सूर्य की उपासना के चार- दिवसीय लोकमहापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है। पूर्वांचल की छठ परंपरा अब भारत के लगभग हर कोने के साथ-साथ विदेशों में भी अपनी छाप छोड़ रही है। प्रकृति की पूजा का यह व्रत ऊंच-नीच, अमीर-ग़रीब, स्त्री-पुरुष के भेद से परे है।
हमारे धर्म और शास्त्रों में असंख्य देवी-देवताओं का वर्णन है। कई क़िस्से हमने सुने हैं लेकिन हमने कभी उन्हें नहीं देखा। देव-देवियों के रूप में सूर्य, चंद्र, नदियां ही सदा हमारी आंखों के सामने रहे हैं। हमें कभी इनके अस्तिव को स्वीकारने में किसी तर्क या प्रमाण की ज़रूरत महसूस नहीं होती है। इन्हीं प्रत्यक्ष देव-देवियों की पूजा का नाम छठ है।
छठ की पूजा इतनी सरल है कि अगर आपके पास कुछ भी नहीं है, तब भी एक नारियल मात्र से आप सूर्य को अर्घ्य दे सकते हैं। ना मंत्र की ज़रूरत, ना ही पुरोहित की। व्रती लोकगीतों के ज़रिए सूर्य और नदियों की गोहार लगाते हैं। वैसे भी प्रकृति को हम दे भी क्या सकते हैं, उनका आभार मानने के सिवा। हम कामना करते हैं कि हे सूर्य, आप हमारी संतानों की रक्षा करें, हमें जीवन दें। हमारी धरती हरी-भरी रहे।
वैसे तो हर व्रत और त्योहारों से हम भारतीयों की यादें और विश्वास जुड़ा होता है, लेकिन छठ पूर्वांचल के लिए एक इमोशन की तरह है। हम चाहे घर से कितनी भी दूर रहते हों, छठ पर घर की बहुत याद आती है। आंखें नम हो जाती हैं और हम ढूंढते रहते हैं कि परदेश में भी कोई छठ व्रती मिल जाए तो उसके चरण छूकर आशीर्वाद लिया जा सके।
इसी की खोज में मैं अमेरिका में रहते हुए कई अद्भुत लोगों से मिली। पहली बार तीन घंटे की ड्राइव करके वर्जीनिया के पॉटमेक रिवर के किनारे पहुंची। वहां व्रती अनीता जी छठ कर रही थीं। मेरी जानकारी के अनुसार, अमेरिका में लेक/समुंदर किनारे छठ पूजा परम्परा की शुरुआत अनीता ने ही की है। अब तो कई लोग अलग-अलग शहरों में घरों से निकलकर समुद्र/लेक पर छठ पूजा करने पहुंचने लगे हैं।
लोकपर्व छठ का जिक्र हो और हमारी लोकगायिका शारदा सिन्हा को याद ना किया जाए, यह लगभग असंभव है। शारदा जी की आवाज़ और छठ के गीत मानो एकदूसरे के पूरक हैं। बिना इनके छठ पूजा सूनी-सूनी सी लगती है।
यह संयोग है या छठी मईया का शारदा जी से प्रेम, कि छठ पर्व की शुरुआत के पहले ही दिन वह पार्थिव शरीर को छोड़कर ब्रह्मांड में लीन हो गईं। मेरी आंखें यह सोचकर भीग रही हैं कि जिस घाट पर छठी माई के आने की तैयारी हो रही होगी, वहीं किसी घाट पर शारदा जी की विदाई की।
कितना मार्मिक दृश्य होगा। एक घाट उनके गीतों से गूंज रहा होगा, वहीं दूसरा चिता की लौ से नारंगी हो रहा होगा। सूरज ढल रहा होगा। व्रती जल में खड़ी होकर सूरज देव को गोहरा रही होंगी कि हे देव, सब पर अपनी कृपा बनाए रखें।
अगली सुबह उगते सूरज के साथ शारदा जी की आवाज़ में उसी घाट पर संगीत बज रहा होगा- उगी हे सुरुज देव भोर भिनसारिया…
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