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खालिस्तानी खतरे को नजरअंदाज करना अमेरिका के लिए खतरनाक हो सकता है : समीर कालरा

'अमेरिकियों को इस कठोर सच्चाई से अवगत होना चाहिए कि इस देश का इस्तेमाल विदेश में आतंकवाद और चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। खालिस्तानी खतरे को नजरअंदाज करना हमारे लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।'

हाल के दिनों में, खालिस्तानी चरमपंथियों ने अपना ध्यान सॉफ्ट टारगेट पर केंद्रित किया है। इनमें भारतीय वाणिज्य दूतावासों, भारतीय समुदाय के सदस्यों और हिंदू मंदिरों पर हमला करना शामिल है। / File photo / Shutterstock.com/Kevin D Jeffrey

समीर कालरा : सितंबर 2023 में कनाडा में हरदीप सिंह निज्जर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद हिंसक खालिस्तान अलगाववादी आंदोलन अचानक अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में आ गया। निज्जर की हत्या के बाद अमेरिका की एक अदालत ने एक भारतीय अधिकारी पर कथित तौर पर गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने की कोशिश करने का आरोप लगाया। पन्नू अमेरिका और कनाडा दोनों देशों के नागरिक है। वह 'सिख फॉर जस्टिस' का मुखिया है। हाल ही में निज्जर मामले में चार और भारतीयों को गिरफ्तार किया गया। इसके बाद खालिस्तान का मामला फिर से चर्चा में आ गया है।

पश्चिमी मीडिया, सरकारें और यहाँ तक कि कैलिफोर्निया के सांसद एरिक स्वालवेल जैसे नेता भी आपको यह समझाने की कोशिश करेंगे कि यह केवल अंतरराष्ट्रीय दमन और भारत में सिखों के लिए एक अहिंसक स्वतंत्रता आंदोलन है। वे यह बताएंगे कि पन्नू और निज्जर जैसे शांतिप्रिय लोगों को एक भारतीय खुफिया ऑपरेशन के रूप में निशाना बनाया जा रहा है। बस इसलिए कि 'वे कौन हैं और उनका क्या मानना ​​है।'

लेकिन सच्चाई इससे कहीं अलग और जटिल है। पन्नू एक निर्दोष सिख कार्यकर्ता नहीं है, जो महज खालिस्तान के लिए जनमत संग्रह से जुड़े कार्यक्रमों को आयोजित करता है। इसमें शामिल होता है। असल में, भारत में उस पर आपराधिक और आतंकवाद के आरोप हैं। वह वॉन्टेड है। उसने खुलकर कनाडाई हिंदुओं को कनाडा छोड़कर भारत वापस जाने के लिए कहा है। उसने एयर इंडिया की उड़ान को धमकी दी है। इसके अलावा भारतीय राजनयिकों के खिलाफ हिंसा को बढ़ावा दिया है।

दूसरी तरफ निज्जर एक साधारण प्लंबर और धार्मिक नेता नहीं हैं। उसने गलत दस्तावेजों का इस्तेमाल करके कनाडा में अवैध रूप से प्रवेश किया था। भारत में आतंकवाद के आरोपों में शामिल रहा है। अपने मरने तक वह भारतीय आतंकवादी समूह खालिस्तान टाइगर फोर्स (KTF) का प्रमुख था। यह संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल (BKI) का एक उपसमूह है, जिसे अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा एक आतंकवादी समूह घोषित किया गया है।

जिन लोगों को याद नहीं होगा उनके लिए बता दें कि BKI की पहचान उनके सह-संस्थापक तलविंदर सिंह परमार से जुड़ी है। 1985 के एयर इंडिया बम विस्फोट के पीछे तलविंदर का दिमाग था। इस बम विस्फोट में विमान में मौजूद 82 बच्चों समेत 329 लोग मारे गए थे। यह ध्यान देने योग्य है कि कनाडाई राजनेता खुशी-खुशी ऐसे कार्यक्रमों में तस्वीरें खिंचवाते रहते हैं, जहां परमार को महिमामंडित किया जाता है।

निज्जर और पन्नू दोनों ही BKI के ऑपरेटिव के साथ करीबी संबंध रखते थे। जैसे परमजीत सिंह पम्मा जो आतंकवाद को मदद देने के आरोप में भारतीय अधिकारियों द्वारा वॉन्टेड है। जगतार सिंह तारा जो 1995 में भारत के पंजाब राज्य के मुख्यमंत्री की हत्या के लिए कथित रूप से जिम्मेदार था।

खालिस्तान के कनेक्शन और सपोर्ट नेटवर्क ने दशकों से पश्चिमी धरती को हिंसक आतंकवादी गतिविधियों और धन उगाही के लिए एक सुरक्षित ठिकाना बना लिया है। इनके कुकृत्य में भारत में बम विस्फोट, हत्याएं, अपहरण, चुनिंदा हत्याएं और नागरिकों का नरसंहार शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप 22,000 से अधिक लोगों की मौत हुई।

अमेरिका में इनमें से कुछ गतिविधियों की जांच संघीय एजेंसियों, जैसे FBI, DEA, और यूनाइटेड स्टेट्स कस्टम्स सर्विस द्वारा की गई है। पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी खालिद अवां को खालिस्तान कमांडो फोर्स (KCF) को पैसे और वित्तीय सेवाएं प्रदान करने के लिए 14 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। KCF भारत में हजारों मौतों के लिए जिम्मेदार एक आतंकवादी संगठन है।

2017 में एक खालिस्तानी चरमपंथी और अमेरिकी निवासी बलविंदर सिंह को भारत में खालिस्तानी आतंकवादी समूहों, BKI और खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स, को भौतिक सहायता देने का दोषी पाया गया और उसे संघीय जेल में 15 साल की सजा सुनाई थी। कैलिफोर्निया में एक गुप्त USCS ऑपरेशन में पता चला कि खालिस्तान आतंकी भजन सिंह भिंडेर ने भारत में आतंकवादी हमले करने वाले खालिस्तान ग्रुप के लिए 'एम-16, AK-47, डेटोनेटर, नाइट-विज़न गॉगल्स, मोबाइल कम्युनिकेशन उपकरण, रिमोट-कंट्रोल उपकरण, ग्रेनेड और रॉकेट लांचर' खरीदने की कोशिश की थी।

हाल के दिनों में, खालिस्तानी चरमपंथियों ने अपना ध्यान सॉफ्ट टारगेट पर केंद्रित किया है। इनमें भारतीय वाणिज्य दूतावासों, भारतीय समुदाय के सदस्यों और हिंदू मंदिरों पर हमला करना शामिल है। हाल ही में सैन फ्रांसिस्को बे एरिया और क्वींस, न्यूयॉर्क में मंदिरों को खालिस्तान समर्थकों द्वारा तोड़ा गया और अपवित्र किया गया। साथ ही ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में भी कई मंदिरों को निशाना बनाया गया।

इनके लिए राजनयिक मिशनों और मंदिरों पर हमला करना ही काफी नहीं था। ऑस्ट्रेलिया में खालिस्तानियों ने एक हिंदू छात्र को उनकी कार से घसीटकर बुरी तरह पीटा। एक सिख रेडियो होस्ट पर हमला किया। उन पर 40 से अधिक वार किए गए। उनकी जान बचाने के लिए कई सर्जरी करनी पड़ी। यूके में खालिस्तानियों ने भारतीय स्वतंत्रता दिवस के समारोह में दो लोगों पर चाकू से हमला किया। लगातार मौत और बलात्कार की धमकियां देने के बाद एक सिख परिवार को विस्थापित करने पर मजबूर कर दिया।

जैसे सोशल मीडिया पर हमास की हिंसा को सामान्य, उचित बताया जाता है। ठीक उसी तरह से खालिस्तान चरमपंथियों की हिंसा का भी महिमामंडन किया जाता है। Rutgers University के Contagion इंस्टीट्यूट की एक हालिया रिपोर्ट में खालिस्तानी गतिविधियों से जुड़े सोशल मीडिया ट्रेंड का दस्तावेजीकरण किया गया है। इसमें दिखाया गया है कि 'खालिस्तानी चरमपंथी बयानबाजी तेज हो रही है और अक्सर हमलों का आह्वान किया जा रहा है। हिंदू पूजा स्थलों और विदेशों में भारतीय सरकारी भवनों में तोड़फोड़ का जश्न मनाया जा रहा है।'

रिपोर्ट में कहा गया है कि हमारे शोध से पता चला है कि 'सिख फॉर जस्टिस' से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट दुनिया भर में मंदिरों और दूतावासों में होने वाली तोड़फोड़ को बढ़ावा देते हैं। ये अकाउंट तोड़फोड़ और हमलों के वीडियो पोस्ट करते हैं। हालांकि ये अकाउंट सीधे लोगों को उकसाने के लिए नहीं कहते। लेकिन ये वास्तव में दुनिया में लोगों को एकजुट करते हैं, जो बाद में तोड़फोड़, हिंसा और हमले में शामिल होते हैं।'

आखिरकार, भारतीय जासूसों की खालिस्तानी अलगाववादियों को निशाना बनाने में कथित भूमिका जो भी हो। लेकिन अमेरिकियों को इस कठोर सच्चाई से अवगत होना चाहिए कि इस देश का इस्तेमाल विदेश में आतंकवाद और चरमपंथ को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है। खालिस्तानी खतरे को नजरअंदाज करना हमारे लिए बहुत खतरनाक साबित हो सकता है।

(लेखक Hindu American Foundation में पॉलिसी एंड प्रोग्राम्स के प्रबंध निदेशक और सह-कानूनी सलाहकार हैं। इस लेख में व्यक्त किए गए विचार और राय लेखक के हैं। जरूरी नहीं कि वे New India Abroad की आधिकारिक नीति या स्थिति को प्रतिबिंबित करते हों)

 

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