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पीएम मोदी ने डॉ. कमल डी. वर्मा के बारे में कहा, भारतीय जड़ों के प्रति सच्चे बने रहे

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते राजदूत वर्मा को भेजे एक पत्र में लिखा कि प्रोफेसर कमल वर्मा हर भारतीय अप्रवासी द्वारा प्रदर्शित धैर्य और दृढ़ संकल्प के सच्चे अवतार थे। उन्होंने विदेश में अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए कड़ी मेहनत की। साथ ही साथ अपनी भारतीय जड़ों के प्रति सच्चे बने रहे। वे हमेशा अपनी मातृभूमि में याद किए जाएंगे।

डॉ. कमल डी. वर्मा का इस सप्ताह वाशिंगटन, डीसी में निधन हो गया। / newIndiaabroad

प्रोफेसर और दक्षिण एशियाई साहित्य के समीक्षकों द्वारा प्रशंसित विद्वान डॉ. कमल डी. वर्मा का इस सप्ताह वाशिंगटन, डीसी में निधन हो गया। उनकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई बताई गई है। वह अगले महीने अप्रैल में 92 साल के होने वाले थे। प्रोफेसर वर्मा ने पेंसिल्वेनिया में जॉन्सटाउन (यूपीजे) में पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय में 42 वर्षों तक पढ़ाया। रिटायर होने के बाद उन्होंने एमेरिटस और विश्वविद्यालय के अध्यक्ष के सलाहकार के रूप में काम करना जारी रखा।

वह साउथ एशियन रिव्यू और साउथ एशियन लिटरेरी एसोसिएशन के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनका उद्देश्य भारतीय और अन्य दक्षिण एशियाई लेखकों और विचारों को बढ़ावा देना था। यूपीजे के अध्यक्ष डॉ. जेम स्पेक्टर ने डॉ. वर्मा को एक शानदार विद्वान, एक असाधारण शिक्षक, मार्गदर्शक, एक उच्च सम्मानित सहयोगी और एक प्रिय मित्र कहा।

छात्रों की डॉ. वर्मा के बारे में राय एक ऐसे प्रोफेसर की रही है जिन्होंने अपनी महत्वपूर्ण सोच, विश्लेषणात्मक और लेखन कौशल को गहरा किया। कोई ऐसा व्यक्ति जिसने छात्रों की दुनिया की अपनी समझ को गहरा किया। जिनकी कक्षाओं ने उन्हें आजीवन सफलता के लिए तैयार किया। डॉ. वर्मा का जन्म 1932 में पंजाब, भारत में हुआ था। वह एक बड़े परिवार में सबसे बड़े बेटे थे। उन्होंने 1951 में पंजाब के जालंधर में डीएवी कॉलेज से बीए किया। उसके बाद 1953 में आगरा विश्वविद्यालय से अध्यापन में बीए और 1958 में पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में एमए किया।

वह पंजाब में एक कॉलेज के प्रिंसिपल बने जहां उन्होंने 1963 तक पढ़ाया। इसके बाद उन्होंने उत्तरी आयोवा विश्वविद्यालय में शिक्षा की डिग्री में विशेषज्ञ प्राप्त करने के लिए फोर्ड फाउंडेशन फैलोशिप पर संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। इसके बाद उन्होंने साहित्य में आगे की व्यावसायिक पढ़ाई की। कनाडा के एडमोंटन में अल्बर्टा विश्वविद्यालय से पीएचडी पूरी की।

डॉ. वर्मा की पत्नी सावित्री एक शिक्षक और भारत में एक महिला कॉलेज की प्रमुख भी रही हैं। उनके पांच बच्चे, राजीव, रोमा, रीता, अमिता और रिचर्ड 1971 में जॉन्सटाउन, पेंसिल्वेनिया में बस गए। वे इस क्षेत्र में जाने वाले पहले भारतीय अमेरिकी परिवार थे। डॉ. वर्मा के बच्चों ने व्यवसाय, चिकित्सा और कानून में करियर बनाए। उनके बेटे रिचर्ड राष्ट्रपति ओबामा के लिए भारत में अमेरिकी राजदूत के रूप में सेवा किया। वह वर्तमान में राज्य के उप सचिव के रूप में काम करते हैं।

रिचर्ड पिछले महीने नई दिल्ली में थे, जहां उन्होंने ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एक व्याख्यान दिया था। उल्लेख किया कि कैसे उनके पिता ने लाखों अन्य भारतीय अमेरिकियों की तरह अपने नए देश के निर्माण में भूमिका निभाई, लेकिन भारत के साथ संबंधों को बनाए रखा और मजबूत भी किया।

प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले हफ्ते राजदूत वर्मा को भेजे एक पत्र में लिखा कि प्रोफेसर कमल वर्मा हर भारतीय अप्रवासी द्वारा प्रदर्शित धैर्य और दृढ़ संकल्प के सच्चे अवतार थे। उन्होंने विदेश में अपने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए कड़ी मेहनत की। साथ ही साथ अपनी भारतीय जड़ों के प्रति सच्चे बने रहे। वे हमेशा अपनी मातृभूमि में याद किए जाएंगे।

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