ग्लोबल रिसर्च एनालिस्ट काउंटरपॉइंट ने भारतीय स्मार्टफोन मार्केट को लेकर दो हफ्ते पहले एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि भारत में एप्पल के आईफोन की बिक्री पिछले साल एक करोड़ की संख्या को पार कर गई थी। इसकी बदौलत कंपनी रेवेन्यू के मामले में पहली बार टॉप पर पहुंच गई। भारत में फोन तो सैमसंग के ज्यादा बिके लेकिन कमाई एप्पल ने ज्यादा की क्योंकि औसतन एक आईफोन की कीमत अन्य प्रीमियम फोन की तुलना में लगभग तीन गुना होती है।
साल 2023 में एप्पल ने इसके अलावा भी कई तरह से भारत में खुद खुद को मजबूत किया। एप्पल अब भारत में अपने तीन कॉन्ट्रैक्ट कंपनियों - फॉक्सकॉन, पेगाट्रॉन और विस्ट्रॉन के जरिए आईफोन बनाती है। ये सभी ताइवानी कंपनियां हैं। इनमें से आखिरी कंपनी के भारतीय प्लांट का अब टाटा ग्रुप ने अधिग्रहण कर लिया है।
एप्पल 25 वर्षों से भारत में मौजूद है। पहले यह अपने मैकिंटोश रेंज के पीसी, लैपटॉप और आईपॉड म्यूजिक प्लेयर भी बेचती थी। 2007 में जब एप्पल ने आईफोन लॉन्च किया था तो उसने भारत में इसे बेचने का शायद ही कोई प्रयास किया हो। लेकिन एक दशक बाद, अब इसने भारत में ही फोन बनाना शुरू कर दिया है। हालांकि अभी भी एप्पल भारत में अपने खुद के स्टोर खोलने के बजाय भागीदार कंपनियों के जरिए मार्केटिंग पर ज्यादा जोर दे रही है।
दिलचस्प बात ये है कि अप्रैल 2023 में मुंबई के बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में कंपनी के भारत में पहले एप्पल स्टोर का उद्घाटन सीईओ टिम कुक ने किया था। इसके कुछ दिनों बाद दिल्ली के साकेत में दूसरा आउटलेट खोला गया था।
भारत में एप्पल की कहानी दशकों के कथित अहंकार और पूर्वाग्रह की एक खेदजनक कहानी रही है। एक जमाना था जब एक कॉलेज ड्रॉप-आउट किशोर के रूप में एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स अमेरिका के ओरेगन में रकम जुटाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे थे। यहां तक कि उन्होंने हरे कृष्ण मंदिर में मुफ्त में भोजन तक किया था। 1970 के दशक के मध्य में वह आध्यात्मिक मोक्ष की तलाश में भारत आ गए थे। यहां उन्होंने अपना सिर भी मुंडवाया और भारतीय वस्त्र भी धारण किए।
उदारीकरण से पहले के भारत में उन्होंने जो देखा, जाहिर है वह उन्हें इस देश को एक महत्वपूर्ण बाजार के रूप में सोचने के लिए प्रोत्साहित नहीं करता था। और जाहिर है कि बाद के दशकों में भी उन्होंने अपनी धारणा या पूर्वाग्रहों को बदलने का कभी प्रयास नहीं किया। भारत में उस समय आईफोन की कीमत अन्य विदेशी बाजारों से काफी अधिक थी। इसके लिए पूरी तरह आयात शुल्क को कारण नहीं बताया जा सकता। हर नया आईफोन वैश्विक बाजार में लॉन्च होने के महीनों बाद
भारत पहुंचता था।
2011 में स्टीव जॉब्स के निधन के कुछ वर्षों बाद तक ऐसा लगा कि उनके उत्तराधिकारी टिम कुक भी अपने मालिक की राह पर ही चल रहे हैं। फिर उनका भारत के प्रति नजरिया बदला। आखिरकार मई 2016 में भारत की यात्रा करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के बाद टिम कुक ने सरकार के 'मेक इन इंडिया' अभियान का हिस्सा बनने का फैसला किया। हालांकि शुरुआत उन्होंने आईफोन के पुराने मॉडलों से ही की। पिछले साल इसमें एक बड़ा बदलाव उस समय आया, जब एप्पल का लेटेस्ट आईफोन 15 भारतीय फैक्ट्री से बनकर निकला और पूरी दुनिया के साथ ही भारत में भी लॉन्च हुआ।
यह कहानी का अंत नहीं है। एप्पल एनालिस्ट मिंग-ची कू के हवाले से रॉयटर्स ने अनुमान लगाया है कि एप्पल भविष्य में न सिर्फ अपने आईफोन बनाने बल्कि नए मॉडल विकसित करने के लिए भी भारत का रुख कर सकता है। उन्होंने बताया कि आईफोन 17 के डेवलपमेंट के लिए भारत के तीन प्लांटों में 2024 की दूसरी छमाही में ही प्रक्रिया शुरू हो सकती है। इस डिवाइस के 2025 के अंत तक आने की संभावना है।
यह देखना अच्छा लगता है कि डिजाइन और इनोवेशन में भारत की क्षमता को एप्पल भी पहचानने लगा है। दुनिया के सबसे बड़े टेक उद्यमी तो पिछले 20 वर्षों से रिसर्च और डेवलपमेंट में भारत की काबिलियत पर भरोसा कर रहे हैं, भले ही सीमित रूप से।
एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स के दौर में भारत भले ही कंपनी के नक्शे पर जगह न बना पाया हो, लेकिन अब टिम कुक की कमान में वह कंपनी की भविष्य की योजनाओं के केंद्र में शामिल है। उम्मीद की जा रही है कि भविष्य में आने वाले एप्पल के हर चार आईफोन में से एक भारतीय प्लांट से निकलेगा।
और जैसा कि कहावत है- देर आयद दुरुस्त आयद। क्लब में आपका स्वागत है।
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