अमेरिका में कई प्रमुख भारतीय-अमेरिकी धार्मिक संगठनों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लागू करने के फैसले को लेकर अपने विचार व्यक्त किए हैं। इस कानून को 2019 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था।
हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन (HAF) के कार्यकारी निदेशक सुहाग शुक्ला ने कहा कि भारत का संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लंबे समय से लंबित था। यह भारत में सबसे कमजोर शरणार्थियों की रक्षा करता है, उन्हें वे मानवाधिकार प्रदान करता है जिनसे उन्हें अपने देश में वंचित रखा गया था। उनके जीवन को फिर से संवारने के लिए नागरिकता के लिए स्पष्ट नीति की जरूरत को बताता है।
शुक्ला ने एक बयान में कहा कि सीएए 1990 के बाद से अमेरिका में लंबे समय से स्थापित लॉटेनबर्ग संशोधन को प्रतिबिंबित करता है जिसने उन चुनिंदा देशों जहां धार्मिक उत्पीड़न बड़े पैमाने पर है, से भागने वाले लोगों के लिए एक स्पष्ट रास्ता प्रदान किया। उन्होंने कहा, 'मैं दुनिया के सबसे पुराने और सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रों- अमेरिका और भारत को उन लोगों की स्वतंत्रता और नए जीवन के लिए मार्ग प्रदान करके आशा की किरण के रूप में देखने पर गर्व महसूस कर रहा हूं, जिन्होंने केवल अपने अस्तित्व के कारण बड़े पैमाने पर मानवाधिकारों का उल्लंघन सहा है।
एचएएफ ने जोर देकर कहा कि कुछ गलत धारणाओं के विपरित नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) किसी भी भारतीय नागरिक के अधिकारों से वंचित नहीं करता है, न ही यह मुसलमानों को भारत में प्रवास करने से रोकता है।
उत्तरी अमेरिका में हिंदू समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन 'कोएलिशन ऑफ हिंदूज ऑफ नॉर्थ अमेरिका' (कोहना) ने इस कदम का स्वागत किया है। उन्होंने ट्वीट किया, 'यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए मानवाधिकार की बड़ी जीत है। भारत ने आखिरकार नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को अधिसूचित किया, जिसे 2019 में भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया था।
उन्होंने पोस्ट में कहा, 'किसी भी धर्म के मौजूदा भारतीय नागरिकों पर CAA का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह लगभग 31,000 धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता प्रक्रिया को आसान बनाता है, जो चरम मजहबी उत्पीड़न के कारण पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भाग गए थे।
अमेरिकी गायिका और अभिनेत्री मैरी मिलबेन ने एक्स पर एक पोस्ट में भारत सरकार के इस कदम की सराहना की। उन्होंने कहा कि एक ईसाई विश्वास की महिला और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए वैश्विक अधिवक्ता के रूप में, मैं CAA लागू करने को लेकर मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की सराहना करती हूं। इस कानून की वजह से अब पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में सताए गए गैर-मुस्लिम प्रवासियों, ईसाइयों, हिंदुओं, सिखों, जैन, बौद्धों और पारसियों को भारतीय राष्ट्रीयता प्रदान करता है।
दूसरी ओर, इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे कथित तौर पर 'मुस्लिम विरोधी नागरिकता कानून' कहा। आईएएमसी ने एक बयान में कहा, 'इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने की घोषणा की जोरदार निंदा करता है और गंभीर चिंता व्यक्त करता है।
मुस्लिम संगठन ने आरोप लगाया कि इस कानून के पारित होने के लगभग चार साल बाद इसे लागू किया गया है, जिसके बाद पूरे देश में और दुनिया भर में प्रवासी समुदायों के बीच व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे। इन प्रदर्शनों के लिए भारत सरकार की जबरदस्त प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप कई मुसलमानों की मौत हो गई और कानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा कठोर कार्रवाई के दौरान सैकड़ों घायल हो गए। आईएएमसी ने यह भी कहा कि ह्यूमन राइट्स वॉच ने कानून को 'लाखों मुसलमानों को नागरिकता तक समान पहुंच के उनके मूल अधिकार से वंचित करने के लिए कानूनी ढांचा बनाने' के रूप में पेश किया है।
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