अबू धाबी में हुए इंडियास्पोरा समिट फोरम फॉर गुड (IFG) में सेलेस्टा कैपिटल के मैनेजिंग पार्टनर और इंडियास्पोरा के फाउंडिंग मेंबर अरुण कुमार ने बताया कि कैसे भारतीय डायस्पोरा का दुनियाभर में कद बढ़ता जा रहा है। ये समिट काफी प्रभावशाली लोगों को एक साथ लेकर आया, जहां उन्होंने अपने बढ़ते असर, हर देश और हर फील्ड पर बातचीत की। इस इवेंट में 31 देशों के लीडर्स शामिल हुए। उन्होंने डायस्पोरा के बिजनेस, टेक्नोलॉजी, सोशल एंटरप्रेन्योरशिप और पॉलिसी मेकिंग में रोल पर गहराई से बात की।
न्यू इंडिया अब्रॉड से बात करते हुए अरुण कुमार ने बताया कि डायस्पोरा 'काफी पढ़ा-लिखा है, आम तौर पर उच्च आय वर्ग से आता है। यह और धीरे-धीरे खुद को अच्छे कामों की ताकत के तौर पर स्थापित कर रहा है।' कुमार ने कहा, 'ये समिट इस बात का अच्छा नजारा पेश करता है क्योंकि यहां अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया सहित 31 देशों के लोग हैं। साउथ अमेरिका के दक्षिणी देश भी शामिल हैं।'
उन्होंने आगे बताया, 'हमने कई जवान भारतीय मूल के एंटरप्रेन्योर को भी यहां देखा। ये एक नई बात है। ये युवा, उम्मीद से भरे एंटरप्रेन्योर बहुत दिलचस्प काम कर रहे हैं। इनमें से कई अभी AI के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।'
भारत के अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संबंधों पर बात करते हुए कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि भारत-अमेरिका के आर्थिक रिश्तों को मजबूत करने में डायस्पोरा को ज्यादा सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। उन्होंने अमेरिका-भारत कॉरिडोर में अपनी भागीदारी पर जोर दिया। उनके मुताबिक, भारतीय स्टार्टअप्स अमेरिकी मार्केट का इस्तेमाल करके दुनियाभर में अपना बिजनेस बढ़ा सकते हैं, वहीं अमेरिकी कंपनियां भारत में अपने डेवलपमेंट ऑपरेशन्स स्थापित करके फायदा उठा सकती हैं।
उन्होंने कहा, 'राष्ट्रपति ट्रम्प ने आपसी टैरिफ की अपनी नीति बनाई थी, मुझे लगता है कि उसका टाइमिंग थोड़ा अधिक आक्रामक था। लेकिन मुझे लगता है कि भारतीय प्रधानमंत्री ने इस मामले को बहुत अच्छे से संभाला।' कुमार ने भारत और अमेरिका के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते की वकालत लंबे समय के समाधान के तौर पर की।
उन्होंने कहा, 'मुक्त व्यापार समझौते राजनीतिक रूप से चुनौतीपूर्ण होते हैं, लेकिन एक बार हो जाने के बाद, ये दोनों पक्षों को काफी लाभ पहुंचा सकते हैं। ये पूरी तरह से मुक्त व्यापार समझौता नहीं भी हो सकता है, लेकिन ये एक तरफा व्यापार समझौता हो सकता है।'
इस समिट में शामिल हुए पिरामल ग्रुप के चेयरमैन अजय पिरामल ने पिरामल फाउंडेशन के काम के बारे में बताया। ये फाउंडेशन 2008 से काम कर रहा है और इसमें 5000 फुल-टाइम कर्मचारी भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी और आजीविका में सुधार के लिए काम कर रहे हैं। पिरामल ने कहा, 'हम माननीय प्रधानमंत्री द्वारा देश के सबसे पिछड़े 112 आकांक्षी जिलों में काम कर रहे हैं। और हम सरकार के साथ मिलकर आदिवासी क्षेत्रों में इनोवेटिव समाधान ढूंढने के लिए काम कर रहे हैं।'
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परोपकार के कामों का असरदार होना है तो सरकार के साथ मिलकर काम करना बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि 'आज भारत में आपको नए स्कूल बनाने की जरूरत नहीं है। आपको अस्पताल बनाने की जरूरत नहीं है। आपको ये देखना होगा कि सरकार जिस सिस्टम से काम कर रही है, उसे कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। भारत में सामाजिक कार्यों के लिए कुल फंडिंग लगभग 500 अरब डॉलर सालाना है। सीएसआर फंडिंग केवल पांच या छह अरब डॉलर है। अगर आप सरकार के साथ मिलकर काम करते हैं, तो आप इसके मूल्य को 10 या 20 गुना से भी अधिक बढ़ा सकते हैं।'
विदेशी फंडिंग के नियमों को लेकर चिंताओं को दूर करते हुए पिरामल ने आश्वासन दिया कि 'भारतीय डायस्पोरा के लिए कोई समस्या नहीं है। चिंता तब होती है जब सरकार किसी फंडिंग के पीछे के कारणों पर नजर नहीं रख पाती। लेकिन अगर ये पारदर्शी और वास्तविक है, तो कोई समस्या नहीं है।'
इंडियास्पोरा के संस्थापक एमआर रंगास्वामी ने 13 साल पहले इसकी शुरुआत के बाद से संगठन के विकास पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा, 'हम अमेरिका से कनाडा, ब्रिटेन, सिंगापुर, यूएई, ऑस्ट्रेलिया और भारत तक फैल गए हैं। हमें समय लगा, हम एक गैर-लाभकारी संगठन हैं। और अब, इसका परिणाम यह है कि हमने वैश्विक भारतीयों के लिए अपना खुद का दावोस, अपना खुद का TED बनाया है।'
यह फोरम अंतःविषय नेटवर्किंग का केंद्र बन गया है, जहां विभिन्न क्षेत्रों के पेशेवर - प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और व्यवसाय एक साथ आते हैं। उन्होंने कहा, 'हो सकता है कि आप एक AI संस्थापक हों जो एक डॉक्टर से मिल रहा हो। हो सकता है कि आप एक जलवायु वैज्ञानिक हों जो एक शिक्षाविद से मिल रहा हो। ये सभी चीजें हो सकती हैं, और यही वास्तव में हो रहा है।'
रंगास्वामी ने शिखर सम्मेलन में जारी एक नई रिपोर्ट का हवाला देते हुए, यूएई में भारतीय डायस्पोरा के प्रभाव पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, 'यूएई से डायस्पोरा हर साल 16 अरब डॉलर भेजता है, जबकि भारत से यूएई में निवेश 19 अरब डॉलर है। यूएई में हजारों डॉक्टर एमिराती मरीजों की सेवा कर रहे हैं। IIT जैसे प्रमुख भारतीय शैक्षणिक संस्थान वहां परिसर खोल रहे हैं। 4 मिलियन भारतीय मूल के लोगों के साथ, यूएई की एक तिहाई आबादी भारतीय है।'
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