संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय राजदूत ने तालिबान के राजदूत को गणतंत्र दिवस समारोह के कार्यक्रम के लिए निमंत्रण दिया है। यूएई में भारत के एंबेसडर संजय सुधीर ने 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' के चार्ज डी' अफेयर्स (सीडीए) के रूप में सेवारत बदरुद्दीन हक्कानी और उनकी पत्नी को गणतंत्र दिवस समारोह का न्योता भेजा है। अबुधाबी में ये कार्यक्रम होने जा रहा है, जिसके लिए ये न्योता भेजा गया है।
सूत्रों का कहना है कि कूटनीतिक प्रक्रियाओं के तहत हक्कानी को निमंत्रण दिया गया है। अफगानिस्तान के विधिवत मान्यता प्राप्त सीडीए को निमंत्रण भेजा गया था। बता दें कि यूएई तालिबान को मान्यता नहीं देता है। सूत्रों का कहना है कि निमंत्रण 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' के दूत को संबोधित था। तालिबान खुद को 'अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात' के रूप में दर्शाता है। 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान' का प्रतिनिधित्व तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी ने किया था।
इस मुद्दे पर सावधानी से आगे बढ़ते हुए, भारत काबुल में तालिबान के साथ बातचीत कर रहा है, लेकिन अभी तक तालिबान शासन को राजनयिक मान्यता नहीं दी है। अबू धाबी में अफगान दूतावास के ऊपर अभी भी गणतंत्र ध्वज लहराता है। भारतीय दूतावास के लिए यह सामान्य बात है कि वह गणतंत्र दिवस समारोह के लिए सभी मान्यता प्राप्त राजदूतों/सीडीए को आमंत्रित करे।
बदरुद्दीन हक्कानी को अक्टूबर 2023 में चार्ज डी'अफेयर्स के रूप में नियुक्त किया गया था और यूएई सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। वह जलालुद्दीन हक्कानी के बेटों में से एक है और अफगानिस्तान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी का भाई है।
हक्कानी को आमंत्रित करने का निर्णय राजनयिक मानदंडों के प्रति भारत की प्रतिबद्धता और मान्यता प्राप्त मिशनों के प्रतिनिधियों के साथ जुड़ने के अभ्यास के अनुरूप है। भारत सरकार अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समान ही टेम्पलेट का पालन कर रही है, वे तालिबान के साथ जुड़े हुए हैं, लेकिन उन्हें संयुक्त राष्ट्र के अनुसार आधिकारिक मान्यता नहीं दी गई है।
भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से बार बार साफ किया गया है कि तालिबान को मान्यता देने की उसकी कोई योजना नहीं है, लेकिन वो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के मुताबिक ही तालिबान से इंगेज कर रहा है। अफगानिस्तान में भारत के हितों को देखते हुए सरकार तालिबान से संबधों को बेहतर करने की ओर देख रही है। साल 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत के अफगानिस्तान से रिश्तों पर काफी गहरा असर हुआ था। भारत को अफगानिस्तान में अपने ज्यादातर कार्यक्रम और परियोजना बंद करने पड़े थे।
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