अमेरिका में 2024 के राष्ट्रपति चुनाव में अब एक साल से भी कम समय बचा है। चुनावों को लेकर सरगर्मियां सिरे चढ़ चुकी हैं। खासकर रिपब्लिकन खेमे का एक छोटा सा समूह खासा सक्रिय हो चुका है, जो उम्मीद करता है कि वे किसी भी तरह अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से फायदा उठा सकते हैं। ट्रंप यानी एक ऐसे शख्स, जिन्होंने अभी तक औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है कि वह 2020 का मुकाबला हार गए थे। ट्रंप ने ग्रैंड ओल्ड पार्टी और डेमोक्रेट्स दोनों की नींद उड़ा रखी है।
पार्टी के वरिष्ठ नेता और जीओपी के अंदर उम्मीदवारी के दावेदार भी मान रहे हैं कि पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप अभी भी नेतृत्वकारी स्थिति में हैं। डेमोक्रेट्स भी यह जानकर हैरान हैं कि अदालत से विपरीत फैसलों और कानूनी असफलताओं के बावजूद चुनावी संख्या के मामले में ट्रंप सबसे आगे बने हुए हैं। यहां तक कि वह राष्ट्रपति जो बाइडेन के खिलाफ भी अपनी बढ़त बनाए हुए हैं, हालांकि मामूली ही सही। लेकिन डेमोक्रेट्स के लिए अपने नेतृत्व की घटती राजनीतिक हैसियत ही चिंता का सबब नहीं है बल्कि यह भी एक बड़ी चिंता की बात है कि जीओपी में एक उभरती हुई स्टार निकी हेली अनुमानों में बाइडेन से आगे दिख रही हैं।
रिपब्लिकन लाइन अप में कम से कम तब तक अनिश्चितता बनी रहेगी जब तक कि आयोवा कॉकस और न्यू हैंपशायर प्राइमरी चुनाव नहीं हो जाते। देखना यह है कि क्या मौजूदा दावेदार निकी हेली स्पष्ट जीत हासिल करके आगे बढ़ पाती हैं और ट्रंप के साथ अपना अंतर कम कर पाती हैं या नहीं। निकी को जहां शुरुआत में 'बर्डब्रेन' कहकर खारिज किया जा रहा था, वहीं अब ऐसी खबरें आ रही हैं कि ट्रंप की प्रचार टीम अब संयुक्त राष्ट्र की पूर्व राजदूत निकी को ट्रंप की रनिंग मेट बनाने पर विचार कर रही है। संभवत: ऐसा पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के सुझाव पर ही किया जा रहा होगा। अपने ऊपर तीखे हमलों के बावजूद ट्रंप कई मौकों पर कह चुके हैं कि निकी हेली का पार्टी के अंदर भविष्य उज्ज्वल है।
जीओपी में पहले नंबर और दूसरे नंबर पर कौन होगा, इस बारे में पुख्ता रूप से कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगा, लेकिन बाइडेन की प्रचार टीम निकी हेली के साथ एक अलग तरह की लड़ाई के लिए तैयार हो रही होगी। यह लड़ाई घरेलू मोर्चे और विदेशी नीति जैसे विकल्पों पर केंद्रित होगी। बाइडेन के प्रचार रणनीतिकार निश्चित ही चाहेंगे कि 2024 के चुनाव भी 2020 के चुनाव की तरह हों, क्योंकि इस तरह वह जनता का ध्यान झूठ, साजिश और 6 जनवरी के दंगों के जरिए अमेरिका की संवैधानिक एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी से उतारने के प्रयासों पर खींच सकेंगे। साथ ही उन सभी आपराधिक और नागरिक मामलों पर भी, जो पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ पिछले एक साल में सामने आए हैं।
कई लोगों के लिए यह निराशाजनक हो सकता है कि 2024 का चुनावी समीकरण अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है। इसके आगे कई और महीनों तक होने की उम्मीद भी नहीं है। अभी तक दो राज्यों- कोलोराडो और मेन में डोनाल्ड ट्रंप को चुनावों के अयोग्य करार दिया जा चुका है। हो सकता है कि कुछ और राज्यों में भी ऐसा हो। ट्रंप को मतदान से हटाने का मामला अपील प्रक्रिया पूरी होने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचेगा। शीर्ष अदालत को आरोपों के अलावा इस सवाल पर भी फैसला करना होगा कि उन्हें आरोपों से सुरक्षा दी जा सकती है या नहीं। यह नहीं भूलना चाहिए कि ट्रंप चौदहवें संशोधन के संदर्भ का हवाला देकर भी चुनावी सूची में शामिल हो सकते हैं, जो विद्रोह के आरोपी व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकता है। सबसे पहले, शीर्ष अदालत को इस सवाल का जवाब तलाशना होगा कि क्या 6 जनवरी को विद्रोह माना जाए या नहीं।
राजनीतिक घमासान को लेकर जिस तरह के हालात हैं, उनमें यह देखना बहुत मुश्किल नहीं है कि घरेलू और विदेश नीति के महत्वपूर्ण मुद्दों पर किसी भी सार्थक बहस के बजाय पिछले चार वर्षों की घिसी-पिटी बयानबाजी फिर से शुरू होगी। रिपब्लिकन बाइडेन का पत्ता कटवाने के लिए उन्हें दूसरे कार्यकाल के लिए मानसिक रूप से अक्षम दिखाने का प्रयास करेंगे। वहीं बाइडेन समर्थक उम्मीद लगाए बैठे हैं कि ट्रंप अमेरिका को कथित असहिष्णुता और विभाजनकारी नीतियों का खुलासा करेंगे जैसा कि उनके पिछले कार्यकाल और उसके बाद भी नजर आया था।
(न्यू इंडिया अब्रॉड के वर्तमान प्रधान संपादक डॉ. श्रीधर कृष्णस्वामी वाशिंगटन डीसी में द हिंदू और प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया के लिए उत्तरी अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र मामलों के विशेष संवाददाता रह चुके हैं।)
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