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CAA को लेकर इस देश ने जताई चिंता, भारत ने कहा- यह कानून किसी के हक को नहीं छीनता

अमेरिका ने कहा कि वह भारत में नागरिता संसोधन अधिनियम को लागू किए जाने की अधिसूचना जारी किए जाने को लेकर चिंतित है। इस पर करीब से नजर बनाए हुए है। वहीं, भारत का कहना है कि इससे भारत के अल्पसंख्यकों को जरा भी डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस कानून में किसी नागरिक के अधिकार छीनने का कोई प्रावधान नहीं है।

अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने नियमित संवाददाता सम्मेलन के दौरान इस मसले को उठाया। / Screengrab from official video

अमेरिका ने भारत के नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) को लेकर आशंका जताई है। अमेरिका ने इस कानून को लागू करने को लेकर इस पर बारीकी से निगरानी पर जोर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने नियमित संवाददाता सम्मेलन के दौरान इस मसले पर अमेरिका की चिंताओं से अवगत कराया और सभी सामाजिक गुटों के लिए कानून के तहत धार्मिक स्वतंत्रता और समान व्यवहार के महत्व पर रोशनी डाली।

मिलर ने कहा, हम 11 मार्च को नागरिकता (संशोधन) कानून की अधिसूचना जारी होने को लेकर चिंतित हैं। हम बारीकी से निगरानी कर रहे हैं कि इस अधिनियम को कैसे लागू किया जाएगा। मिलर ने एक सवाल के जवाब में कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान और सभी समुदायों के लिए कानून के तहत समान व्यवहार मौलिक लोकतांत्रिक सिद्धांत हैं।

11 मार्च को भारत सरकार द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम 2019 की अधिसूचना जारी की गई। ऐसे में विशेष रूप से लोकसभा चुनाव कार्यक्रम की घोषणा से कुछ दिन पहले इसकी टाइमिंग को लेकर कई लोग इसकी आलोचना कर रहे हैं। इस अधिनियम का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से 31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत आने वाले धार्मिक रूप से पीड़ित गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्रदान करना है।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 के प्रावधानों के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के प्रवासी जो तय तारीख से पहले 'मजहबी उत्पीड़न' के कारण भारत पहुंचे हैं , वे नागरिकता के लिए पात्र हैं। विशेष रूप से यह कानून भारत आने वाले छह धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित लोगों पर लागू होता है, जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं।

इस कानून का विरोध करने वालों का आरोप है कि यह अधिनियम एक विशेष समुदाय के खिलाफ भेदभाव करता है, जो भारत के संविधान में निहित समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है। कानून की विवादास्पद प्रकृति ने मौलिक अधिकारों के संरक्षण और लोकतांत्रिक मूल्यों के पालन पर राष्ट्रव्यापी बहस छेड़ दी है। बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने भी भारत में सीएए लागू किए जाने की आलोचना करते हुए इसे भेदभावपूर्ण बताया था। वहीं, नागरिक अधिकार समूहों ने भी इस कानून को लेकर चिंता जाहिर की थी, जिसे भारत ने खारिज किया है।

वहीं, भारत सरकार अपने फैसले पर अडिग है। बुधवार को भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सभी शंकाओं को ये कहते हुए खारिज किया था कि नया कानून केवल उन सताए गए अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए लाया गया है जो कभी अविभाज्य भारत का हिस्सा रहे थे और यह किसी के अधिकारों को नहीं छीनता है।

शाह ने कहा, इससे भारत के अल्पसंख्यकों को जरा भी डरने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इस कानून में किसी नागरिक के अधिकार छीनने का कोई प्रावधान नहीं है। सीएए का उद्देश्य उन सताए गए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यकों, हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई, को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है जो 31 दिसम्बर 2014 के पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भागकर भारत आ गए थे। इस कानून के तहत उनका दुख खत्म किया जा सकता है।

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