-रोशमीला भट्टाचार्य
कल्पना कीजिए.., धर्मेंद्र, प्राण के पैरों के नीचे से कुर्सी को लात मारकर दूर फेंकते हैं और नथुने फुलाते हुए दांत भींचकर कह रहे हैं- जब तक बैठने को न कहा जाए शराफत से खड़े रहो... ये पुलिस स्टेशन है, तुम्हारे बाप का घर नहीं। ...मगर ये कल्ट डायलॉग तो सुपर हिट फिल्म जंजीर का है और अमिताभ बच्चन पर फिल्माया गया है। बात बिल्कुल सही है मगर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पहले जंजीर फिल्म में यह डायलॉग गरम-धरम पाजी यानी धर्मेंद्र बोलने वाले थे। इसलिए क्योंकि जंजीर फिल्म के लिए पहली पसंद अमिताभ बच्चन नहीं, धर्मेंद्र थे। यानी फिल्म जंजीर में एंग्री यंग मैन वाले इंस्पेक्टर विजय खन्ना का किरदार धर्मेंद्र निभाने वाले थे।
प्रकाश मेहरा की पहली पंसद के तौर पर जंजीर फिल्म में धर्मेंद्र थे और नायिका मुमताज। कामयाब निर्देशक मेहरा बतौर निर्माता अपनी पहली फिल्म बहुत जल्द पूरी करके रिलीज करना चाहते थे। कोई छह महीने में। मगर उनके हीरो (धर्मेंद्र) ने बताया कि इस (उस) समय वे अपने भाई के लिए एक फिल्म बना रहे हैं और जंजीर के लिए काम तब शुरू करेंगे जब उनके भाई वाली फिल्म आधी हो जाएगी। मगर प्रकाश मेहरा साल भर इंतजार करना नहीं चाहते थे। मेहरा ने धर्मेंद्र से अपने रास्ते अलग कर लिए और फिल्म की कहानी लेकर देव आनंद के पास जा पहुंचे।
देव की काला पानी देखने के बाद मेहरा को लगा था कि जंजीर की कहानी पढ़ने के बाद वे अपनी रूमानी छवि से बाहर निकलना चाहेंगे और उस क्रोधी इंस्पेक्टर के रोल के लिए राजी हो जाएंगे जो अपने माता-पिता के कातिल की तलाश में है और उसके पास एक दुस्स्वप्न सी एक याद है जो उसे उसकी मंजिल तक पहुंचा सकती है। देव आनंद को जंजीर की कहानी तो पसंद आई लेकिन सुनते हैं कि देव साहब उस कहानी में कुछ गाने चाहते थे और अपने ट्रेडमार्क स्कार्फ और जैकेट पहनना चाहते थे। लेकिन यह प्रकाश मेहरा नहीं चाहते थे। लिहाजा बात दूसरी जगह भी नहीं बनी। कई बरसों के बाद देव साहब ने जंजीर से जुड़े किस्से-कहानियों को खारिज करते हुए बताया था कि उन्होंने जंजीर केवल इसलिए नहीं की क्योंकि वे प्रकाश मेहरा को नहीं जानते थे। उनके साथ कभी काम जो नहीं किया था।
जंजीर के लिए फिल्म निर्माता मेहरा की लिस्ट में अगला नाम दिलीप कुमार का था। मगर दिग्गज अभिनेता को नायक का किरदार सीधा-सपाट लगा जिसमें अभिनय के लिए कोई गुंजाइश न थी। हालांकि कई बरसों बाद दिलीप कुमार ने सलीम खान के सामने यह स्वीकार किया कि उन्होंने तीन फिल्में खारिज कर जीवन की सबसे बड़ी भूलें कीं। पहली बैजू बावरा, दूसरी प्यासा और तीसरी फिल्म थी जंजीर।
दिलीप कुमार के बाद प्रकाश मेहरा राजकुमार के पास गये जो फिल्मों में आने से पहले मुम्बइया पुलिसवाले थे। 'जानी' को जंजीर की कहानी भी पसंद आ गई। लेकिन राजकुमार उस समय मद्रास (अब चेन्नई) में शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने सुझाया कि वे उसी स्टूडियो में एक दूसरा सैट तैयार करा लेंगे और चूंकि मुमताज भी वहीं शूट कर रही हैं तो किसी को कोई दिक्कत भी नहीं आएगी। लेकिन एक बार फिर मेहरा को यह नामंजूर था। उनका कहना था कि फिल्म बम्बई (अब मुम्बई) में ही शूट होगी क्योंकि कहीं और जाने से वह अपना 'स्वाद' खो देगी। बात फिर खत्म हुई।
इतने दर भटकने के बाद मेहरा को लगने लगा कि लगता है फिल्म बस्ते में ही बंद रह जाएगी। तब प्राण के बेटे ने अपने अभिनेता मित्र अमिताभ का नाम जंजीर के लीड रोल के लिए सुझाया। प्राण जंजीर में शेर खान का किरदार निभाने के लिए पहले ही हामी भर चुके थे। तब प्राण और मेहरा ने सोचा कि क्यों न पास के थियेटर में 'बॉम्बे टू गोवा' देखी जाए ताकि नये नायक की परख हो जाए। 'बॉम्बे टू गोवा' के एक सीन में शत्रुघ्न सिन्हा से लड़ाई करते अमिताभ को देखकर मेहरा को लगा कि यह शख्स जंजीर के शेर खान से भिड़ सकता है। मेहरा खुशी से कूद पड़े और बोले- यही है हमारा विजय।
खैर नायक की खोज पूरी हुई तो नायिका पर ग्रहण लग गया। मुमताज अभिनीत ओपी रल्हन की बंधे हाथ फ्लॉप हो गई। इस पर मुमताज ने ऐलान कर दिया कि वे खरबपति उद्यमी मयूर माधवानी से शादी करके फिल्म इंडस्ट्री छोड़ने वाली हैं। एक बार फिर से मेहरा को उदासियां घेरने वाली थीं कि जया भादुड़ी ने फिल्म के लीड रोल के लिए हां कह दिया। जया और अमिताभ उन दिनों डेट कर कर रहे थे।
तो इस तरह मेहरा की जंजीर के लिए नायक और नायिका की तलाश पूरी हुई। फिल्म बनी और जबर्दस्त चली। यहीं से हमेशा के लिए अमिताभ के रूप में एंग्री यंग मैन का जन्म हुआ। इसी के साथ खलनायिकी का भी ट्रेंड बदला। अब तक (70 के दशक तक) फिल्मों में गुस्सैल-झगड़ैल और गहरे हाव-भाव वाले खलनायक चल रहे थे मगर जंजीर का खलनायक बहुत ही जहीन, मृदुभाषी था। तेजा के रूप में अजीत ने खलनायकी की नई राह दिखाई।
जंजीर 11 मई 1973 को रिलीज हुई। इसको लेकर निर्माता-निर्देशक सुनील दर्शन याद करते हैं कि जब फिल्म रिलीज हुई तो मुझे और मेरे पिताजी को लग रहा था कि चलेगी लेकिन फिल्म के नायक यानी अमिताभ को उतना यकीन नहीं था। सुनील दर्शन के पिता दर्शन सभरवाल जंजीर के डिस्ट्रीब्यूटर थे। बहरहाल, जंजीर की कामयाबी कलकत्ता से शुरू हुई और फिर फिल्म के लिए बम्बई में भी भीड़़ जुटने लगी। फिल्म की कमाई करोड़ तक हुई।
प्रकाश मेहरा की जंजीर के करीब 40 साल बाद वर्ष 2013 में जंजीर फिर बनाई गई। इसमें रामचरन और प्रियंका चोपड़ा थे। संजय दत्त शेर खान बने थे। मगर रामचरन-प्रियंका की जंजीर फिल्म फ्लॉप हो गई। लेकिन अमिताभ 50 साल बाद भी एंग्री यंग मैन के रूप में आज भी बॉलीवुड के शहंशाह बने हुए हैं। इस तरह जंजीर के 50 साल तो हुए ही हैं, एंग्री यंग मैन के जन्म को भी आधी सदी बीत चुकी है।
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