओं और रंगभेद प्रभावित लोगों के लिए एडवेंचर स्पोर्ट्स कोई अनोखी चीज़ न हो, बल्कि सामान्य बन जाए।"
उन्होंने यह यात्रा मेंटल हेल्थ फाउंडेशन के लिए फंड जुटाने के उद्देश्य से की थी और पहली रंगभेद प्रभावित महिला बनने का लक्ष्य रखा था, जिन्होंने बिना किसी सहायता के अकेले महासागर पार किया।
"हम अपनी क्षमता से अधिक सक्षम हैं"
अनन्या ने अपने इस अभियान से यह संदेश दिया कि मानसिक और शारीरिक चुनौतियों से जूझने का साहस हमें खुद की क्षमताओं को पहचानने में मदद करता है।
वह कहती हैं, "सोचिए जब आपने कोई कठिन चुनौती पूरी की हो, जो आपको असंभव लग रही थी, और अंत में आपको यह अहसास हुआ कि आप इसे करने में सक्षम थे। यही एडवेंचर और फिजिकल चैलेंज का असली आनंद है।"
अनन्या की यह ऐतिहासिक उपलब्धि एडवेंचर स्पोर्ट्स में विविधता और भागीदारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनकी यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।
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