एक नई स्टडी में दावा किया गया है कि अमेरिका में रह रहे लगभग आधे भारतीय अमेरिकियों को पिछले साल भेदभाव का सामना करना पड़ा। कार्नेगी एंडोमेंट फॉर इंटरनेशनल पीस की हालिया स्टडी के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट में कई और चौंकाने वाले खुलासे किए गए हैं।
एनबीसी की एक रिपोर्ट में स्टडी के हवाले से दावा किया गया है कि अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों के साथ सबसे ज्यादा भेदभाव उनकी त्वचा के रंग को लेकर हुआ। भेदभाव करने वाले आमतौर पर श्वेत लोग थे। इस स्टडी के को-ऑथर और कार्नेगी के साउथ एशिया प्रोग्राम के सीनियर फेलो व डायरेक्टर मिलन वैष्णव ने बताया कि भेदभाव करने वालों में तीन-चौथाई से ज्यादा लोग गैरभारतीय थे।
यह रिपोर्ट 2020 के YouGov survey का हिस्सा है, जो 18 लाख अमेरिकियों की राय लेकर तैयार की गई है। इसमें 1200 भारतीय अमेरिकियों पर खास फोकस किया गया था। सर्वे के दौरान अमेरिका में सभी उम्र और इमिग्रेशन स्टेटस वाले लोगों की राय ली गई। इनमें अमेरिका में आकर बसे नए प्रवासियों के अलावा यहीं पर पैदा हुए नागरिक भी शामिल थे।
रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे भारतीय जो विदेशी धरती पर पैदा हुए, उन्हें भी लगभग रोजाना भेदभाव का सामना करना पड़ता है, लेकिन वे अपने साथ हुई घटनाओं की रिपोर्ट दर्ज कराने में हिचकते हैं। समाज ही नहीं, भारतीय समुदायों और परिवारों के अंदर भी भेदभाव किया जाता है।
वैष्णव कहते हैं कि भारतीयों के साथ धर्म और लैंगिक आधार पर भेदभाव ज्यादा होता है। भारतीय राजनीति और हिंदुओं की जातिगत पहचान जैसे मुद्दे अमेरिका तक उनका पीछा करते हैं। भारत में अपर कास्ट में जन्मे लोग अमेरिका आने पर भी अपनी इस पहचान को कायम रखने का प्रयास करते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि भारतीय राजनीति का असर अमेरिकी समुदायों में भी नजर आता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चाहने वाले रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों पार्टियों में हैं। वैष्णव कहते हैं कि ऐसी धारणा है कि अगर आप ट्रम्प समर्थक हैं तो आप मोदी समर्थक हैं, और अगर आप एंटी ट्रम्प है तो मोदी विरोधी हैं। जो लोग अमेरिका में पैदा हुए हैं, या फिर भारत के पूर्वी या दक्षिणी इलाकों से हैं, उनमें मोदी के समर्थकों की संख्या कम है।
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